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आज के समय में जमीन की कमी और पानी की समस्या ने खेती को चुनौती बना दिया है। ऐसे में आजकल किसान नई तकनीकों का इस्तेमाल करके कम खर्च में ज्यादा फसल उगाने की कोशिश कर रहे हैं। ये नई और लोकप्रिय तकनीक है हाइड्रोपोनिक खेती।
हाइड्रोपोनिक्स एक नई तकनीक है जिसमें मिट्टी के बिना पौधों को पोषक तत्वों वाले पानी में उगाया जाता है। इससे कम जगह और पानी में ज्यादा प्रोडक्शन संभव होता है।
भारत में भी कई किसान इस विधि को अपना रहे हैं और अच्छा उत्पादन पा रहे हैं। आइए समझते हैं हाइड्रोपोनिक्स क्या है, इसमें क्या सीखना होता है और भारत में इसकी स्थिति क्या है।
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🚜🌿 हाइड्रोपोनिक खेती क्या है
हाइड्रोपोनिक खेती एक मॉडर्न फार्मिंग सिस्टम है जिसमें मिट्टी का उपयोग नहीं किया जाता। पौधों की जड़ों को सीधे पोषक तत्वों से भरे पानी में रखा जाता है। इससे पौधे सीधे जरूरी पोषण लेते हैं और तेजी से बढ़ते हैं। यह तरीका पारंपरिक खेती की तुलना में पानी और जमीन की बचत करता है। इसका मतलब है कम जगह, कम पानी और ज्यादा उत्पादन।
इसमें पौधों की वृद्धि तेज होती है, पानी की बचत होती है और पौधों को कीट या रोगों से बचाने में आसानी रहती है। इस तकनीक का उपयोग विशेषकर लेट्यूस, पालक, टमाटर, मिर्च और हर्ब्स जैसे फसलों के उत्पादन में किया जाता है।
खास बात यह है कि इस खेती को घर के अंदर भी किया जा सकता है, जिससे शहरी किसानों के लिए भी अवसर खुल गए हैं। ये खेती भविष्य की कृषि की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।
🤔 🌿हाइड्रोपोनिक खेती के टाइप
💧विकिंग बेड सिस्टम (Wicking Bed System):
इसमें पौधों की जड़ें पोषक तत्वों वाले पानी में होती हैं। पौधे जरूरत के मुताबिक पानी को अवशोषित (absorb) करते हैं। यह तरीका छोटे स्तर पर, जैसे घर में, उपयोग के लिए अच्छा है।
💧फ्लड एंड ड्रेन सिस्टम (Flood and Drain):
इस प्रणाली में पानी को एक ट्रे में भरकर पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है और फिर वापस निकाल लिया जाता है। इससे जड़ों को ऑक्सीजन मिलती है।
💧न्यूट्रिएंट फिल्म टेक्नीक (Nutrient Film Technique - NFT):
यहां पौधों की जड़ें पतली फिल्म की तरह पोषक तत्वों वाले पानी में होती हैं, जो लगातार बहता रहता है। इससे पौधों को लगातार पोषण मिलता रहता है।
💧डीप वॉटर कल्चर (Deep Water Culture - DWC):
पौधों की जड़ों को ऑक्सीजनयुक्त पानी में रखा जाता है। एयर पंप से पानी में ऑक्सीजन दी जाती है। यह तरीका हरे पत्तेदार सब्जियों के लिए उपयुक्त है।
💧 एरोपोनिक्स (Aeroponics):
इसमें जड़ों को हवा में लटकाया जाता है और पोषक तत्वों वाले पानी को सूक्ष्म बूंदों के रूप में जड़ों पर छिड़का जाता है। इससे जड़ों को ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है और वे तेजी से बढ़ती हैं।
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🚜💧 हाइड्रोपोनिक्स खेती कैसे काम करती है
स्थान और सिस्टम का चयन (Site and System Selection)
- सबसे पहले आपको एक उपयुक्त स्थान चुनना होगा जो प्राकृतिक या आर्टिफीसियल लाइट रिसीव कर सके।
- यह स्थान छत, ग्रीनहाउस या इनडोर रूम भी हो सकता है।
पौधों का चयन (Plant Selection)
- हाइड्रोपोनिक्स के लिए ताजी और जल्दी बढ़ने वाली फसलें जैसे लेट्यूस, पालक, धनिया, टमाटर, मिर्च, स्ट्रॉबेरी आदि बेहतर होती हैं।
- बीजों की क्वालिटी पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
पोषक तत्वों का मिश्रण (Nutrient Solution Preparation)
- पानी में सही मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम जैसे तत्व मिलाए जाते हैं।
- यह मिश्रण पौधों की जरूरत के अनुसार बनता है।
- pH संतुलन भी जरूरी होता है, जो 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए।
रोपण (Planting)
- बीजों को पहले नर्सरी में अंकुरित किया जाता है।
