11 अक्टूबर को नवरात्रि का पांचवा दिन और छठी तिथि है। इस दिन मां भगवती के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। दुर्गा सप्तशती में मध्य चरित्र जिसमें महिषासुर का उल्लेख मिलता है उसका वध करने वाली देवी मां कात्यायनी ही हैं। इसलिए इन्हें महिषासुर मर्दनी भी कहते हैं। आइए जानते हैं मां की पूजा विधि, मंत्र और प्रिसय भोग क्याक हैं?
मां कात्यायनी का स्वरूप
मां कात्यायनी की चार भुजाएं हैं। माता के एक हाथ में खड्ग है तो दूसरे में कमल का फूल। अन्य दो हाथों से माता वर मुद्रा और अभय मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद दे रही हैं। माता का ये स्वरूप अत्यंत दयालु और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाला है।
मंत्र और पूजन विधि
मां कात्यायनी की पूजा करते समय मंत्र ‘कंचनाभा वराभयं पद्मधरां मुकटोज्जवलां। स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनी नमोस्तुते।’ का जप करें। इसके बाद पूजा में गंगाजल, कलावा, नारियल, कलश, चावल, रोली, चुन्नी, अगरबत्ती, शहद, धूप, दीप और घी का प्रयोग करना चाहिए। मां की पूजा करने के बाद ध्यान पूर्वक पद्मासन में बैठ जाएं और देवी के मंत्र का मनोयोग से जप करें।
मां का भोग
नवरात्रि के षष्ठी तिथि के दिन देवी की पूजा में शहद यानी मधु का काफी महत्व माना जाता है। इस दिन माता के प्रसाद में शहद का प्रयोग करना चाहिए। पान में शहद मिलाकर माता को भेंट करना उत्तम होता है। माता को मालपुआ का भोग भी बहुत पसंद है। मां कात्यायनी की पूजा से साधक सुंदर रूप मिलता है। मां कात्यायनी के पूजन से विवाह में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं और सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।