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मध्य प्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में एक नया विवाद सामने आया है, जिसने लाखों छात्रों और उनके अभिभावकों को चौंका दिया है।
हाल ही में विधानसभा में एक सवाल के जवाब में यह खुलासा हुआ कि प्रदेश के प्राइवेट स्कूलों में NCERT की किताबों का उपयोग कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है।
यह जानकारी अब शिक्षा जगत में एक नई बहस को जन्म दे रही है, जिससे अभिभावकों के मन में सवाल उठने लगे हैं।
क्या वास्तव में बच्चों की शिक्षा के लिए यह व्यवस्था सही है, या फिर यह एक रास्ता है, जिसे निजी स्कूल और पब्लिशर्स अपनी मर्जी से इस्तेमाल कर रहे हैं?
सरकार का चौंकाने वाला बयान ✨
प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री उदयप्रताप सिंह ने विधानसभा में यह स्पष्ट किया कि राज्य में NCERT की किताबें अनिवार्य नहीं हैं, लेकिन उनके सिलेबस को अपनाना अनिवार्य है।
इसका मतलब है कि स्कूलों को NCERT की किताबों का पालन करना आवश्यक नहीं है। इसके बजाय, स्कूल चाहें तो किसी अन्य प्राइवेट पब्लिशर की महंगी किताबें भी चला सकते हैं।
सरकार के इस बयान ने उन अभिभावकों की परेशानी बढ़ा दी है, जो पहले से महंगी किताबों और अन्य शैक्षिक सामग्री के बोझ तले दबे हुए हैं।
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NCERT सिलेबस और किताबों में अंतर ⚖️
यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि NCERT सिलेबस और NCERT किताबों में अंतर है। NCERT सिलेबस एक रोडमैप की तरह होता है, जिसमें यह बताया जाता है कि किस क्लास में कौन से टॉपिक पढ़ाए जाएंगे।
वहीं, NCERT की किताबें वही पुस्तकें हैं जो इस सिलेबस के आधार पर तैयार की जाती हैं और इनकी कीमत भी अपेक्षाकृत कम होती है।
हालांकि, स्कूलों को सिर्फ सिलेबस का पालन करना अनिवार्य किया गया है, किताबें कौन सी होंगी, यह स्कूलों की मर्जी पर छोड़ा गया है।
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निजी स्कूलों की मनमानी 📈
इस स्थिति का सबसे बड़ा फायदा निजी स्कूल और प्रकाशकों को मिल रहा है। कई निजी स्कूल अपनी मर्जी से महंगी किताबें और पाठ्य सामग्री बेचने में लगे हुए हैं।
इससे अभिभावकों को हर साल अतिरिक्त खर्च झेलना पड़ता है। यदि किताबों के चयन के बारे में कोई शिकायत मिलती भी है, तो स्कूल इसे अपनी मर्जी से ठीक कर लेते हैं, क्योंकि किताबों का चयन अभी तक अनिवार्य नहीं किया गया है।
विभिन्न बोर्डों और कक्षाओं के लिए नियम 📑
मध्य प्रदेश में अलग-अलग बोर्डों और कक्षाओं के लिए अलग-अलग नियम हैं। MP बोर्ड के स्कूलों में राज्य सरकार द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तक निगम की किताबों का उपयोग अनिवार्य है।
वहीं, CBSE स्कूलों में NCERT की किताबों को लागू करना अनिवार्य किया गया है, लेकिन निजी पब्लिशर्स की किताबों की संख्या या कीमत तय करने का कोई स्पष्ट नियम नहीं है।
नर्सरी और प्राथमिक कक्षाओं में तो किताबों की संख्या और कीमत पर कोई नियम नहीं हैं, जो चिंता का विषय है।
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कार्रवाई का अभाव ⚠️
हालांकि, सरकार ने इस मुद्दे पर कुछ कदम उठाए हैं, जैसे मन्दसौर में कुछ निजी स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई की गई, लेकिन यह कार्रवाई मुख्य रूप से फीस वसूलने या नियमों के उल्लंघन के मामलों में की गई थी, न कि NCERT किताबों के न चलाने के कारण।
इससे साफ है कि अगर स्कूलों ने महंगी किताबें चलानी हैं, तो उन पर कोई विशेष कानूनी दबाव नहीं है।
निजी स्कूलों के लिए किताबों का चयन 🏫
मध्य प्रदेश निजी विद्यालय (फीस तथा संबंधित विषयों का विनियमन) नियम, 2020 के अनुसार, किताबों का चयन उस बोर्ड के नियमों के अनुसार होना चाहिए, जिससे स्कूल संबद्ध है। लेकिन चूंकि किताबों को अनिवार्य नहीं किया गया है, इसका मतलब है कि किताबों के चयन में नियमों का उल्लंघन साबित करना मुश्किल हो जाता है।
इसके परिणामस्वरूप निजी स्कूल अपने फायदे के लिए किताबों की कीमतें बढ़ाते जा रहे हैं।
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