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Trinetra Ganesha of Ranthambore: राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित रणथंभौर का किला न केवल अपनी ऐतिहासिक भव्यता और बाघों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां एक ऐसा दिव्य और चमत्कारी मंदिर भी है जो पूरे देश में अपनी तरह का इकलौता है। यह मंदिर है त्रिनेत्र गणेश मंदिर, जो अरावली और विंध्यांचल पहाड़ियों के बीच 1579 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
इस मंदिर की अपनी एक अलग ही पहचान है, क्योंकि यहां भगवान गणेश अपने पूरे परिवार - दो पत्नियों रिद्धि-सिद्धि और दो पुत्रों शुभ-लाभ - के साथ विराजमान हैं।
ये तीन नेत्र भगवान शिव के तीसरे नेत्र का प्रतीक माने जाते हैं, जो ज्ञान और दूरदर्शिता को दर्शाते हैं। माना जाता है कि यही कारण है कि यहां आने वाले भक्तों की मुरादें हमेशा पूरी होती हैं।
पौराणिक इतिहास
त्रिनेत्र गणेश मंदिर का इतिहास 13वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर के निर्माण को लेकर कई पौराणिक कथाएं और ऐतिहासिक तथ्य प्रचलित हैं।
राजा हम्मीर देव चौहान की कथा:
सबसे प्रचलित कहानी के अनुसार, 1299 ईस्वी में दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी ने रणथंभौर के किले पर हमला कर दिया था। राजा हम्मीर देव चौहान ने अपने किले की रक्षा के लिए महीनों तक संघर्ष किया, लेकिन युद्ध के दौरान उनके पास राशन की कमी हो गई।
इसी दौरान, एक रात राजा हम्मीर को सपने में भगवान गणेश ने दर्शन दिए और उन्हें बताया कि उनकी सभी चिंताएं दूर हो जाएंगी। सुबह जब राजा ने किले में देखा, तो उन्हें एक स्वयंभू त्रिनेत्र गणेश की मूर्ति मिली। इस चमत्कारी घटना से प्रेरित होकर राजा ने उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया।
रामायण और द्वापर युग का संबंध:
कुछ मान्यताओं के मुताबिक, इस मंदिर का उल्लेख रामायण काल और द्वापर युग में भी मिलता है। कहा जाता है कि लंका की ओर कूच करते समय, भगवान श्री राम ने इसी स्थान पर भगवान गणेश का अभिषेक किया था।
एक अन्य मान्यता के मुताबिक, द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने अपनी शादी का पहला निमंत्रण पत्र गणेश जी को भेजा था, लेकिन गणेश जी को बुलाना भूल गए थे।
मूषक, जो गणेश जी का वाहन है, ने कृष्ण के रथ के आगे-पीछे सब जगह खोद दिया। तब कृष्ण ने अपनी भूल का अहसास किया और गणेश जी को मनाया। कहा जाता है कि जिस स्थान पर कृष्ण ने गणेश जी को मनाया, वह यही रणथंभौर का स्थान था।
मंदिर की अनूठी विशेषता
त्रिनेत्र गणेश मंदिर की सबसे खास बात यहां की प्रतिमा है। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान गणेश अपने तीसरे नेत्र के साथ विराजमान हैं।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र अपने पुत्र गणपति को सौंप दिया था, जिससे गणेश जी में महादेव की सारी शक्तियां समाहित हो गईं। इसलिए, गणेश जी का तीसरा नेत्र ज्ञान, बुद्धि और दूरदर्शिता का प्रतीक माना जाता है।
एक और अनोखी बात यह है कि यहां गणेश जी अपनी दो पत्नियों रिद्धि (समृद्धि) और सिद्धि (बुद्धि) और दो पुत्रों शुभ (लाभ) और लाभ (शुभ) के साथ पूरे परिवार के रूप में विराजमान हैं। यह दृश्य बहुत दुर्लभ है और भक्तों को एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।
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डाक से आते हैं निमंत्रण पत्र
त्रिनेत्र गणेश मंदिर की सबसे बड़ी और प्रसिद्ध मान्यता यह है कि यहां भक्त भगवान को अपने घर होने वाले हर मंगल कार्य का पहला निमंत्रण पत्र भेजते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
भक्त अपने घर में शादी, गृह प्रवेश, या किसी भी शुभ कार्य से पहले गणेश जी को पत्र लिखकर या डाक द्वारा निमंत्रण भेजते हैं, ताकि उनका कार्य बिना किसी बाधा के सफल हो।
रोजाना हजारों की संख्या में देश-विदेश से पत्र और निमंत्रण कार्ड डाक के माध्यम से मंदिर तक पहुंचते हैं। पोस्टमैन इन पत्रों को मंदिर के पुजारियों को सौंपते हैं और पुजारी भगवान के चरणों में इन पत्रों को रखकर आशीर्वाद लेते हैं।
यह एक ऐसी अनोखी परंपरा है जो भगवान और भक्तों के बीच एक अद्भुत रिश्ता दर्शाती है। राजस्थान में शादी से पहले पहला कार्ड त्रिनेत्र गणेश को भेजना एक आम परंपरा है। यह परंपरा इतनी पुरानी है कि आज भी दूर-दूर से लोग अपनी शादी का कार्ड यहां भेजते हैं ताकि उनका विवाह सफलतापूर्वक संपन्न हो।
पूजा-अर्चना और प्रमुख उत्सव
