रामायणनामा : सबसे पहले गिद्धराज जटायु के भाई ने दी थी सीताजी की खबर, हनुमानजी पर्वत के समान हुए

हनुमान जी ने सीता हरण की कथा बताई। सुग्रीव ने कहा कि एक दिन हम चर्चा कर रहे थे, तब एक राक्षस एक स्त्री (सीता जी) को ले जा रहा था। हमें देखकर उन्होंने 'राम! राम! राम!' पुकारकर वस्त्र गिरा दिए थे। यह कहते हुए सुग्रीव ने वस्त्र की पोटली राम जी को दे दी।

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Sandeep Kumar
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रविकांत दीक्षित.

श्री रामचरित मानस का किष्किंधाकाण्ड भगवान श्रीराम का 'हृदय' स्वरूप है। श्रीहरि अनंत हैं। उनकी कथा भी अनंत है। कोई उनका पार नहीं पा सकता। 

गोस्वामी तुलसीदास जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान के सुंदर रूप का वर्णन किया है। वे कहते हैं, 'प्रभु के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते।'

मानस में वर्णित चौथे सौपान 'किष्किंधाकाण्ड' में अब हम आपको बताने जा रहे हैं हनुमान मिलन से बालि वध और सीता जी खोज तक की दास्तां...।  

अब किष्किंधाकाण्ड...

राम जी से हनुमान जी का मिलन और सुग्रीव से मित्रता

शबरी के आश्रम से आगे बढ़ते हुए राम जी ऋष्यमूक पर्वत के पास पहुंचे। इसी पर्वत पर सुग्रीव रहते थे। राम जी—लक्ष्मण जी को आते देखकर सुग्रीव ने हनुमान जी से कहा, ये दोनों पुरुष बल और रूप के निधान हैं। तुम ब्रह्मचारी का रूप धारण कर इनके मन की बात जानो। हनुमान जी ब्राह्मण का रूप बनाकर राम जी के पास पहुंचे। उनका परिचय पूछा। राम जी बोले, हम दोनों भाई दशरथ के पुत्र हैं और पिता का वचन मानकर वन आए हैं। वन में राक्षस ने मेरी पत्नी जानकी को हर लिया है। हम उनकी खोज में निकले हैं। प्रभु को पहचानकर हनुमान जी ने उनकी वंदना की। हनुमान जी बोले, पहले मैं पहचान न सका। वंदना कर हनुमान जी ने असली रूप प्रकट कर दिया। उनके हृदय में प्रेम छा गया। राम जी ने उन्हें हृदय से लगा लिया।

चौपाई

देखि पवनसुत पति अनुकूला, हृदयं हरष बीती सब सूला।

नाथ सैल पर कपिपति रहई, सो सुग्रीव दास तव अहई॥ 

हनुमान जी ने कहा, हे नाथ! इस पर्वत पर वानरराज सुग्रीव रहते हैं। आप उनसे मित्रता कीजिए। वह सीताजी की खोज में मदद करेंगे। हनुमान जी यहां से राम जी और लक्ष्मण जी को पीठ पर चढ़ाकर पर्वत पर ले गए। सुग्रीव ने उनसे भेंट की। 

राम जी ने ली बालि वध की प्रतिज्ञा

 हनुमान जी ने सीता हरण की कथा बताई। सुग्रीव ने कहा कि एक दिन हम चर्चा कर रहे थे, तब एक राक्षस एक स्त्री (सीता जी) को ले जा रहा था। हमें देखकर उन्होंने 'राम! राम! राम!' पुकारकर वस्त्र गिरा दिए थे। यह कहते हुए सुग्रीव ने वस्त्र की पोटली राम जी को दे दी। सुग्रीव की बात सुनकर राम जी ने पूछा कि आप इस पर्वत पर क्यों रहते हैं, तब सुग्रीव ने उन्हें भाई बालि के बारे में बताया। सुग्रीव ने कहा, हे नाथ! एक बार मय दानव का पुत्र मायावी गांव आया। उसने हमला कर दिया, इसलिए मैं और भाई बालि उसके पीछे भागे। हमें देखकर वह मायावी गुफा में घुस गया। तब बालि ने मुझसे कहा कि तुम 15 दिन तक मेरा इंतजार करना। मैं न आऊं तो समझ लेना कि मारा गया। मैंने एक महीने भाई का इंतजार किया, पर वह नहीं आया। फिर एक दिन गुफा से रक्त की धारा बह निकली, मुझे लगा कि दानव ने बालि को मार दिया। अब वह मुझे मारने आएगा। इसलिए मैंने गुफा के दरवाजे पर एक पत्थर रखकर उसे बंद कर दिया। गांव वालों को लगा कि राजा नहीं हैं तो उन्होंने मुझे (सुग्रीव) को राजा बना दिया। कुछ दिन बाद बालि आया और जब उसने मुझे राजा के रूप में देखा तो वह क्रोध से भर गया। उसने मुझे मारा और मेरी पत्नी को छीन लिया। सुग्रीव की बात सुनकर राम जी ने बालि के वध की प्रतिज्ञा ले ली। 

