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Sandipani Ashram Ujjain:जन्माष्टमी का पर्व देशभर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण का नाता महाकाल की नगरी उज्जैन से भी रहा है?
भगवद महापुराण के मुताबिक, करीब 55 सौ साल पहले द्वापर युग में जब भगवान कृष्ण सिर्फ 11 साल के थे, तब उन्होंने उज्जैन के महर्षि सांदीपनि आश्रम में शिक्षा ग्रहण की थी। यह वही पावन स्थान है जहां उन्होंने न केवल वेदों और पुराणों का अध्ययन किया, बल्कि 64 कलाएं भी सीखीं।
आश्रम का वह मुख्य स्थान, जहां कभी गुरु सांदीपनि बैठा करते थे आज एक मंदिर के रूप में है। इस कमरे में गुरु-शिष्य परंपरा को दर्शाती हुई मूर्तियां स्थापित हैं जिसमें गुरु सांदीपनि की प्रतिमा और उनकी चरण पादुकाएं रखी गई हैं।
जिस जगह पर बैठकर बलराम, श्रीकृष्ण और सुदामा विद्या ग्रहण करते थे वहां आज उनकी प्रतिमाएं भी पढ़ने और लिखने की मुद्रा में विराजमान हैं। आइए जानें इसके इतिहास के बारे में...
सांदीपनि आश्रम का इतिहासउज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित सांदीपनि आश्रम (गुरु सांदीपनि आश्रम) एक बहुत ही खास और ऐतिहासिक जगह है। माना जाता है कि इसी जगह पर भगवान श्री कृष्ण, उनके भाई बलराम, और उनके बचपन के दोस्त सुदामा ने अपने गुरु महर्षि सांदीपनि से शिक्षा ली थी। कहा जाता है कि कृष्ण ने यहां सिर्फ 64 दिनों में 64 तरह की कलाएं सीख ली थीं। यहीं पर उनकी दोस्ती सुदामा से और भी गहरी हुई जो आज भी सच्ची दोस्ती की मिसाल है। आश्रम में गुरु सांदीपनि के साथ कृष्ण, बलराम और सुदामा की मूर्तियां हैं। यहां एक ऐसी जगह है जिसे अंकपाट कहते हैं, जहां माना जाता है कि कृष्ण अपनी पढ़ाई करते थे। आश्रम में 1 से 100 तक के अंक लिखा एक पत्थर भी है जो प्राचीन शिक्षा का तरीका दिखाता है। यहां सर्वेश्वर महादेव मंदिर भी है, जिसमें 6000 साल पुराना शिवलिंग है। आश्रम का गोमती कुंड भी बहुत पवित्र माना जाता है, जहां कहते हैं कि कृष्ण ने सभी नदियों का जल इकट्ठा किया था। यह आश्रम सिर्फ एक धार्मिक जगह नहीं, बल्कि ज्ञान, दोस्ती और इतिहास की एक खूबसूरत कहानी है। यह रोज सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक खुला रहता है और यह उज्जैन की यात्रा करने वालों के लिए एक जरूर देखने वाली जगह है। |
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कृष्ण और सुदामा की अमर दोस्ती
उज्जैन से लगभग 40 किलोमीटर दूर महिदपुर रोड पर नारायणा धाम में भगवान कृष्ण और उनके परम मित्र सुदामा की दोस्ती का एक अद्वितीय मंदिर है। यह दुनिया का एकमात्र मंदिर है जहां श्रीकृष्ण अपने मित्र सुदामा के साथ विराजमान हैं।
इस मंदिर से जुड़ी कहानी के मुताबिक, जब गुरु माता ने श्रीकृष्ण और सुदामा को लकड़ियां लाने के लिए जंगल भेजा था, तब लौटते समय तेज बारिश शुरू हो गई थी। श्रीकृष्ण और सुदामा ने बारिश से बचने के लिए इसी स्थान पर विश्राम किया था।
आज यहां मंदिर के दोनों ओर हरे-भरे पेड़ खड़े हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि ये वही लकड़ियां हैं जो श्रीकृष्ण और सुदामा ने एकत्र की थीं। यह वही पवित्र स्थान है जहां सुदामा ने सृष्टि को दरिद्रता से बचाया था। यह मंदिर उनकी अमर दोस्ती और अटूट विश्वास का प्रतीक है।
200 साल प्राचीन द्वारकाधीश मंदिर
पुराने शहर उज्जैन में स्थित द्वारकाधीश बड़ा गोपाल मंदिर करीब 200 साल पुराना है। यह नगर का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है, जिसका निर्माण संवत 1901 (साल 1844) में दौलतराव सिंधिया की पत्नी बायजा बाई ने करवाया था।
इसकी मूर्ति की स्थापना संवत 1909 (साल 1852) में हुई थी। इस मंदिर का एक अनोखा इतिहास है। इसके गर्भगृह में लगा रत्न जड़ित द्वार दौलतराव सिंधिया ने गजनी से प्राप्त किया था, जो सोमनाथ मंदिर की लूट में वहां पहुंच गया था।
मंदिर का शिखर सफेद संगमरमर से बना है, जबकि शेष मंदिर सुंदर काले पत्थरों से निर्मित है। यहां जन्माष्टमी (Janmashtami) के अलावा 'हरिहर का पर्व' भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
इस पर्व के दौरान भगवान महाकाल की सवारी आधी रात को यहां आती है, तब हरिहर मिलन यानि भगवान विष्णु और शिव का मिलन होता है। मान्यता है कि इस मिलन के बाद भगवान सृष्टि का भार सोपकर वैकुंठ धाम चले जाते हैं।
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मीरा माधव मंदिर
देशभर में आपने अक्सर भगवान कृष्ण को राधा या बलराम के साथ देखा होगा लेकिन उज्जैन के मक्सी रोड पर स्थित मीरा माधव मंदिर एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान श्री कृष्ण अपनी भक्त मीरा के साथ विराजमान हैं।
यह मंदिर ज्यादा प्राचीन नहीं है, इसका निर्माण 1971 में हुआ था लेकिन यह मध्य प्रदेश का एकमात्र मंदिर है जहां भक्त मीरा की भी पूजा होती है। जन्माष्टमी के दिन यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। यह मंदिर भक्त और भगवान के पवित्र रिश्ते का एक अद्भुत उदाहरण है।
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उज्जैन सांदीपनि आश्रम | जन्माष्टमी उत्सव उज्जैन