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भारत में इस समय एक बहस चल रही है कि लोगों को हफ्ते में 70 से 90 घंटे तक काम करना चाहिए। अगर ऐसा होता है, तो लोगों को पूरे हफ्ते काम करना पड़ेगा। वैसे भारत में आमतौर पर लोग हफ्ते में पांच या छह दिन काम करते हैं। सुबह से शाम तक ऑफिस, फैक्ट्री या दुकान में काम करना पड़ता है।
इससे थकान और तनाव बढ़ जाता है। ऐसे में क्या आप जानते हैं कि दुनिया में कुछ ऐसे भी देश हैं जहां लोग सिर्फ 4 दिन काम करते हैं। यहां वर्क-लाइफ बैलेंस को बहुत महत्व दिया जाता है।
इन देशों में काम के साथ-साथ आराम, परिवार और खुद की खुशी को भी महत्व मिलता है। आइए OECD की रिपोर्ट के मुताबिक, जानते हैं उन कुछ देशों के बारे में जहां 4 दिन काम करना पड़ता है और वहां का वर्कलोड कैसा होता है।
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🌍न्यूजीलैंड (New Zealand)
न्यूजीलैंड में कई कंपनियां अपने कर्मचारियों को हफ्ते में चार दिन काम करने की सुविधा देती हैं। यहां लोग आमतौर पर हर दिन 8 घंटे की बजाय 10 घंटे काम करते हैं, ताकि सप्ताह में एक दिन का अतिरिक्त आराम मिल सके। यहां की एवरेज एनुअल सैलरी 40 हजार से 60 हजार अमेरिकी डॉलर के बीच होती है, जो लगभग 30 लाख भारतीय रुपए के बराबर है।
🌍आयरलैंड (Ireland)
आयरलैंड में खासकर टेक्नोलॉजी और सर्विस सेक्टर में 4 दिन काम करने की पॉलिसी तेजी से पॉपुलर हो रही है। यहां कर्मचारियों को कम दिन काम करने के बावजूद हाई लेवल प्रोडक्टिविटी और फोकस बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यहां एवरेज एनुअल सैलरी 35 हजार से 55 हजार यूरो होती है, जो लगभग 30 लाख भारतीय रुपए के बराबर है।
🌍 जापान (Japan)
जापान की वर्क कल्चर बहुत मेहनती मानी जाती है, लेकिन हाल के वर्षों में यहां भी 4 दिन की वर्कवीक ट्रायल की जा रही है। जापान में लोग काम को लेकर बहुत ज्यादा डेडिकेटेड होता है, लेकिन धीरे-धीरे आराम और काम के बीच संतुलन को महत्व दिया जा रहा है। यहां एवरेज एनुअल सैलरी 4.5 से 6 मिलियन येन, जो लगभग 25 से 35 लाख भारतीय रुपए के बीच है।
🌍 आइसलैंड (Iceland)
आइसलैंड ने 4 दिन की वर्कवीक पर कई सफल प्रयोग किए हैं। यहां अधिकांश कर्मचारी हफ्ते में 4 दिन, लगभग 35-36 घंटे काम करते हैं। यह मॉडल उनके फिजिकल और मेन्टल हेल्थ के लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ है। यहां एवरेज एनुअल सैलरी करीब 40 हजार अमेरिकी डॉलर, जो लगभग 35 लाख भारतीय रुपए के बीच है।
🌍ऑस्ट्रेलिया (Australia)
ऑस्ट्रेलिया के कई बड़े कॉर्पोरेट्स अब 4 दिन की वर्कवीक लागू कर रहे हैं। यहां अधिकांश कर्मचारी 10 घंटे का शिफ्ट करते हैं ताकि सप्ताह में एक पूरा दिन आराम कर सकें। यहां एवरेज एनुअल सैलरी 50 हजार से 70 हजार ऑस्ट्रेलियन डॉलर, जो लगभग 38 ये 40 लाख भारतीय रुपए के बीच होती है।
🌍ब्रिटेन (United Kingdom)
ब्रिटेन ने 2022 में चार दिन का वर्किंग वीक को अपनाना शुरू किया। 61 कंपनियों और 300 से अधिक कर्मचारियों ने इस ट्रायल में हिस्सा लिया। अब ब्रिटेन की 200 से ज्यादा कंपनियों ने चार दिन का काम करने वाला सिस्टम लागू कर दिया है। ये कंपनियां मेनली मार्केटिंग और टेक्नोलॉजी सेक्टर से जुड़ी हैं, जहां काम और आराम का संतुलन बनाया जा रहा है।
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इन देशों में ऐसे पा सकते हैं जॉब
- जरूरी स्किल्स सीखें: विदेशी नौकरी के लिए जरूरी योग्यता और अनुभव हासिल करें।
- वीजा नियम समझें: काम करने के लिए संबंधित देश का वर्क वीजा लें।
- ऑनलाइन आवेदन करें: LinkedIn, Indeed जैसे पोर्टल्स और कंपनी वेबसाइट पर नौकरी ढूंढ़ें।
- नेटवर्किंग करें: विदेशी भारतीय समुदाय और प्रोफेशनल नेटवर्क से संपर्क बढ़ाएं।
- इंटर्नशिप करें: विदेशी इंटर्नशिप प्रोग्राम में भाग लेकर अनुभव और अवसर बढ़ाएं।
🤷♂️क्यों होते हैं विदेशों में 4 दिन काम
विदेशों में कई देशों ने चार दिन काम करने का सिस्टम अपनाया है, क्योंकि वे कर्मचारियों की खुशी और संतुलन को बहुत महत्व देते हैं। इसके पीछे कुछ मुख्य वजहें हैं जैसे
