मध्य प्रदेश में करीब 25 साल पहले प्रारंभिक शिक्षा के लोकव्यापीकरण के लिए दो महत्वपूर्ण कदम उठाए गए थे। पहला कदम था केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया सर्व शिक्षा अभियान को लागू करना और दूसरा था राज्य शिक्षा केंद्र का गठन। सर्व शिक्षा अभियान को सफल बनाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2002 भी पारित किया था, जिसे हम जन शिक्षा अधिनियम के नाम से जानते हैं। इस अधिनियम का लोकार्पण देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था। जिनका आज जन्म दिवस है। जन शिक्षा अधिनियम लागू होने के 20 साल बाद हम सभी को शिक्षा के वर्तमान परिणाम और समाज के परिदृश्य की निरपेक्ष समीक्षा करना चाहिए।
मध्य प्रदेश में कानून, फिर भी बच्चे सीखने से वंचित
अब प्रदेश में समाज द्वारा की गई अपेक्षाओं पर शिक्षक खरे नहीं उतर पा रहे हैं। अधिकांश शिक्षक अपने अपने स्तर पर बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन सरकार और समाज द्वारा अपने बच्चों के खराब परिणामों के लिए हमेशा शिक्षकों को ही दोषी करार दिया जाता है। यह विचारणीय है कि आखिर क्यों अभी भी ज्यादातर बच्चे सीखने में सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं? जन शिक्षा अधिनियम लागू होने के बाद यह जरूरी था कि सभी बच्चे स्कूलों में नामांकित किए जाते, वे प्रतिदिन स्कूल आते और सीखते, ताकि वे निर्बाध गति से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर पाते।
जन शिक्षा अधिनियम के अनुसार, काम करने के लिए सरकार की ओर से शिक्षा तंत्र को बहुत सारे अधिकार और संसाधन उपलब्ध कराए गए, लेकिन बच्चों के सीखने का अधिकार उन्हें नहीं मिल सका। 2009 में राष्ट्रीय बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) पारित हुआ, जिसे 1 अप्रैल 2010 से लागू किया गया। इस कानून में भी अनेक प्रावधान किए गए। मध्य प्रदेश में इन दोनों कानूनों के होते हुए भी यदि बच्चे पढ़ने- सीखने के अधिकार से वंचित हैं तो सभी को इसके लिए सोचने की जरूरत है। सबसे ज्यादा राज्य शिक्षा केंद्र को यह विचार करना चाहिए कि उससे कहां चूक हुई है।
हमेशा शिक्षक की भूमिका-उत्तरदायित्व पर चर्चा, प्रशासन उत्तरदायी क्यों नहीं?
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को बच्चों से बेहद लगाव था। इसलिए उन्होंने अपने भोपाल आगमन पर बच्चों से बात करते हुए जन शिक्षा अधिनियम का लोकार्पण किया था। आज जब देश में उनका जन्मदिवस विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाया जा रहा है तो हम सभी को खुद से ही पूछना चाहिए कि हम सफल क्यों नहीं हो पाए हैं? बच्चों को सिखाने में शिक्षकों की भूमिका और उत्तरदायित्व के बारे में तो बहुत चर्चा, चिंता और चिंतन किया जाता है। उनके विरुद्ध कई तरह की बातें भी की जाती हैं और कार्रवाई भी, लेकिन शिक्षा प्रशासन को कभी जिम्मेदार नहीं माना जाता।
राज्य शिक्षा केंद्र की क्या उपयोगिता, अरबों की कार्य योजनाएं भी पानी में
राज्य शिक्षा केंद्र में शामिल अनेक लोग तो लंबे समय से काम कर रहे हैं उनकी भावना और किए जा रहे काम की प्रक्रिया कितनी पवित्र है यह जानने-समझने की अब बहुत जरूरत आ पड़ी है। बीस साल की अवधि, लाखों लोग और सारे संसाधन उपयोग करने के बाद भी यदि परिणाम अपेक्षित नहीं हैं तो फिर राज्य शिक्षा केन्द्र क्यों बने रहना चाहिए? प्रति वर्ष बनती अरबों रुपए की वार्षिक कार्य योजनाओं के परिणाम प्राप्त क्यों नहीं हो पा रहे हैं? सभी बच्चे स्कूलों में नामांकित क्यों नहीं हो पाए हैं और जो नामांकित हो भी गए हैं, वे सीखते हुए अपनी पढ़ाई पूरी क्यों नहीं कर पाते?
