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देश के प्रमुख शैक्षिक संस्थान जैसे आईआईटी (IIT) और आईआईएम (IIM) में प्रोफेसर स्तर के करीब 56% पद खाली पड़े हैं। इसका सीधा असर छात्रों की पढ़ाई और उनके प्लेसमेंट (Placement) पर पड़ रहा है। संसदीय समिति (Parliamentary Committee) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो वर्षों में इन संस्थानों में प्लेसमेंट में 15% की गिरावट आई है। इसमें आईआईटी दिल्ली (IIT Delhi) भी शामिल है।
एजुकेशन क्वालिटी पर असर
प्रोफेसर ही छात्रों को बेहतर तरीके से प्लेसमेंट के लिए तैयार कर सकते हैं। उनका अनुभव छात्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। अगर प्रोफेसरों के पद खाली हैं, तो इसका असर सीधे तौर पर छात्रों की पढ़ाई और करियर (Career) पर पड़ता है। इन संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता (Quality of Education) बनाए रखना कठिन हो जाता है, जब पर्याप्त शिक्षक नहीं होते।
कमी के क्या हैं कारण
संसदीय समिति ने आईआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालय (Central Universities), और राष्ट्रीय संस्थानों (National Institutes) से डेटा प्राप्त किया और इस रिपोर्ट को तैयार किया। रिपोर्ट के अनुसार, इन संस्थानों में लगभग 38% एसोसिएट प्रोफेसरों (Associate Professors) और 17% असिस्टेंट प्रोफेसरों (Assistant Professors) के पद खाली हैं। इसका मतलब है कि उच्च और निम्न स्तर के सभी पदों पर कमी महसूस हो रही है।
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नॉन-टीचिंग स्टाफ की कमी
इसके अलावा, नॉन-टीचिंग स्टाफ (Non-Teaching Staff) की भी कमी है। नॉन-टीचिंग स्टाफ संस्थानों के संचालन (Operations) को प्रभावित कर रहा है। संस्थान बिना पर्याप्त स्टाफ के सही से कार्य नहीं कर पा रहे हैं। कुछ संस्थानों में निदेशक (Director) के पद भी खाली हैं, जो संस्थान के निर्णय प्रक्रिया (Decision-Making Process) को प्रभावित करता है।
विशेष श्रेणियों के पदों में कमी
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि ओबीसी (OBC) श्रेणी के 3,652 पदों में से 1,521, एससी (SC) के 2,315 पदों में से 788, और एसटी (ST) के 1,154 पदों में से 478 पद रिक्त हैं। यह आंकड़े बताते हैं कि विशेष श्रेणियों के छात्रों (Students) के लिए भी रिक्त पदों की समस्या है। शिक्षा मंत्रालय (Ministry of Education) बैकलॉग (Backlog) को पूरा करने में भी असफल हो रहा है।
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डायरेक्टर के पदों की स्थिति
कुछ संस्थानों में निदेशक के पद भी खाली हैं। निदेशक के बिना संस्थान के निर्णय (Decisions) सही तरीके से नहीं लिए जा सकते। इससे संस्थानों की कार्यप्रणाली पर नकारात्मक असर पड़ता है। इन रिक्त पदों के कारण संस्थानों में निर्णय लेने की प्रक्रिया में बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं।
कमेटी के सुझाव
संसदीय समिति ने यह सुझाव दिया है कि इन संस्थानों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए नियमित नियुक्तियां (Regular Appointments) लगातार की जानी चाहिए। साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि आने वाले समय में कितने शिक्षक रिटायर होने वाले हैं। समिति ने संविदा (Contractual) पर शिक्षक और अशैक्षिक कर्मचारियों (Non-Teaching Employees) को रखने की सलाह दी है। इससे पदों की कमी को पूरा किया जा सकेगा और संस्थानों के संचालन में कोई रुकावट नहीं आएगी।
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नियमित भर्ती की आवश्यकता
इस रिपोर्ट के अनुसार, यह स्पष्ट है कि इन संस्थानों में नियुक्तियों के लिए एक मजबूत और नियमित प्रक्रिया की जरूरत है। इसके साथ ही रिटायर होने वाले कर्मचारियों की सूची भी बनाई जानी चाहिए ताकि उनकी जगह नए शिक्षकों को भर्ती किया जा सके। यह कदम इन संस्थानों में शैक्षिक गुणवत्ता (Educational Quality) बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
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