विवाह भारतीय संस्कृति का एक प्राचीन और पावन संस्कार है, जो हर राज्य और समुदाय में अपनी अनोखी परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है।
यह केवल दो लोगों का मिलन नहीं, बल्कि दो परिवारों का भी संगम होता है। ऐसे में अगर बात करें महाराष्ट्र के विवाह की, तो इस विवाह के दौरान दुल्हनें लाल के बजाय हरी चूड़ियां पहनती हैं, जो वहां की सांस्कृतिक और धार्मिक आस्थाओं का प्रतीक है। यह रंग समृद्धि, खुशहाली और नई शुरुआत का संदेश देता है।
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हरी चूड़ियों का धार्मिक महत्व
महाराष्ट्र के मंदिरों में देवी का श्रृंगार अक्सर हरे रंग में होता है। हरी चूड़ियां, हरी बिंदी, हरी साड़ी और यहां तक कि देवी के आसन भी हरे रंग के होते हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि, हरे रंग को मराठी संस्कृति में शुभ माना जाता है। इसे जीवन, समृद्धि, सकारात्मकता और प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
सोने के कड़े का महत्व
मराठी दुल्हनें विषम संख्या (ओड नंबर) में हरी कांच की चूड़ियां पहनती हैं। जबकि सोने के कड़े, जिन्हें 'पटल्या' कहा जाता है, सम संख्या (इवन नंबर) में होते हैं।
यह संतुलन शादीशुदा जीवन में सौभाग्य और खुशहाली का प्रतीक है। मान्यता के मुताबिक, पटल्या दुल्हन के ससुराल वालों की ओर से दिया जाता है, जो ससुराल में उसके सम्मान और प्यार का संकेत है।
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आध्यात्मिक संदेश
हरी चूड़ियां दुल्हन के वैवाहिक जीवन की शुरुआत को सकारात्मक, रचनात्मक और प्रेमपूर्ण बनाती हैं। मान्यता है कि यह दुल्हन के जीवन में खुशहाली, स्वास्थ्य और समृद्धि लाती हैं।
यह रिवाज नायेर घरों में खून के रिश्तों को मजबूत करने का भी प्रतीक माना जाता है। जहां देश के कई हिस्सों में लाल रंग की चूड़ियां विवाह में शुभ और पारंपरिक मानी जाती हैं, वहीं महाराष्ट्र में हरे रंग की चूड़ियां इसी भूमिका को निभाती हैं। यह रंगों के सांस्कृतिक अर्थों और स्थानीय धार्मिक आस्थाओं का परिणाम है।
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