रामायणनामा: किष्किंधाकाण्ड, भाग 4

लै सुग्रीव संग रघुनाथा, चले चाप सायक गहि हाथा। 

तब रघुपति सुग्रीव पठावा, गर्जेसि जाइ निकट बल पावा॥ 

यानी प्रतिज्ञा के बाद सुग्रीव को साथ लेकर राम जी बालि के पास पहुंचे। राम जी और सुग्रीव को देखकर बालि गुस्से से भर गया। उसने सुग्रीव के साथ युद्ध किया। सुग्रीव कमजोर पड़ने लगा। इस पर राम जी ने उसे और बलशाली किया। उसके गले में एक माला डाल दी, ताकि वे सुग्रीव को पहचान सकें। युद्ध में सुग्रीव बालि से जीत नहीं पाए और राम जी ने बाण से बालि को मार दिया। इसके बाद सुग्रीव राजा बने। अंगद को युवराज घोषित किया गया। इस बीच गर्मी का मौसम बीत गया था। वर्षा ऋतु आने वाली थी। राम जी ने कहा, हे सुग्रीव! तुम अंगद सहित राज्य करो। अब राम जी ने प्रवर्षण पर्वत पर कुटी बना ली थी। वे यहीं रहने लगे। इस तरह वर्षा ऋतु बीत गई। अब शरद ऋतु यानी सर्दियां आ गई थीं। इस अवधि में सुग्रीव सीता जी को खोजने का वचन भूल गए। लक्ष्मण जी क्रोधित होकर सुग्रीव के गांव पहुंचे। उन्होंने सुग्रीव को डर दिखाया। इधर, हनुमान जी ने सुग्रीव को राम जी के क्रोध के बारे में बताया। सुग्रीव तुरंत राम जी की शरण में पहुंचे और क्षमा मांगी। इसके बाद उन्होंने वानरों की सेना जुटाई। सुग्रीव ने कहा, एक महीने में सीता जी का पता लगाओ, जो एक महीने में नहीं लौटेगा मैं उसे मरवा दूंगा। यह सुनकर वानर (बंदर) चारों दिशाओं में निकल गए। 

गुफा से सीधे समुद्र किनारे जा पहुंचे वानर 

सब वानर सीता जी को खोजते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। वन में भटकते—भटकते वानरों को प्यास लगी। यह देखकर हनुमान जी चिंतित हो गए। उन्होंने एक पहाड़ पर चढ़कर नजर दौड़ाई तो एक गुफा दिखी। सभी वानर गुफा के पास पहुंचे। अंदर जाकर देखा तो सामने बगीचा और सुंदर तालाब था। वहीं मंदिर में एक तपोमूर्ति स्त्री बैठी थीं। सबने उन्हें नमस्कार किया। सीता जी की खोज बात बताई। तपस्विनी ने कहा कि सब गुफा के बाहर जाओ और आंखें बंद कर लो। आप सीता जी को पा जाओगे। वानरों ने ऐसा ही किया। जब आंखें खोली तो वानर सब समुद्र के किनारे खड़े थे। इस बीच तपस्विनी राम जी के पास पहुंचीं और उनकी वंदना की। प्रभु को हृदय में बसाकर वह बदरिकाश्रम चली गईं। इधर, एक महीना बीत गया था। वानरों ने सोचा कि समय तो खत्म हो गया। अब सीता जी की खबर लिए बिना लौटकर क्या करेंगे? अंगद बोले, दोनों तरह से हमारी मौत होगी। यहां सीता जी की सुध नहीं मिली और वहां जाने पर सुग्रीव हमें मार देंगे। यह देखकर जाम्बवान ने सबको शांत करने की कोशिश की। 