उत्तर स्पष्ट है कि जिनको पढ़ाने-सिखाने का अधिकार देना था और सहयोग भी, उन शिक्षकों को तो बेचारा बना दिया गया है। उनके सभी मौलिक अधिकार छीन लिए गए। उनके नाम पर खुद राज्य शिक्षा केंद्र ही किताबें बनाने, शिक्षण की विधियों का निर्धारण करने और बच्चों के मूल्यांकन करने के उपकरण तैयार करने का काम राज्य शिक्षा केंद्र में बैठे अनुभवहीन लोगों द्वारा किए जाने पर आमदा हो गया। स्कूल, शिक्षक और शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान, राज्य शिक्षा केंद्र के आज्ञापालक बनकर रह गए हैं। ठेठ चुनावी कार्यक्रमों की तरह एक जैसा कार्यक्रम घोषित कर प्रदेशभर में एक समान प्रक्रियाएं संचालित की जा रही हैं। इस परिस्थिति में भी अनेक क्रियाशील शिक्षकों को इस बात पर संतोष और गर्व है कि अभी भी सरकार और समाज में उनकी छवि बहुत अच्छी है। उनके काम से तो सब खुश हैं। समाज और सरकार की यह दृष्टि शिक्षकों के पक्ष में हैं या विरोध में, इसे सबको गहराई से समझने की जरुरत है ।
शिक्षकों का काम कोई और तय कर रहा है, कई सवाल उठते हैं
शिक्षा के वर्तमान परिणाम और परिदृश्य में राज्य शिक्षा केंद्र को शिक्षकों की भूमिका को सबल बनाने के लिए क्या करना चाहिए, यह विचारणीय है। यदि राज्य शिक्षा केंद्र में सब कुछ ठीक चल ही रहा है तो फिर शिक्षक की बात समाज और सरकार में सुनी क्यों नहीं जाती? क्यों शिक्षकों को प्रोत्साहित करने की अपेक्षा हतोत्साहित किया जाता है? क्यों अब शिक्षकों के प्रमुख काम (पाठ्य सामग्री का चयन, शिक्षण विधि का चयन और बच्चों के मूल्यांकन की प्रक्रिया का निर्धारण) खुद सरकार यानी राज्य शिक्षा केंद्र तय कर देता है? क्यों शिक्षकों की सक्षमता बढ़ने की अपेक्षा उन पर से भरोसा घटता जा रहा है? क्यों शिक्षकों की सामूहिक उपेक्षा की जाती है? इन सभी बड़े प्रश्नों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
शिक्षकों की विश्वसनीयता कमजोर पड़ रही है
करीब 12 साल पहले गठित शिक्षक संदर्भ समूह की तो दृढ़ मान्यता है कि सभी शिक्षक बहुत अच्छे से अपना काम पूरा करने के लिए तैयार हैं, लेकिन अभी उन्हें अनेक प्रकार से मिल रही मानसिक प्रताड़ना के कारण ही उनका मन खराब हो जाता है, इसलिए वे चाहकर भी अच्छा और परिणाममूलक शिक्षण नहीं कर पा रहे। इसी वजह से समाज में शिक्षकों की सामूहिक छवि और विश्वसनीयता कमजोर पड़ गई है। शिक्षकों की सामूहिक छवि को बदलने के लिए शिक्षक अकेले-अकेले कार्य करने में सफल नहीं हो सकते हैं। व्यक्तिगत रूप से अच्छा काम करने पर उनकी खुद की प्रगति तो होगी लेकिन शिक्षकों की सामूहिक छवि खराब ही बनी रहेगी।
शिक्षकों के भी आत्मावलोकन की जरूरत
15 अक्टूबर देश के पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम का जन्मदिन है। वे अपने जीवन के अंतिम क्षण तक शिक्षक बने रहे। शिक्षक की आदर्श छवि के रूप में वे सरकार और समाज में सर्वमान्य हैं। अब सभी शिक्षकों को और सरकार की ओर से राज्य शिक्षा केंद्र को भी को भी सोचना ही होगा कि जब सभी शिक्षक सक्रिय होकर काम करेंगे तो ही शिक्षण के अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। इस दृष्टि से राज्य शिक्षा केंद्र में शिक्षक संदर्भ समूह की पहचान यदि इस रूप में हो कि यह समूह शिक्षकों की सामूहिक छवि बदलने में सफल हो सकता है तो ही इसकी सार्थकता सिद्ध होगी। शिक्षक संदर्भ समूह द्वारा संचालित अभियान मेरा विद्यालय मेरी पहचान शिक्षकों की सामूहिक छवि बदलने वाला है, जिसकी शुरुआत देश के सर्वमान्य डॉ. एसएन सुब्बाराव ने किया था। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने सुब्बाराव को 2002 में सम्मानित किया था।
अब मेरा विद्यालय मेरी पहचान अंतर्गत विद्यालय को आनंद घर बनाओ अभियान को परिणाममूलक बनाने की जरूरत है। राज्य शिक्षा केंद्र की ओर से शिक्षकों को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षाविद गिजू भाई विद्यालय पुरस्कार समारोह राज्य और जिले स्तर पर आयोजित किए जा सकते हैं। डॉ. कलाम का जन्मदिवस विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाते हुए शिक्षक भी अपना आत्मावलोकन कर सकते हैं कि हमें श्रेष्ठता की ओर उन्मुख करने में सहायक कौन हो सकता है? शिक्षकों को खुद ही अपने बच्चों और विद्यालय के बारे में श्रेष्ठ और सार्थक पहल करनी होगी। साथ ही अपने काम को शानदार ढंग से करते हुए बच्चों के सीखने के परिणामों को सफलता की ओर ले जाना होगा। इसके लिए सभी को शिक्षण की आजादी के लिए तैयार होकर अपनी सारी ऊर्जा बच्चों के हित में लगानी होगी।
शिक्षक के रुप में हम सभी का यह पुनीत कर्तव्य है कि आज हम श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात पूर्व राष्ट्रपति कलाम जी को याद करते हुए उनके द्वारा किए गए काम को आगे बढ़ाते हुए सफल शिक्षक (बच्चों के प्रिय शिक्षक) बन जाने का संकल्प ले सकते हैं।
(लेखक डॉ. दामोदर जैन, समन्वयक शिक्षक संदर्भ समूह (पूर्व सदस्य, NCERT) राज्य शिक्षा केंद्र, भोपाल)