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दशानन रावण
रावण को दशानन कहा जाता है, जिसका सीधा मतलब होता है 'दस सिर वाला'। रावण को यह नाम उसके दस सिरों के कारण मिला, जो उसकी मानसिक और शारीरिक शक्तियों के प्रतीक माने जाते थे।
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रावण के 10 सिरों के नाम
रावण के 10 सिर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार (मद) और ईर्ष्या (मत्सर) जैसे दस बड़ी बुराइयों के प्रतीक थे। दशहरा पर हम इन्हीं दुर्गुणों को खत्म करने का संदेश देते हैं।
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ब्रह्मा जी की तपस्या
एक पौराणिक कहानी के अनुसार, रावण ने अपनी कठिन तपस्या में ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए दस बार अपना सिर काटकर भेंट कर दिया था। रावण की इस तपस्या से खुश होकर ब्रह्मा जी ने उसे 10 सिरों का वरदान दिया।
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ज्ञान की निशानी
रावण एक बहुत बड़ा विद्वान था। उसके 10 सिर उसके गहन ज्ञान का भी प्रतीक थे, जिसका मतलब था कि उसे चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) और छह शास्त्रों की पूरी जानकारी थी।
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मायावी शक्ति
कुछ कहानियों के अनुसार, रावण के 10 सिर असली नहीं, बल्कि उसकी मायावी शक्ति का हिस्सा थे। इस शक्ति से वह लोगों में यह भ्रम पैदा कर देता था कि उसके दस सिर हैं।
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अमृत का रहस्य
रावण को भले ही अमरता का सीधा वरदान नहीं मिला था, पर उसे एक गुप्त वरदान मिला। उसकी जान या 'अमृत' उसकी नाभि में छिपा हुआ था। यही उसकी मृत्यु का रहस्य भी था।
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दशहरा का संदेश
दशहरा के दिन रावण के 10 सिरों को जलाया जाता है। यह प्रतीकात्मक रूप से बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है और हमें काम, क्रोध जैसी अपनी नकारात्मक आदतों को खत्म करने का संदेश देता है।