सम्पाती ने दी सीता जी की जानकारी

वानरों की बातें वहां एक पहाड़ में छिपे सम्पाती ( गिद्ध ) ने सुन लीं। अंगद ने यह देख लिया था। वे जटायु की कथा कहने लगे। जब सम्पाती ने जटायु के बारे में सुना तो वह पास आ गया। बोला, सीता जी की खोज में मैं आपकी मदद करूंगा। आप मुझे समुद्र किनारे ले चलो, मैं जटायु को तिलांजलि देना चाहता हूं। सम्पाती ने पूरी क्रिया की। दरअसल, जटायु और सम्पाती भाई थे। सम्पाती ने कहा, हे वीर वानरों! एक श्राप के वश में मैं यहां आपका इंतजार कर रहा था। बहुत पहले एक मुनि ने मुझसे कहा था कि त्रेतायुग में भगवान मनुष्य शरीर धारण करेंगे। उनकी स्त्री को राक्षसों का राजा हर ले जाएगा। उसकी खोज में प्रभु दूत भेजेंगे। उनसे मिलने पर तू पवित्र हो जाएगा। मुनि की वह वाणी आज सही साबित हुई है। सम्पाती ने वानरों को बताया कि त्रिकूट पर्वत पर बसी लंका नगरी में रावण रहता है। अशोक उपवन में उसने सीता जी को रखा है। मैं गिद्ध हूं और मेरी नजर अपार है, इसलिए मैं उन्हें देख सकता हूं। आप नहीं देख सकते।  

कवन सो काज कठिन जग माहीं

सम्पाती ने कहा, जो सौ योजन (चार सौ कोस) समुद्र लांघ सकेगा, वही राम जी का कार्य कर सकेगा। यह कहते हुए सम्पाती चला गया। ऋक्षराज जाम्बवान ने कहा, मैं बूढ़ा हो गया। अंगद बोले, मैं पार तो चला जाऊंगा, लेकिन लौटने में परेशानी होगी। जाम्बवान ने कहा- तुम योग्य हो, लेकिन सबके नेता हो, तुम्हे कैसे भेजें? जाम्बवान बोले, हे हनुमान्‌! तुम चुप क्यों हो? तुम पवन के पुत्र हो और बल में पवन के समान हो। तुम बुद्धि-विवेक और विज्ञान की खान हो। 

कवन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।

राम काज लगि तव अवतारा, सुनतहिं भयउ पर्बताकारा।।

यानी...ऐसा कौन सा काम है, जो तुमसे नहीं हो सकता। राम जी के काम के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान जी पर्वत के आकार के हो गए। हनुमान जी ने सिंहनाद करते हुए कहा कि मैं इस समुद्र को लांघ सकता हूं। रावण को मारकर यहां ला सकता हूं। जाम्बवान बताओ, मुझे क्या करना चाहिए। जाम्बवान बोले, तुम सीता जी को देखकर लौट आओ और उनकी खबर यहां बता दो। वानरों की सेना साथ लेकर राक्षसों का संहार करके राम जी सीता जी को ले आएंगे। 



नीलोत्पल तन स्याम काम कोटि सोभा अधिक,

सुनिअ तासु गुन ग्राम जासु नाम अघ खग बधिक॥ 

यानी जिनका कमल के समान श्याम शरीर है, जिनकी शोभा करोड़ों कामदेवों से भी ज्यादा है। जिनका नाम पापरूपी पक्षियों को मारने के लिए बधिक (व्याधा) के समान है, उन श्रीराम की लीला को अवश्य सुनना चाहिए। 



इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने चतुर्थ: सोपानः समाप्त:।

कलियुग के सभी पापों को नष्ट करने वाले श्री रामचरित्‌ मानस का यह चौथा सोपान समाप्त हुआ।



निरंतर 

अगले भाग में पढ़िए सुंदरकाण्ड...

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किष्किंधाकाण्ड भगवान श्रीराम सीता जी वानर सुग्रीव