कर्मचारी की खुशहाली पर जोर
- विदेशों के कानून और कंपनियां इस बात को समझती हैं कि खुश कर्मचारी ही अच्छा काम करते हैं। इसलिए वे काम के घंटे कम करके कर्मचारियों को आराम, परिवार और खुद के लिए समय देते हैं। इससे मानसिक तनाव कम होता है और काम में मन लगता है।
कम समय में ज्यादा काम पूरा करना
- वहां की कंपनियां और कर्मचारी काम को बेहतर तरीके से प्लान करते हैं। वे ऐसी तकनीकें और तरीके अपनाते हैं जिससे कम घंटे काम करके भी पूरा काम समय पर पूरा हो जाता है। इससे काम की गुणवत्ता और उत्पादकता दोनों बढ़ती हैं।
प्रोडक्टिविटी पर ध्यान
- केवल काम के घंटों की संख्या पर नहीं, बल्कि काम की इफेक्टिवनेस पर फोकस किया जाता है। मतलब, कितनी देर काम किया यह नहीं, बल्कि काम कितना अच्छा और सही तरीके से हुआ, यह मायने रखता है।
स्वास्थ्य और परिवार को प्राथमिकता
- काम के साथ-साथ स्वास्थ्य और परिवार को भी बराबर महत्व दिया जाता है। ज्यादा काम करने से होने वाली बीमारियों और तनाव से बचाने के लिए आराम के दिन होते हैं, जिससे लोग ताजगी और ऊर्जा के साथ काम पर लौटते हैं।
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💼भारत में काम का दबाव
भारत में काम का दबाव बहुत ज्यादा होता है। रिसर्च के मुताबिक, यहां लोग हफ्ते में 48 से 60 घंटे काम करते हैं। मतलब, दिन में करीब 9 से 10 घंटे और हफ्ते में 6 दिन काम। कई बार ऑफिस में ज्यादा समय तक भी रुकना पड़ता है। इतना काम होने से लोग थक जाते हैं और उनके ऊपर तनाव बढ़ जाता है।
भारत में ट्रैफिक और सफर में भी बहुत समय लग जाता है, जिससे काम का बोझ और बढ़ जाता है। कुछ समय पहले एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यम ने हफ्ते में 90 घंटे काम करने की बात कही, जिसने वर्क-लाइफ बैलेंस पर बहस तेज कर दी है।
इससे पहले इन्फोसिस के संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति ने भी 70 घंटे काम करने का समर्थन किया था। इसलिए यहां काम और जिंदगी का संतुलन बनाना मुश्किल होता है।
काम का दबाव बहुत ज्यादा और कठिन होता है। इसलिए भारत में काम का दबाव न केवल समय के हिसाब से ज्यादा है बल्कि मानसिक और शारीरिक रूप से भी चुनौतीपूर्ण माना जाता है।
🤷♂️OECD क्या है
OECD यानी Organisation for Economic Co-operation and Development एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जिसमें दुनिया के विकसित और उभरते हुए लगभग 38 देश शामिल हैं। इसका मेन ऑब्जेक्टिव सदस्य देशों की आर्थिक और सामाजिक नीतियों का अध्ययन करना, उनका एनालिसिस करना और सुधार के सुझाव देना होता है।
OECD नियमित रूप से विभिन्न विषयों पर रिपोर्ट्स और आंकड़े जारी करती है, जैसे रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, काम के घंटे आदि। ये रिपोर्ट्स देशों से जुटाए गए रिलाएबल डेटा पर आधारित होती हैं। सरकारें, नीति निर्माता और शोधकर्ता इन रिपोर्ट्स का उपयोग नीति निर्धारण और सामाजिक-आर्थिक योजनाओं के सुधार के लिए करते हैं। OECD की रिपोर्ट्स विश्वसनीय और व्यापक मानी जाती हैं।
💼🤷♂️भारत में काम का एनालिसिस कैसे होता है
भारत में काम के घंटे और रोजगार की स्थिति मापने के लिए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) प्रमुख संस्था है, जो आर्थिक और सामाजिक आंकड़े एकत्रित करता है।
इसके अलावा, मजदूर बल सर्वेक्षण (Labor Force Survey) और राष्ट्रीय रोजगार सर्वेक्षण (National Employment Survey) के माध्यम से भी काम के घंटे, मजदूरी और रोजगार की जानकारी ली जाती है। श्रम मंत्रालय और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय समय-समय पर रोजगार से जुड़ी रिपोर्टें जारी करते हैं।
भारत, OECD और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) जैसे वैश्विक संस्थानों के साथ डेटा साझा करता है, जिससे देश की स्थिति का वैश्विक स्तर पर विश्लेषण संभव होता है। इस तरह अलग-अलग सोर्सेज से रोजगार से जुड़े आंकड़े जुटाए और रिपोर्ट किए जाते हैं।
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