- फिर पौधों को हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम में लगाया जाता है, जहां उनकी जड़ें पोषक तत्वों वाले पानी में रहती हैं।
प्रकाश और तापमान नियंत्रण (Light and Temperature Control)
- पौधों के विकास के लिए पर्याप्त प्रकाश (प्राकृतिक या LED लाइट) और तापमान बनाए रखना जरूरी है।
- तापमान 18-25 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए।
जल और पोषक तत्वों का प्रबंधन (Water and Nutrient Management)
- पानी की गुणवत्ता और पोषक तत्वों के स्तर की लगातार जांच होती है।
- पोषक तत्वों की कमी या अधिकता पर तुरन्त सुधार किया जाता है।
कीट और रोग प्रबंधन (Pest and Disease Control)
- कीट और रोगों से बचाव के लिए जैविक या रासायनिक उपाय किए जाते हैं।
- साथ ही सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है।
कटाई और विपणन (Harvesting and Marketing)
- फसल के पकने पर उसे काटकर बाजार, रेस्टोरेंट या सीधे उपभोक्ता तक पहुंचाया जाता है।
- ताजी और बिना रसायन वाली सब्जियों की मांग अधिक होती है।
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🌾📈 भारत में हाइड्रोपोनिक्स की वर्तमान स्थिति
भारत में हाइड्रोपोनिक्स खेती अभी डेवलप्ड स्टेज में है, लेकिन तेजी से बढ़ती लोकप्रियता इसे भविष्य की कृषि प्रणाली के रूप में स्थापित कर रही है। मेट्रो शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, पुणे, बैंगलोर और हैदराबाद में हाइड्रोपोनिक्स फार्म स्थापित हो रहे हैं।
यह मेनली रेस्टोरेंट, होटल और शॉपिंग मॉल के लिए ताजी सब्जियां उगाने के लिए किया जाता है। सरकारी और निजी संस्थान इस क्षेत्र में प्रशिक्षण और सहायता भी दे रहे हैं। जैसे ICAR (Indian Council of Agricultural Research) और NITI Aayog ने शहरी कृषि को बढ़ावा देने के लिए पहल की है।
इसके साथ ही कई युवा इंटरप्रेन्योर इस तकनीक को अपनाकर सफल व्यवसाय चला रहे हैं। हालांकि, इसकी लागत अभी पारंपरिक खेती से अधिक होती है, लेकिन कम जगह और उच्च उत्पादन इसे लाभकारी बनाता है।
🌱💧 हाइड्रोपोनिक खेती के फायदे
- इस प्रणाली में पारंपरिक खेती की तुलना में 90% तक पानी की बचत होती है।
- पौधों की बढ़वार 25 से 50% तक तेज होती है।
- पौधों को सीधे पोषक तत्व मिलने से उनकी पौष्टिकता बेहतर होती है।
- मिट्टी से होने वाले कीट और रोगों का खतरा कम हो जाता है।
- मौसम का प्रभाव कम पड़ता है, इसलिए साल भर फसल उगाई जा सकती है।
- कम जगह में ज्यादा उत्पादन होता है, खासकर वर्टिकल फार्मिंग के लिए उपयुक्त।
- कीटनाशक और उर्वरक की जरूरत कम होती है, जिससे खर्च भी घटता है।
- पूरे सिस्टम में जलवायु नियंत्रित की जा सकती है, जिससे फसल की गुणवत्ता बनी रहती है।
हाइड्रोपोनिक्स खेती मिट्टी, जल और जगह की कमी जैसी समस्याओं का समाधान करती है। यह पर्यावरण के अनुकूल और आर्थिक दृष्टि से लाभकारी है।
सही प्रशिक्षण, ज्ञान और संसाधनों के साथ भारत में इस खेती को बड़े पैमाने पर अपनाया जा सकता है। अगर आप भी आधुनिक खेती की दिशा में कदम बढ़ाना चाहते हैं, तो हाइड्रोपोनिक्स आपके लिए एक सुनहरा अवसर हो सकता है।
इनसे लें इंस्पिरेशन
मुंबई के जोशुआ लुईस
मुंबई के जोशुआ लुईस और साकिना राजकोटवाला ने हर्बिवोर फार्म्स की स्थापना की, जो मुंबई का पहला हायपरलोकल हाइड्रोपोनिक फार्म है।
वे बिना कीटनाशक के 25 सौ से अधिक पौधे उगाते हैं और ताजा, ऑर्गेनिक हरी सब्जियां मुंबई के ग्राहकों को घर तक पहुंचाते हैं। उनका पानी की बचत वाला और पर्यावरण मित्र तरीका इसे खास बनाता है।
ओडिशा की सृजता अग्रवाल
ओडिशा की सृजता अग्रवाल ने हाइड्रोपोनिक्स से लेकर केसर खेती तक का सफर तय किया। 320 पौधों से शुरू करके अब उनका 'ब्लूम इन हाइड्रो' सालाना 20 लाख रुपये से अधिक कमाता है। वे हाइड्रोपोनिक्स, माइक्रोग्रीन्स और केसर की खेती में प्रशिक्षण भी देती हैं, जिससे कई लोगों ने खुद का व्यवसाय शुरू किया है।
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