/sootr/media/media_files/2025/10/03/sharad-purnima-2025-2025-10-03-14-13-10.jpg)
शरद पूर्णिमा 2025: भारतीय सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा को 'सभी पूर्णिमाओं में श्रेष्ठ' माना गया है। सनातन धर्म में आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस रात को वर्ष की सभी पूर्णिमाओं में सबसे अधिक महत्वपूर्ण और पवित्र माना गया है।
क्योंकि इस दिन चंद्रमा अपनी संपूर्ण सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और उसकी किरणें धरती पर अमृत बरसाती हैं। यह रात धार्मिक, आध्यात्मिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद खास है।
यह वो रात है जब चंद्रमा अपनी पूर्ण शक्ति, सौंदर्य और सोलह कलाओं से युक्त होकर पृथ्वी पर अमृत की वर्षा करता है। साल 2025 में शरद पूर्णिमा का पर्व 6 अक्टूबर ,सोमवार को मनाया जाएगा। आइए जानें इनकी पौराणिक कथा...
पौराणिक कथा
शरद पूर्णिमा का महत्व (शरद पूर्णिमा महत्व) कई पौराणिक कथाओं से जुड़ा है, जिनमें दो मुख्य हैं:
देवी लक्ष्मी का प्राकट्य दिवस
पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, समुद्र मंथन के समय देवी लक्ष्मी की उत्पत्ति शरद पूर्णिमा की तिथि पर ही हुई थी। इसीलिए इस दिन को देवी लक्ष्मी के प्राकट्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात, धन और ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और देखती हैं कि "को जागृति?" अर्थात "कौन जाग रहा है?"।
जो भक्त इस रात जागरण करके माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उन पर मां की विशेष कृपा होती है और उन्हें धन-धान्य तथा सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। इसीलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं।
साहूकार की बेटियों का व्रत
एक प्रचलित व्रत कथा के मुताबिक, एक नगर में एक साहूकार की दो बेटियां थीं। दोनों पूर्णिमा का व्रत करती थीं। बड़ी बेटी पूरे विधि-विधान और निष्ठा से व्रत करती थी, जबकि छोटी बेटी व्रत को अधूरा ही छोड़ देती थी।
विवाह के बाद, बड़ी बेटी को स्वस्थ संतानें हुईं, जबकि छोटी बेटी की संतानें जन्म लेते ही मर जाती थीं। पंडितों से पूछने पर उसे पता चला कि उसके अधूरे व्रत के कारण ही ऐसा हो रहा है।
इसके बाद, उसने संपूर्ण विधि से शरद पूर्णिमा का व्रत किया और अपने व्रत के पुण्य से उसकी संतानें जीवित हो गईं। यह कथा बताती है कि इस पूर्णिमा का व्रत करने से कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है और संतान सुख सहित सभी कष्ट दूर होते हैं। शरद पूर्णिमा चंद्रोदय का समय
कोजागरी पूर्णिमा का रहस्य
इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा कहने के पीछे भी एक अद्भुत कथा है। 'कोजागरी' शब्द का अर्थ है - "को जागर्ति" यानी 'कौन जाग रहा है?'
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और हर घर के दरवाजे पर जाकर यह देखती हैं कि कौन भक्त जागरण कर रहा है।
जो भक्त जागरण कर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करते हुए मिलते हैं, उनके घर में देवी प्रवेश करती हैं। यह पर्व मुख्य रूप से बंगाल, ओडिशा और मिथिलांचल में बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है।
ये खबर भी पढ़ें...
चंद्रमा की सोलह कलाएं
शरद पूर्णिमा को विशेष बनाने वाला सबसे बड़ा कारण है चंद्रमा का सोलह कलाओं से पूर्ण होना। ये सोलह कलाएं हैं: अमृत, मनदा, पुष्टि, तुष्टि, कांति, ज्योतिसना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्णा, पूर्णामृत, स्वच्छा, तेजस्विनी, विशुद्धा, ज्ञाना और सुधा।
ज्योतिष और अध्यात्म में चंद्रमा की सोलह कलाओं को जीवन और चेतना के सोलह चरणों से जोड़ा गया है। ये कलाएं चंद्र चक्र के दौरान चंद्रमा के घटते-बढ़ते प्रकाश को दर्शाती हैं लेकिन आध्यात्मिक रूप से ये मानव के अंदर की पूर्णता का प्रतीक हैं। ये कलाएं मन की शांति, शक्ति, ज्ञान, धैर्य, त्याग, सौंदर्य, और ऐश्वर्य जैसे गुणों से संबंधित हैं।
श्रीकृष्ण का महारास
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण ने इसी शरद पूर्णिमा की रात को गोपियों के साथ महारास रचाया था। यह महारास भौतिक प्रेम नहीं, बल्कि परमात्मा और जीव के बीच के अलौकिक प्रेम का प्रतीक है।
इस रात हर गोपी के साथ एक कृष्ण थे, जो श्रीकृष्ण की सोलह कलाओं की पूर्ण शक्ति और माया का प्रदर्शन था। इसलिए यह तिथि प्रेम, आनंद और दिव्यता से परिपूर्ण है।
शरद पूर्णिमा की रात एकमात्र ऐसी रात है जब चंद्रमा भी अपनी सभी सोलह कलाओं से पूर्ण होकर धरती पर अपनी शीतल और अमृतमयी किरणें भेजता है, जो श्रीकृष्ण की दिव्यता का ही एक छोटा सा रूप होती है।
ये खबर भी पढ़ें...
