रविकांत दीक्षित @ मेघनाद—कुंभकर्ण जैसे योद्धाओं का वध, राम—रावण युद्ध, सीता जी की अग्नि परीक्षा और फिर अयोध्या वापसी
श्री रामचरित मानस का लंकाकाण्ड श्री रघुनाथ जी का 'मुख' स्वरूप है। इसे युद्धकाण्ड भी कहते हैं, क्योंकि इसमें प्रभु श्रीराम और राक्षस राज रावण के युद्ध का वर्णन है। संत कहते हैं, जो दूसरों को रुलाता है वह 'राक्षस' है। जीवन में जब प्रभु की भक्ति आ जाती है तो राक्षसों का नाश हो जाता है।
मानस में वर्णित छठवें सौपान 'लंकाकाण्ड' में हम आपको बताने जा रहे हैं समुद्र पर सेतु के निर्माण से लेकर राम-रावण युद्ध और फिर भगवान श्रीराम की अयोध्या वापसी तक की दास्तां...।
रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं,
योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्।
मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं,
वन्दे कन्दावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्॥
शिवजी के सेवक, जन्म-मृत्यु के डर को दूर करने वाले, काल के समान मतवाले हाथी के लिए शेर के जैसे, योगियों के स्वामी, सकल गुणों के निधान, अजेय, निर्गुण, निर्विकार भगवान श्रीराम को मैं नमन करता हूं।
अब लंकाकाण्ड...
नल-नील ने शुरू किया पुल बांधना
समुद्र की बात सुनकर राम जी ने मंत्रियों को बुलाया और समुद्र पर सेतु बनाने की तैयारियों शुरू करा दी गईं। जाम्बवान ने नल-नील दोनों भाइयों को बुलाकर उन्हें पूरी बात बताई। उन्होंने पुल बांधना शुरू कर दिया। पत्थर पर वानर राम का नाम लिखते और उसे समुद्र में फेंक देते। यह देखकर राम जी प्रसन्न हुए और उन्होंने समुद्र तट पर शिवलिंग की स्थापना की। नल-नील ने मजबूत सेतु बांध। सेना चल पड़ी थी। सेतु पर भारी भीड़ हो गई थी। यह देखकर कुछ वानर उड़कर लंका की ओर जाने लगे। कुछ सेना मगरमच्छ, सांप और घड़ियाल जैसे जलीय जीवों पर सवार हो गई। कुछ दिन बाद विशाल समुद्र पार हो गया। समुद्र की दूसरी ओर डेरा डाला गया। राम जी की आज्ञा से वानर सेना फल-मूल खाने निकल गई। रास्ते में उन्हें कुछ राक्षस मिले तो उनके नाक-कान काट लिए। ऐसी ही स्थिति में राक्षस रावण के पास पहुंचे और उसे राम जी की सेना के बारे में बताया। राम जी के आने की बात सुनते ही रावण क्रोधित हो गया।
बाँध्यो बननिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस।
सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीस॥
यानी रावण ने कहा— वननिधि, नीरनिधि, जलधि, सिंधु, वारीश, तोयनिधि, कंपति, उदधि, पयोधि, नदीश को क्या सचमुच ही बांध लिया? राक्षसों ने हां में जवाब दिया तो वह हंसता हुआ अपने महल चला गया। वहां मंदोदरी ने रावण को कई तरह से समझाने की कोशिश की। उसने कहा, राम जी की शरण में जाकर उन्हें जानकी जी सौंप दीजिए और आप पुत्र को राज्य देकर वन में जाकर रघुनाथ जी का भजन कीजिए। यह सुनकर रावण और गुस्से में आ गया। उसने कहा, मैंने वरुण, कुबेर, पवन, यमराज सहित सभी दिक्पालों और काल को भी जीत रखा है। देवता, दानव और मनुष्य सभी मेरे वश में हैं। फिर तुझे इतना डर क्यों है? यह कहते रावण सभा में जा पहुंचा। वहां रावण के पुत्र प्रहस्त ने प्रभु का गुणगान किया, राक्षसों को समझाइश दी, लेकिन कोई नहीं माना।
अंगद का पैर नहीं हिला सके राक्षस
