गीता जयंती पर पढ़ें जीवन को सफल बनाने वाले उपदेश, परेशानियों से मिलेगा छुटकारा, श्रीमदभगवत में है जीवन का सार

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Vivek Sharma
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गीता जयंती पर पढ़ें जीवन को सफल बनाने वाले उपदेश, परेशानियों से मिलेगा छुटकारा, श्रीमदभगवत में  है जीवन का सार

BHOPAL. आज 4 दिसंबर को गीता जयंती है। गीता हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है। गीता के उपदेश में समस्त जीवन का सार छिपा हुआ है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने व्यक्ति के जीवन में आने वाली कई परेशानियों को कम करने और सुख-शांति से जीवन जीने के बारे में विस्तार से बताया गया है। श्रीमदभगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के मन में महाभारत के युद्ध के दौरान पैदा होने वाले भ्रम को दूर करते हुए जीवन को सुखी और सफल बनाने के लिए उपदेश दिए थे। ऐसे में गीता जयंती के अवसर पर आइए जानते हैं गीता के कुछ उपदेश, जिनका पालन करने पर व्यक्ति का मोक्ष और शांति की प्राप्ति होती है। गीता का जन्म आज से लगभग 5141 वर्ष पूर्व हुआ था।

गीता ज्ञान की वह गंगा है, जिसका कोई अंत नहीं हैं। यहां हम आपके लिए लाएं हैं गीता के कुछ चुनिंदा संदेश-



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नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥



अर्थ- आत्मा को न शस्त्र  काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। अर्थात भगवान कृष्णइश श्लोक में आत्मा को अजर-अमर और शाश्वत कह रहे हैं।



यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

अर्थ- हे भारत (अर्जुन), जब-जब अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए अवतार लेता हूं।



परित्राणाय साधूनाम, विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥

अर्थ- सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।



कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

अर्थ- कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में नहीं। इसलिए कर्म करों और फल की चिंता मत करो।



 क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।

स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।



अर्थ- किसी भी काम में सफलता के लिए मन का शांत होना जरूरी है, क्योंकि क्रोध से बुद्धि का नाश हो जाता है। जो बुद्धिहीन होता है, वह स्वयं का ही सर्वनाश कर लेता है। इसलिए यदि आप किसी कार्य में सफलता पाना चाहते हैं तो क्रोध का त्याग कर दें। 



 अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।

नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।

अर्थ- इस श्लोक में शंका को गलत बताया गया है। जो व्यक्ति संदेह या शंका करने वाला होता है, उसे कभी भी सुख और शांति नहीं मिलती है। वह स्वयं का ही विनाश करता है।  न ही उसे इस लोक में सुख मिलता है और न ही परलोक में। 



 ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।

सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥



अर्थ-अगर आप अपने जीवन में सफलता पाना चाहते हैं तो विषयों और वस्तुओं के प्रति अपनी आसक्ति या लगाव को न रखें। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो फिर आपका उनसे लगाव होगा और उस चीज को पाने की कोशिश करेंगे और फिर ऐसे में जब वो चीज आपको नहीं मिलेगी तो आपको क्रोध आएगा। 



 हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।

तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

अर्थ- गीता के इस श्लोक मतलब है कि जब अर्जुन कौरवों के विरुद्ध युद्ध नहीं करना चाहते थे, तब श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम निडर होकर युद्ध करो, यदि मारे गए तो स्वर्ग मिलेगा और जीत गए तो धरती पर राज करोगे। इसलिए बिना डर के ही कोई काम करें। 



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गीता के प्रमुख उपदेश



चिंता का त्याग करना



भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं कि कभी भी व्यक्ति को व्यर्थ की चिंता नहीं करनी चाहिए। हर किसी को एक न एक दिन मरना है, आत्मा न तो पैदा होती है और न ही ये मरती है। आत्मा अमर है, इसलिए व्यर्थ की चिंता से मुक्ति होकर कर्म के रास्ते पर बढ़ना चाहिए।



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क्रोध पर नियंत्रण 



गीता के उपदेश में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि क्रोध करने से सभी तरह के कार्य बिगड़ने लगते हैं। क्रोध करने से इंसान का पतन आरंभ हो जाता है। क्रोध करने से व्यक्ति अच्छे और बुरे परिणाम में फर्क करना भूल जाता है, जिस कारण से मनुष्य की तर्क शक्ति क्षीण हो जाती है और वह पतन के राह पर चल देता है।



