नवरात्रि पर क्यों बढ़ जाता है कामाख्या देवी मंदिर का महत्व, मां के दर्शन मात्र से पूरी होती हैं भक्तों की मनोकामनाएं

कामाख्या मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में सबसे महत्वपूर्ण है, जहां देवी सती की योनि भाग गिरने के कारण मूर्ति की बजाय प्राकृतिक शिला की पूजा होती है। इस मंदिर का इतिहास राजा नर नारायण के पुनर्निर्माण और इसकी से जुड़ा है

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Kaushiki
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पूरे देश में नवरात्रि का पावन समय चल रहा है। कल अष्टमी तिथि पर मां दुर्गा की विशेष पूजा होगी। ऐसे में कामाख्या मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है।

यह मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में सबसे महत्वपूर्ण और पूजनीय माना जाता है। असम की राजधानी गुवाहाटी के पास नीलाचल पर्वत पर स्थित यह मंदिर आदि शक्ति की उपासना और तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र है।

इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां देवी की कोई मूर्ति स्थापित नहीं है बल्कि एक प्राकृतिक रूप से निर्मित शिला की पूजा होती है। अष्टमी के शुभ अवसर पर यहां दर्शन करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।

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51 शक्तिपीठों का रहस्य

कामाख्या मंदिर की पौराणिक कथा मां सती और भगवान शिव से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथा के मुताबिक, जब राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया और अपनी पुत्री सती और दामाद शिव को अपमानित करने के उद्देश्य से उन्हें आमंत्रित नहीं किया, तो सती बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गईं।

वहां उन्होंने अपने पति के अपमान को सहन नहीं कर पाईं और स्वयं को योग अग्नि में भस्म कर लिया। सती के देह त्याग से क्रोधित होकर, भगवान शिव ने उनके शव को कंधे पर उठाया और तांडव करना शुरू कर दिया।

शिव के क्रोध और तांडव से सृष्टि में प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो गई। सृष्टि को बचाने के लिए, भगवान विष्णु (ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के 51 टुकड़े कर दिए।

सती के शरीर के ये अंग जहां-जहां गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्यता है कि नीलाचल पर्वत पर मां सती की योनि भाग गिरा था। इसी कारण यह स्थान कामाख्या कहलाया और यहां देवी की योनि रूप में पूजा की जाती है।

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कामाख्या मंदिर का इतिहास

कामाख्या मंदिर का इतिहास कई राजवंशों से जुड़ा हुआ है।

  • प्राचीनता और विध्वंस: 

    यह मंदिर कितना प्राचीन है इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन इसे सदियों पुराना माना जाता है। कालांतर में, 16वीं शताब्दी में कालपहाड़ नामक शासक ने इस मंदिर को तोड़ दिया था और यह खंडहर में बदल गया था।

  • पुनर्निर्माण: 

    मंदिर का वर्तमान स्वरूप कूच बिहार के राजा नर नारायण ने 17वीं शताब्दी में बनवाया था। उन्होंने मंदिर की पुनर्स्थापना और जीर्णोद्धार का कार्य कराया, जिससे यह आज एक भव्य संरचना के रूप में खड़ा है।

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  • तंत्र साधना का केंद्र: 

    यह मंदिर हिंदू धर्म की शाक्त परंपरा और विशेष रूप से दस महाविद्याओं में से एक, त्रिपुर सुंदरी के रूप में पूजनीय है।

  • मनोकामना पूर्ति: 

    यह माना जाता है कि यहां दर्शन करने और देवी की योनि पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। विशेष रूप से निःसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति के लिए यहां आते हैं।

  • मुक्ति और मोक्ष: 

    यह मंदिर मोक्ष और जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति का मार्ग भी माना जाता है।

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मंदिर की अनोखी परंपराएं

कामाख्या मंदिर की वास्तुकला और यहां की परंपराएं इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती हैं।

  • शिखर और गुंबद: 

    मंदिर का मुख्य शिखर मधुमक्खी के छत्ते जैसा है, जिसे स्थानीय लोग चालीसहा या बंगला शैली की वास्तुकला कहते हैं।

  • गर्भ गृह: 

    मंदिर के गर्भ गृह में कोई मूर्ति नहीं है। यह एक गुफा जैसा है, जिसमें नीचे की ओर एक कुंड है। इसी कुंड के बीच में वह शिलाखंड है, जिसे मां सती का योनि भाग माना जाता है। यह शिलाखंड हमेशा फूलों और वस्त्रों से ढका रहता है।

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  • जल स्रोत: 

    इस कुंड में एक भूमिगत जल स्रोत से लगातार जल आता रहता है।

  • अम्बुवाची मेला: 

    यह मंदिर की सबसे अनोखी परंपरा है। हर साल जून महीने में, यह माना जाता है कि मां कामाख्या रजस्वला होती हैं। इन तीन दिनों के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।

  • रक्त वस्त्र: 

    चौथे दिन मंदिर खुलता है। इस दौरान जो लाल वस्त्र उस शिलाखंड के ऊपर बिछाया जाता है, उसे भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। यह वस्त्र अम्बुवाची वस्त्र कहलाता है, जिसे धारण करने से भक्तों के कष्ट दूर होते हैं और उनकी इच्छाएं पूरी होती हैं।

  • पशु बलि: 

    यहां देवी को प्रसन्न करने के लिए पशु बलि देने की भी परंपरा है। हालांकि आजकल कई लोग प्रतीकात्मक रूप से ऐसा करते हैं।

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कैसे पहुंचे कामाख्या मंदिर

असम में कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple in Assam) तक पहुंचना बहुत आसान है, क्योंकि यह एक प्रमुख पर्यटन और धार्मिक स्थल है:

  • वायु मार्ग:

     सबसे करीबी हवाई अड्डा गुवाहाटी में गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। यहां से मंदिर तक टैक्सी या कैब द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।

  • रेल मार्ग: 

    सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन कामाख्या रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से केवल कुछ किलोमीटर दूर है। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन भी एक बड़ा जंक्शन है, जहां से देश के प्रमुख शहरों के लिए ट्रेनें मिलती हैं।

  • सड़क मार्ग: 

    गुवाहाटी शहर से मंदिर तक सड़क मार्ग द्वारा अच्छी कनेक्टिविटी है। नीलाचल पर्वत की चोटी तक जाने के लिए बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं। भक्त पैदल भी पहाड़ चढ़कर दर्शन के लिए जाते हैं।

कामाख्या मंदिर (Maa kamakhya) की यात्रा केवल देवी दर्शन नहीं है, बल्कि भारत की अद्भुत आध्यात्मिक विरासत और शाक्त परंपरा को समझने का एक अनूठा अनुभव है। कामाख्या में पूजा | कामाख्या में तंत्र-मंत्र | Worship in Kamakhya

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डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।

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