इधर, राम जी सेना सहित सुबेल पर्वत पर ठहरे थे। बालि पुत्र अंगद को दूत बनाकर लंका भेजा गया। लंका में प्रवेश करते ही उनकी रावण के पुत्र से भेंट हो गई, बातों ही बातों में दोनों में झगड़ा हो गया। इस पर अंगद ने उसे मार गिराया। यहां से अंगद रावण की सभा में पहुंचे। रावण ने कहा- अरे बंदर! तू कौन है? अंगद बोले, हे दशग्रीव! मैं रघुवीर का दूत हूं। मेरे पिता की तुमसे मित्रता थी, इसलिए हे भाई! मैं तुम्हारी भलाई के लिए ही आया हूं। क्रोधित होकर रावण ने अंगद को मारने का आदेश दिया। योद्धा उठ खड़े हुए, लेकिन कोई अंगद का पैर तक नहीं हिला सका। अंत में अंगद वापस राम जी के पास लौट गए। इधर, मंदोदरी ने फिर रावण को तरह—तरह से समझाया, लेकिन वह नहीं माना। यहां सुबेल पर्वत पर राम जी के नेतृत्व में युद्ध की तैयारी शुरू हो गई थी। वानरों की सेना के चार दल बनाए गए। लंका में भगदड़ मच गई।
जयति राम जय लछिमन जय कपीस सुग्रीव।
गर्जहिं सिंहनाद कपि भालु महा बल सींव॥
यानी बलवान वानर, भालू किसी शेर के समान ऊंचे स्वर में श्री रामजी की जय, लक्ष्मण जी की जय, वानरराज सुग्रीव की जय की उद्घोष करने लगे। वहां से राक्षस दौड़ पड़े। वानर किले पर चढ़ते हैं। वे झपटते हैं और राक्षसों के पैर पकड़कर उन्हें पृथ्वी पर पटककर भाग जाते हैं। फिर राक्षसों से परिघों और त्रिशूलों से मार-मारकर रीछ-वानरों को व्याकुल कर दिया। इधर, हनुमान जी पश्चिम द्वार पर मेघनाद से युद्ध कर रहे थे। अपनी सेना को व्याकुल देख उन्होंने गर्जना की और कूदकर लंका के किले पर आ गए। यहां से पहाड़ लेकर मेघनाद की ओर दौड़े। उसका रथ तोड़ डाला, सारथी को मार गिराया और मेघनाद की छाती में लात मारी। दूसरा सारथी मेघनाद को व्याकुल जानकर उसे रथ में डालकर तुरंत घर ले आया। अंगद और हनुमान रावण के महल पर चढ़ गए। उन्होंने कलश के साथ महल को ढहा दिया। यह देखकर रावण डर गया। अब शाम हो चुकी थी। अंगद और हनुमान के साथ सभी वानर राम जी के पास लौट आए।
भरत ने हनुमान जी को शत्रु समझा
उधर लंका में रावण ने मंत्रियों को बुलाया। यहां पता चला कि वानरों ने आधी सेना का संहार कर दिया है। इस पर सबसे वयोवृद्ध मंत्री माल्यवंत ने रावण को समझाया। रावण बोला, तू बूढ़ा हो गया, नहीं तो तुझे मार ही डालता। चला जा यहां से...यह कहते हुए रावण क्रोध से भर गया। रात बीत गई। सबेरे फिर युद्ध शुरू हुआ। वानरों ने फिर लंका को घेर लिया। तब मेघनाद ने ललकार की और बाण छोड़ने लगा। उसने फिर वीरघातिनी शक्ति चलाई। वह शक्ति लक्ष्मण जी की छाती में लगी। शक्ति लगने से उन्हें मूर्छा आ गई। यहां शाम हो गई थी। इसलिए दोनों ओर की सेनाएं लौट पड़ीं। भाई को मूर्छित देखकर राम जी व्याकुल हो गए। जाम्बवान ने कहा- लंका में सुषेण वैद्य रहता है, उसे लाना होगा, तभी लक्ष्मण जी की मूर्छा टूटेगी। हनुमान जी छोटा रूप धरकर गए और सुषेण को उसके घर समेत तुरंत ही उठा लाए। उसने संजीवनी बूटी लाने को कहा तो हनुमान जी तुरंत रवाना हो गए। उन्होंने पर्वत को देखा, पर औषधि न पहचान सके। तब हनुमान जी ने पर्वत को ही उखाड़ लिया और युद्ध स्थल की ओर बढ़ चले। रास्ते में जब वे अयोध्या के उपर से उड़ रहे थे, तब भरत जी ने जाना कि यह कोई राक्षस है, इसलिए उन्होंने बाण मारा। हनुमान जी जमीन पर गिर गए। उनके मुंह से राम निकला। भरत पास पहुंचे और सारा मर्म समझकर हनुमान जी को हृदय से लगा लिया। यहां से हनुमान जी युद्धस्थल पर पहुंचे। सुषेण वैद्य ने संजीवनी लक्ष्मण जी को दी तो वे उठ बैठे। जब रावण को पता चला कि लक्ष्मण की मूर्छा दूर हो गई तो वह क्रोधित हो गया। उसने कुंभकरण को नींद से जगाया। अगले ही दिन उसने युद्ध में मोर्चा संभाल लिया।