मन पर रखें काबू



गीता के उपदेश में श्रीकृष्ण ने बताया है कि जो व्यक्ति अपने मन पर काबू करना सीख लेता है, वह हर तरह की बाधा को आसानी से पार कर सकता है। इसलिए व्यक्ति को हर हाल में अपने मन पर नियंत्रण रखना चाहिए।



कर्म करते रहना



भगवान कृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को ज्ञान और कर्म को एक समान रखना चाहिए। कर्म करते रहना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।



शांति को करें प्राप्त



श्रीकृष्ण ने कहा कि जो व्यक्ति संपूर्ण कामनाओं को त्याग करके अहंकारहित और ममतारहित हो जाता है. उसे ही शांत प्राप्त होती है. व्यक्ति को काम, लोभ, मोह और मद का त्याग करना चाहिए.

ऐसे समय में प्रकट होते हैं भगवान

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि संसार में जब-जब धर्म की हानि होती है, अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब वे साकार रूप में लोगों के समक्ष प्रकट होते हैं. सज्जनों का उद्धार करने, पापियों का विनाश करने और धर्म की स्थापना करने के लिए वे युग-युग में प्रकट होते हैं



महत्त्व



गीता का जन्म मनुष्य को धर्म का सही अर्थ समझाने की दृष्टि से किया गया। जब गीता का वाचन स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने किया, उस वक्त कलियुग का प्रारंभ हो चुका था। कलियुग ऐसा दौर है जिसमें गुरु एवं ईश्वर स्वयं धरती पर मौजूद नहीं हैं, जो भटकते अर्जुन को सही राह दिखा पाएं। ऐसे में गीता के उपदेश मनुष्य जाति की राह प्रशस्त करते हैं। इसी कारण महाभारत काल में गीता की उत्त्पत्ति की गई। हिंदू धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिसमें किसी ग्रंथ की जयंती मनाई जाती है। इसका उद्देश्य मनुष्य में गीता के महत्त्व को जगाए रखना है। कलियुग में गीता ही एक ऐसा ग्रंथ है जो मनुष्य को सही-गलत का बोध करा सकता है। इस दिन विधिपूर्वक पूजन व उपवास करने पर हर तरह के मोह से मोक्ष मिलता है। यही वजह है कि इसका नाम मोक्षदा भी रखा गया है। गीता जयंती का मूल उद्देश्य यही है कि गीता के संदेश का हम अपनी जि़ंदगी में किस तरह से पालन करें और आगे बढ़ें। गीता का ज्ञान हमें धैर्य, दु:ख, लोभ व अज्ञानता से बाहर निकालने की प्रेरणा देता है। गीता मात्र एक ग्रंथ नहीं है, बल्कि वह अपने आप में एक संपूर्ण जीवन है। इसमें पुरुषार्थ व कत्र्तव्य के पालन की सीख है।



गीता पढ़ने के फायदे 




  • गीता का अगर आप नियमित पाठ करती हैं, तो आपका मन शांत बना रहता है और सारे काम बनते जाते हैं। 


  • गीता का पाठ करने से व्यक्ति के काम, क्रोध, लोभ और मोह मुक्त हो जाता है। ऐसे ही लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

  • मना चलायमान होता है और अगर आप मन नियंत्रण में रखना चाहती हैं तो आपको गीता का पाठ रोज करना चाहिए। 

  • गीता आपको सच और झूठ का ज्ञान कराती है। जब आपको यह ज्ञान हो जाता है, तब आप हमेशा विजय होते हैं। 

  • अच्छे और बुरे की समझ ही व्यक्ति को परिपक्‍व बनाती है। गीता का पाठ करने से आपके अंदर अच्‍छे और बुरे में फर्क करने की क्षमता आ जाती है। 

  • गीता का पाठ करने से व्यक्ति के अंदर का आत्मबल बढ़ता है। 

  • सकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के जीवन में मधुरता का संचार करती है, अगर आप गीता का पाठ नियमित करती हैं तो आपके जीवन में हमेशा खुशियां बनी रहती हैं। 

  • अगर आपको किसी से भय लगता है या फिर कोई चिंता आपको सता रही है, तो आपको आपको गीता का पाठ जरूर करना चाहिए क्योंकि इससे आपका डर दूर होता है। 


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