खीर रखने का वैज्ञानिक विधान
शरद पूर्णिमा पर खीर बनाने और उसे रात भर चंद्रमा की शीतल चांदनी में खुले आसमान के नीचे रखने का विधान है जिसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक, दोनों कारण हैं:
धार्मिक कारण (अमृत वर्षा)
यह मान्यता है कि इस रात चंद्रमा की सोलह कलाओं से निकलने वाली किरणें, साधारण नहीं होतीं, बल्कि उनमें अमृत तत्व होता है। जब खीर को रात भर इन किरणों के नीचे रखा जाता है, तो यह माना जाता है कि चंद्रमा का अमृत खीर में समा जाता है। अगली सुबह इस खीर का सेवन करने से व्यक्ति के शरीर के रोग दूर होते हैं और उसे दीर्घायु प्राप्त होती है।
वैज्ञानिक कारण (स्वास्थ्य लाभ)
आयुर्वेद के मुताबिक, शरद ऋतु में दिन गर्म और रातें ठंडी होने लगती हैं, जिससे पित्त की मात्रा शरीर में बढ़ जाती है। खीर में दूध, चावल और चीनी मुख्य सामग्री होती है।
यह खीर ठंडी प्रकृति की होती है, जो बढ़ी हुई पित्त को शांत करने में सहायक होती है। इस रात चंद्रमा की किरणें सबसे अधिक पोषक और शीतल होती हैं, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करती हैं।
खीर को चांदनी में रखने से उसमें शीतलता और औषधीय गुण आ जाते हैं। अगली सुबह खाली पेट इस अमृतमयी खीर का सेवन करने से शरीर और मन को अद्भुत स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
रात में जब खीर को चांदी के बर्तन या किसी भी साफ बर्तन में रखा जाता है, तो उस पर चंद्रमा की अति-शुभ और औषधीय किरणें पड़ती हैं। कहा जाता है कि इस खीर को खाने से कई तरह के रोग-दोष दूर होते हैं और आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
क्यों है ये पूर्णिमा इतनी महत्त्वपूर्ण
शरद पूर्णिमा के अत्यधिक महत्वपूर्ण होने के मुख्य कारण इन तीन शक्तियों का एक ही रात में मिलन है:
पूर्ण चंद्रमा की शक्ति (सोलह कला):
यह रात वर्ष की सबसे ऊर्जावान रात होती है, जब चंद्रमा से निकलने वाली पॉजिटिव ऊर्जा और अमृतमयी किरणें अपने चरम पर होती हैं।
देवी लक्ष्मी का आगमन:
यह धन, ऐश्वर्य और सौभाग्य की देवी के जागरण और पूजा के लिए वर्ष का सबसे शुभ समय होता है।
भगवान श्रीकृष्ण का महारास:
यह रात हमें आनंद, प्रेम और आध्यात्मिक पूर्णता की ओर ले जाती है।
इस तरह शरद पूर्णिमा स्वास्थ्य (शरद पूर्णिमा खीर), धन और भक्ति तीनों का वरदान एक ही रात में लेकर आती है, जो इसे सनातन धर्म के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण पर्वों में से एक बनाती है।
शरद पूर्णिमा व्रत में रात जागरण और भक्ति करने से जीवन में सुख-समृद्धि और आरोग्य का वास होता है। इसलिए, 6 अक्टूबर 2025 की रात को मां लक्ष्मी और श्री हरि की पूजा करें, रात को जागरण करें और चांदनी रात में रखी हुई खीर का प्रसाद ग्रहण कर, जीवन में सुख, समृद्धि और पूर्णता प्राप्त करें।
ये खबर भी पढ़ें...