नागपाश के वश में हुए राम
अब प्रभु श्रीराम ने धनुष का टंकार किया, जिसकी भयानक आवाज सुनते ही शत्रु दल बहरा हो गया। फिर राम जी ने एक लाख बाण छोड़े। प्रभु के बाणों ने क्षण मात्र में भयानक राक्षसों को काट डाला। अब बारी कुंभकर्ण की थी। राम जी ने धनुष को खींचकर सौ बाण संधान किए। बाण छूटे और उसके शरीर में समा गए। हाथ कट गए। सिर रावण के पास जा गिरा। अब शाम हो चली थी। अगले दिन फिर भीषण युद्ध शुरू हुआ। मेघनाद मायामय रथ पर चढ़कर आकाश में चला गया और अट्टहास करके गरजा, जिससे वानरों की सेना में भय छा गया। मेघनाद के सांपों वाले बाणों से राम जी नागपाश के वश में हो गए। मेघनाद ने सांपों वाले लाखों बाण छोड़े। तब पक्षीराज गरुड़ पहुंचे और उन्होंने माया सर्पों के समूहों को पकड़कर खा लिया। इधर, अजेय होने के लिए मेघनाद यज्ञ करने लगा था। उसका युद्ध भंग करने के लिए लक्ष्मण जी तुरंत चले। उनके साथ अंगद, नील, मयंद, नल और हनुमान जी जैसे योद्धा थे। लक्ष्मण जी ने बाण से मेघनाद को मार डाला। हनुमान जी उसके शरीर को लंका के दरवाजे पर रख आए। रावण ने जब पुत्रवध की खबर सुनी तो वह जमीन पर गिर पड़ा।
वानरों ने रावण का यज्ञ भंग किया
अब रावण खुद युद्ध मैदान में उतरा। वह तेजी से वानरों को मारने लगा। लक्ष्मण जी ने मोर्चा संभाला। रावण ने करोड़ों अस्त्र-शस्त्र चलाए। लक्ष्मण जी ने उन्हें तिल के बराबर करके काटकर हटा दिया। फिर लक्ष्मण जी ने रावण के रथ को तोड़कर सारथी को मार डाला। लक्ष्मण जी ने रावण के दसों सिरों में सौ-सौ बाण मारे, पर उसे कुछ नहीं हुआ। फिर सौ बाण उसकी छाती में मारे तो वह पृथ्वी पर गिर पड़ा, उसे कुछ भी होश न रहा। फिर होश में आने पर रावण उठा और उसने वह शक्ति चलाई जो ब्रह्माजी ने उसे दी थी। प्रचण्ड शक्ति लक्ष्मण जी की ठीक छाती में लगी। वीर लक्ष्मण जी व्याकुल होकर गिर पड़े। तुरंत हनुमान जी पहुंचे और उन्होंने रावण को एक घूंसा मारा, जिससे वह जमीन पर गिर गया। हनुमान जी लक्ष्मण जी को राम जी के पास ले गए। राम ने उन्हें जगाया तो वह कराल शक्ति आकाश को चली गई। लक्ष्मण जी फिर धनुष-बाण लेकर दौड़े और सौ बाणों से उसका हृदय छलनी कर दिया। तब दूसरा सारथी उसे रथ में डालकर तुरंत लंका ले गया। वहां मूर्छा से जागकर रावण ने यज्ञ किया। यह बात विभीषण को पता चली तो उन्होंने राम जी को बताया कि यज्ञ रुकवाइए, वरना रावण को मारना आसान नहीं होगा। राम जी के आदेश से वानर रावण के महल में पहुंचे और यज्ञ विध्वंस कर डाला।
अग्निबाण से क्षणभर में भस्म हुआ रावण
अगले दिन देवताओं ने प्रभु श्रीराम को पैदल युद्ध करते देखा तो इंद्र ने अपना रथ भेज दिया। राम जी रथ में सवार हुए और रावण से युद्ध करने लगे, पर वह माया से गायब हो जाता। फिर रघुवीर ने अग्निबाण छोड़ा, जिससे रावण के सब बाण क्षणभर में भस्म हो गए। वह करोड़ों चक्र और त्रिशूल चलाता है, परन्तु प्रभु उन्हें बिना ही परिश्रम काटकर हटा देते हैं। फिर रावण ने दस त्रिशूल चलाकर रथ के चारों घोड़ों को मार दिया। यह देखकर राम जी ने रावण के दसों सिरों में दस-दस बाण मारे, जो आर-पार हो गए और सिरों से रक्त के पनाले बह चले। फिर राम जी तीस बाण मारे और बीसों भुजाओं समेत दसों सिर काटकर पृथ्वी पर गिरा दिए, लेकिन सभी अंगे कटते ही फिर नए हो गए। इस बीच रावण ने माया रची, जितने वानर थे, युद्ध भूमि में उतने ही रावण नजर आने लगे, तब राम जी ने उसे नष्ट कर दिया। देवता डर गए। यह देखकर अंगद ने पैर पकड़कर रावण को जमीन पर गिरा दिया। वह फिर उठा और बाण चलाने लगा।