मंदिर में रोजाना पांच आरतियां होती हैं:
- प्रभात आरती: सुबह 6 बजे
- श्रृंगार आरती: सुबह 8 बजे
- राजभोग आरती: दोपहर 12 बजे
- संध्या आरती: शाम 6:30 बजे
- शयन आरती: रात 8 बजे
- इन आरतियों के समय मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है।
सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण उत्सव गणेश चतुर्थी है। यह त्योहार पूरे 10 दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान मंदिर को भव्य रूप से सजाया जाता है और लाखों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से यहां दर्शन के लिए आते हैं। इस अवसर पर विशेष धार्मिक अनुष्ठान, भजन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिससे पूरा क्षेत्र भक्तिमय हो जाता है।
मंदिर तक कैसे पहुंचें
रणथंभौर का त्रिनेत्र गणेश मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित है। यह मंदिर प्रसिद्ध रणथंभौर किले के अंदर है। मंदिर तक पहुंचना एक रोमांचक अनुभव है क्योंकि यह जंगल और पहाड़ियों के बीच स्थित है।
हवाई मार्ग से
- सबसे नजदीकी हवाई अड्डा: जयपुर का सांगानेर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (JAI) है। यह हवाई अड्डा रणथंभौर से लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पर है।
- हवाई अड्डे से आगे की यात्रा: जयपुर हवाई अड्डे से आप टैक्सी या कैब किराए पर ले सकते हैं। टैक्सी से रणथंभौर पहुंचने में करीब 3.5 से 4 घंटे का समय लगता है। रणथंभौर पहुंचकर, आपको किले के पास तक टैक्सी लेनी होगी।
रेल मार्ग से
- सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन: सवाई माधोपुर का रेलवे स्टेशन (SWM) है। यह रेलवे स्टेशन रणथंभौर से सिर्फ 10-12 किलोमीटर की दूरी पर है।
- ट्रेन से कैसे पहुंचें: सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, जयपुर और अहमदाबाद से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहां कई प्रमुख ट्रेनें रुकती हैं, जिससे यात्रियों के लिए पहुंचना आसान हो जाता है।
- स्टेशन से मंदिर तक: सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन से रणथंभौर किले तक जाने के लिए आप ऑटो-रिक्शा, टैक्सी या जीप किराए पर ले सकते हैं। यहां से मंदिर तक का सफर लगभग 20-30 मिनट का होता है।
सड़क मार्ग से
- बस से यात्रा: राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम (RSRTC) की बसें सवाई माधोपुर को राजस्थान के कई शहरों से जोड़ती हैं। जयपुर और कोटा जैसे शहरों से सीधी बसें उपलब्ध हैं। सवाई माधोपुर बस स्टैंड से, आप रणथंभौर किले तक स्थानीय परिवहन ले सकते हैं।
- निजी वाहन या टैक्सी से: अगर आप अपनी गाड़ी से जा रहे हैं, तो सड़क मार्ग काफी सुविधाजनक है। दिल्ली, जयपुर और आगरा जैसे शहरों से रणथंभौर तक सड़कें अच्छी हैं। गूगल मैप्स का उपयोग करके आप आसानी से रास्ता खोज सकते हैं।
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किले के अंदर मंदिर तक कैसे पहुंचें
रणथंभौर किले के मुख्य द्वार तक पहुंचने के बाद, आपको मंदिर तक पहुंचने के लिए थोड़ा पैदल चलना होगा।
- पैदल यात्रा: किले के मुख्य द्वार से मंदिर तक का रास्ता लगभग 3 किलोमीटर का है। यह रास्ता घुमावदार है और इसमें कई सीढ़ियां हैं। पूरी यात्रा में लगभग 1 से 1.5 घंटे का समय लग सकता है। रास्ता थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन प्राकृतिक सुंदरता और चारों ओर के शानदार दृश्य इसे बहुत सुखद बना देते हैं।
- वाहन की सुविधा: किले के अंदर निजी वाहनों को जाने की अनुमति नहीं है। केवल वन विभाग द्वारा अधिकृत कुछ जीपें ही जा सकती हैं, लेकिन यह सुविधा हमेशा उपलब्ध नहीं होती। इसलिए, पैदल चलना ही सबसे अच्छा विकल्प है।
कुछ महत्वपूर्ण सुझाव
- मौसम: रणथंभौर की यात्रा के लिए अक्टूबर से अप्रैल तक का समय सबसे अच्छा होता है क्योंकि इस दौरान मौसम सुहावना रहता है।
- पानी और स्नैक्स: मंदिर तक की पैदल यात्रा के दौरान पानी की बोतल और कुछ स्नैक्स साथ रखें।
- सुबह जल्दी जाएं: सुबह जल्दी यात्रा शुरू करने से आप धूप और गर्मी से बच सकते हैं, और मंदिर में भीड़ भी कम मिलेगी।
- रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान: अगर आप रणथंभौर जा रहे हैं, तो वन्यजीवों को देखने के लिए रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान की सफारी का भी आनंद जरूर लें।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
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देश भर में मशहूर गणेश मंदिर