मुगलों के वैभव और अंग्रेजों की क्रूरता से भारत की शान तक का सफर, जानें कैसे बना लाल किला आजादी का गौरव?

दिल्ली का लाल किला, मुगल और ब्रिटिश शासन का साक्षी रहा है। यह लेख बताता है कि कैसे यह शानदार किला 1857 के विद्रोह और भारत की आजादी की कहानियों का केंद्र बन गया।

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Kaushiki
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INDEPENDENCE DAY SPECIAL: दिल्ली का लाल किला जिसे आज हम भारत के गौरव और आजादी के प्रतीक के रूप में जानते हैं, इसका इतिहास सिर्फ एक इमारत तक सीमित नहीं है।

यह मुगलों के वैभव, अंग्रेजों की क्रूरता और भारतीयों के अदम्य साहस की कहानियों से भरा हुआ है। यह किला अपनी दीवारों के अंदर न जाने कितने ही राज और ऐतिहासिक घटनाओं को छुपाए हुए है।

जब भी हम 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराते हुए देखते हैं, तो हमारे मन में एक सवाल जरूर आता है कि यह किला कैसे आजादी की कहानियों का इतना अहम हिस्सा बन गया?

15 अगस्त 2025 को भारत अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। तो उस मौके पर आइए जानें कि लाल किला कैसे बना आजादी की कहानियों का हिस्सा।

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लाल किले से जुड़े 10 पॉइंट्स 

लाल किला दिल्ली : एक प्राचीन इमारत जो भारतीय ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक है

  • 1639 में शाहजहां ने लाल किला बनवाया, जो मुगलों की शक्ति का प्रतीक था।
  • 1857 के सिपाही विद्रोह में, यह किला स्वतंत्रता सेनानियों का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया।
  • अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर ने यहीं से विद्रोह का नेतृत्व किया।
  • विद्रोह के बाद, अंग्रेजों ने किले पर कब्जा कर इसे एक सैन्य छावनी में बदल दिया।
  • आजादी के बाद, लाल किला भारत की संप्रभुता का प्रतीक बन गया।
  • 15 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने यहीं से पहली बार तिरंगा फहराया।
  • उन्होंने इसी जगह से भारत को संबोधित करते हुए अपना प्रसिद्ध 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' भाषण दिया।
  • तब से, हर साल स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री यहीं से राष्ट्र को संबोधित करते हैं।
  • लाल किला भारत के गौरवशाली इतिहास का एक जीवंत प्रतीक है।
  • यह किला आज भी हमारे राष्ट्र के सम्मान और आजादी की कहानियों का हिस्सा है।

अंग्रेजों की लूट, मुगलों का सरेंडर, लालकिला कैसे आजादी की कहानियों का हिस्सा  बना? पढ़ें किस्से | How delhi red fort became part of independence of india  freedom movement from ...

लाल किले का निर्माण कब हुआ

लाल किले का निर्माण 17वीं सदी में मुगल बादशाह शाहजहां ने कराया था। उस समय इसका नाम 'किला-ए-मुबारक' था और इसे शाहजहांनाबाद की नई राजधानी के रूप में बनाया गया था।

यह किला मुगल आर्किटेक्चर का एक बेजोड़ नमूना है जिसमें फारसी, तैमूरी और भारतीय शैलियों का सुंदर मिश्रण दिखाई देता है। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि यह किला मूल रूप से लाल नहीं, बल्कि सफेद रंग का था।

इसकी दीवारें और कई हिस्से सफेद चूने और संगमरमर से बने थे जिसकी वजह से यह दूर से ही चमकता हुआ दिखाई देता था।

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जब लाल किला बना क्रांति का केंद्र

भारत के इतिहास में 1857 का विद्रोह एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह वह समय था जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अत्याचारों से तंग आकर भारतीय सैनिकों और जनता ने उनके खिलाफ बगावत कर दी थी।