तब रघुपति रावन के सीस भुजा सर चाप।
काटे बहुत बढ़े पुनि जिमि तीरथ कर पाप।
यानी रघुनाथ जी ने रावण के सिर, भुजाएं, बाण और धनुष काट डाले, पर वे फिर बढ़ गए। यह देखकर अंगद, हनुमान जी, नल, नील, सुग्रीव उस पर वृक्ष और पर्वतों का प्रहार करते हैं। वह उन्हीं पर्वतों और वृक्षों को पकड़कर वानरों को मारता है। अब रात हो चली थी। इस बीच त्रिजटा ने सीता जी को पूरा किस्सा बताया। यह सुनकर जानकी जी को बड़ा हर्ष हुआ।
अगले दिन फिर भीषण युद्ध हुआ। रावण को मरता न देख विभीषण ने राम जी को बताया कि इसके नाभिकुंड में अमृत का निवास है, आप नाभि पर बाण साधें। राम जी ने तुरंत बाण मारा और एक बाण ने नाभि के अमृत कुंड को सोख लिया। फिर उन्होंने तीस बाण मारे और उसके सिरों और भुजाओं को अलग कर दिया।
डोली भूमि गिरत दसकंधर। छुभित सिंधु सरि दिग्गज भूधर॥
धरनि परेउ द्वौ खंड बढ़ाई। चापि भालु मर्कट समुदाई॥
यानी...रावण के गिरते ही पृथ्वी हिल गई। समुद्र, नदियां, दिशाओं के हाथी और पर्वत क्षुब्ध हो उठे। रावण धड़ के दोनों टुकड़ों को फैलाकर भालू और वानरों के समुदाय को दबाता हुआ पृथ्वी पर गिर पड़ा। रावण की भुजाओं और सिरों को मंदोदरी के सामने रखकर रामबाण वहां चले, जहां राम जी थे। सब बाण जाकर तरकस में प्रवेश कर गए। यह देखकर देवताओं ने नगाड़े बजाए। ब्रह्माण्डभर में जय-जय की ध्वनि भर गई। इसके बाद रावण का दाह संस्कार किया गया। विभीषण का राज्याभिषेक हुआ। राम जी ने कहा, हे मित्र! मेरा कहना मानो और सीता को पैदल ले आओ, जिससे वानर उसको माता की तरह देखें। आपको बता दें कि वनवास के दौरान सीता जी के असली स्वरूप को पहले अग्नि में रखा था। अब राम जी उन्हें प्रकट करना चाहते हैं। इसीलिए राम जी ने कुछ कड़वी बात कही। यह सुनकर सीता जी बोलीं- हे लक्ष्मण! आग तैयार करो। इसके बाद सीता जी ने लीला से कहा, यदि मन, वचन और कर्म से मेरे हृदय में रघुवीर को छोड़कर कोई और नहीं है तो मेरे लिए चंदन के समान शीतल हो जाएं। ऐसा ही हुआ और जानकी जी ने चंदन के समान शीतल हुई अग्नि में प्रवेश किया। तब अग्नि ने शरीर धारण करके वेदों में और जगत में प्रसिद्ध वास्तविक सीताजी का हाथ पकड़कर उन्हें रामजी को वैसे ही समर्पित किया, जैसे क्षीरसागर ने विष्णु भगवान को लक्ष्मी समर्पित की थीं। देवताओं ने अमृत वर्षा की। सब ओर मंगल हो रहा था। पुष्पक विमान पर चढ़कर सीता-राम जी ने अवध के लिए प्रस्थान किया।
समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान।
बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान॥
यानी जो लोग रघुवीर की विजय की लीला को सुनते हैं, उन्हें भगवान नित्य विजय, विवेक और ऐश्वर्य देते हैं।
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इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने षष्ठः सोपानः समाप्तः।
कलियुग के समस्त पापों का नाश करने वाले श्री रामचरित मानस का यह छठा सोपान समाप्त हुआ।
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