साल में एक दिन ही क्यों खुलता है उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर? जानें क्या है इस मंदिर का पौराणिक इतिहास

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Jitendra Shrivastava
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साल में एक दिन ही क्यों खुलता है उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर? जानें क्या है इस मंदिर का पौराणिक इतिहास

BHOPAL. आज श्रावण सोमवार है साथ ही महाकाल की शाही सवारी निकलेगी, इसके साथ ही नागपंचमी भी है। ऐसा संयोग 24 साल बाद बना है। श्रद्धालुओं के लिए आज (रविवार, 20 अगस्त) नागचंद्रेश्वर मंदिर रात 12 से खुल गया है और सोमवार, 21 अगस्त रात 12 बजे बंद होगा। प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है अभी तक महाकाल में 4 लाख से ज्यादा लोग पहुंच चुके हैं। सोमवार को ये संख्या 5 लाख तक पहुंचने का अनुमान है। मंदिर के द्वार खुलने से पहले ही भक्तों की लाइन लगी थी। मंदिर व्यवस्थापकों की परेशानी है कि नागचंद्रेश्वर मंदिर तीसरी मंजिल पर है। वहां जाने के लिए लोहे की सीड़ियां लगी हैं और 2 लाइन में ही श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए भेजा जाएगा। 1 मिनट में 1 श्रद्धालु ही दर्शन कर पाएगा, ऐसे में 2 लाख लोग ही नागचंद्रेश्वर के दर्शन कर सकते हैं। जबकि मंदिर में तकरीबन 5 लाख लोग दर्शन के लिए आएंगे। कलेक्टर एसपी रात 12 बजे से मंदिर की व्यवस्था में तैनात हैं।



मान्यता है नागचंद्रेश्वर मंदिर में स्वयं नागराज तक्षक निवास करते हैं



हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान शिव का आभूषण भी माना जाता है। भारत भूमि पर नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं मंदिरों में से एक है उज्जैन में नागचंद्रेश्वर मंदिर, जो उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। इस नागचंद्रेश्वर मंदिर की खास बात यह है कि यह मंदिर साल में केवल एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) को ही आम भक्तों के दर्शन के लिए खोला जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर में स्वयं नागराज तक्षक निवास करते हैं।



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विश्व का एकमात्र मंदिर जहां सर्पशय्या पर विराजमान हैं भोलेनाथ 



नागचंद्रेश्वर के इस मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत मूर्ति भी है, नागचंद्रेश्वर की इस अद्भुत मूर्ति में शिव-पार्वती फन फैलाए नाग के आसन पर विराजमान हैं। कहा जाता है कि यह मूर्ति नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी मूर्ति नहीं है। यह पूरी दुनिया में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें भगवान विष्णु की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और माता पार्वती दसमुखी सर्प शय्या पर विराजमान हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं। कहते हैं ये प्रतिमा नेपाल से यहां रखी गई थी। नागचंद्रेश्वर मंदिर के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।



हर साल रात 12 बजे खोले जाते हैं मंदिर के दरवाजे



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साल में एक बार नागपंचमी के दिन आयोजित होने वाले भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए हर साल रात 12 बजे मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, जो अगले 24 घंटों तक खुले रहते हैं। नागपंचमी की रात 12 बजे मंदिर में आरती होती है और मंदिर के दरवाजे दोबारा बंद कर दिए जाते हैं। भगवान नागचंद्रेश्वर जी के इस मंदिर की पूजा-अर्चना और सारी व्यवस्था आदि महानिर्वाणी अखाड़े के साधु-संतों द्वारा की जाती है। नागपंचमी के दिन दोपहर करीब 12 बजे कलेक्टर द्वारा विशेष पूजा की जाती है। सरकारी स्तर पर यह एक विशेष पूजा है। ये परंपरा काफी समय से चली आ रही है। इसके बाद रात करीब 8 बजे श्री महाकालेश्वर प्रबंध समिति की ओर से भी पूजन किया जाता है। नागपंचमी के अवसर पर बाबा महाकाल और भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने वाले भक्तों के लिए अलग-अलग प्रवेश की व्यवस्था की जाती है। उनकी लाइनें भी अलग-अलग हैं। रात 12 बजे मंदिर के दरवाजे आम दर्शनार्थियों के लिए खोल दिए जाते हैं, लेकिन दर्शन करने वाले भक्तों की भीड़ शाम से ही लाइन में लग जाती है और अपनी बारी का इंतजार करती है।



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नागचंद्रेश्वर मंदिर का इतिहास



यह मंदिर बहुत प्राचीन है। ऐसा माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के आसपास इस मंदिर का निर्माण कराया था। इसके बाद वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार 1732 में सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने करवाया था। उसी समय इस नागचंद्रेश्वर मंदिर का भी जीर्णोद्धार किया गया था। हर कोई चाहता है कि उन्हें नागराज पर विराजित शिव शंभू के दर्शन हो जाएं। एक ही दिन में दो लाख से अधिक श्रद्धालु नागदेव के दर्शन करते हैं।



नागचंद्रेश्वर के दर्शन से ही व्यक्ति सर्प दोष से मुक्त हो जाता है



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सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सांपों के राजा तक्षक नाग को अमरता का वरदान दिया। ऐसा माना जाता है कि तभी से तक्षक राजा भगवान के सानिध्य में रहने लगा। महाकाल वन में निवास करने से पहले उनकी मंशा थी कि उनके एकांत में कोई विघ्न न हो, इसलिए वर्षों से यह प्रथा चली आ रही है कि वे केवल नागपंचमी के दिन ही सामान्य दर्शन के लिए उपलब्ध होते हैं। बाकी समय मंदिर उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार बंद रहता है। इस मंदिर के दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी प्रकार के सर्प दोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है।


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