इस विद्रोह की चिंगारी धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गई और दिल्ली इसका सबसे बड़ा केंद्र बनकर उभरी। विद्रोही सैनिक दिल्ली पहुंचे और उन्होंने अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर से इस विद्रोह का नेतृत्व करने का आग्रह किया।

यह वही लाल किला था जहां मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने खुद को अंग्रेजों से स्वतंत्र घोषित किया और विद्रोहियों को अपना समर्थन दिया।

इस घटना ने पूरे देश में एक नई उम्मीद जगाई। लाल किला सिर्फ एक महल नहीं रहा, बल्कि यह भारतीयों की एकता और संघर्ष का प्रतीक बन गया। हालांकि यह खुशी ज्यादा देर तक नहीं टिकी।

अंग्रेजों ने अपनी सैन्य शक्ति का उपयोग करके विद्रोह को कुचल दिया और दिल्ली पर फिर से कब्जा कर लिया। इस दौरान अंग्रेजों ने लाल किले के अंदर जमकर लूटपाट की।

उन्होंने किले के कीमती सामान को लूटा और कई इमारतों को नुकसान पहुंचाया। बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों ने हुमायूं के मकबरे से पकड़ लिया और उन पर मुकदमा चलाकर उन्हें बर्मा (आज के म्यांमार) भेज दिया गया जहां उनकी मृत्यु हो गई।

उनके दो बेटों और एक पोते को बेरहमी से मार दिया गया था। इस घटना के बाद लाल किले का रंग बदल दिया गया। समय के साथ, सफेद चूने की परतें खराब होने लगी थीं। अंग्रेजों ने इसकी मरम्मत कराई और दीवारों को लाल रंग से रंगवाया। इसी वजह से यह किला 'लाल किला' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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गौरव का नया अध्याय

लंबी लड़ाई और कई बलिदानों के बाद, 15 अगस्त 1947 (Independence Day) को भारत को आजादी मिली। इस ऐतिहासिक दिन लाल किला एक बार फिर से भारत के गौरव और संप्रभुता का प्रतीक बन गया।

आजादी की घोषणा के बाद, भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसी लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया। यह सिर्फ एक झंडा फहराना नहीं था, बल्कि यह भारत की आजादी का शंखनाद था जो सदियों की गुलामी के बाद बज रहा था।

उस दिन से लेकर आज तक हर साल 15 अगस्त को भारत के प्रधानमंत्री लाल किले से ही तिरंगा फहराते हैं और देश को संबोधित करते हैं।

यह एक परंपरा बन गई है जो हमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों की याद दिलाती है। लाल किला अब सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत नहीं, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र और एकता का प्रतीक है।

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लाल किले का महत्व

आज लाल किला सिर्फ इतिहास की किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक जीवंत स्मारक है। यह भारत की समृद्ध विरासत और संघर्ष की कहानी कहता है। 2007 में यूनेस्को (UNESCO) ने इसे विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage) की सूची में शामिल किया।

यहां के दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास जैसे हॉल आज भी पर्यटकों को अपनी ओर खींचते हैं। रंग महल, मोती मस्जिद और हयात बख्श बाग जैसी संरचनाएं मुगल वास्तुकला की भव्यता का प्रमाण देती हैं।

इसके अलावा, लाल किले में कई म्यूजियम भी हैं जो भारतीय इतिहास को दर्शाते हैं। इनमें सुभाष चंद्र बोस म्यूजियम और 1857 के फ्रीडम स्ट्रगल से जुड़ा म्यूजियम प्रमुख हैं। हर शाम यहां पर एक शानदार लाइट एंड साउंड शो होता है, जो लाल किले के पूरे इतिहास को जीवंत कर देता है। 

लाल किला एक ऐसी जगह है जो हमें याद दिलाती है कि हमारी आजादी कितनी मुश्किल से मिली है। यह हमें हमारे इतिहास, हमारी संस्कृति और हमारे संघर्षों को समझने का मौका देता है। यह भारतीय राष्ट्रवाद और एकता का प्रतीक बन गया है।

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