मध्यप्रदेश में सीएम राइज की तर्ज पर अब मॉडल कॉलेज खोलने की तैयारी, कॉलेजों में 136 स्टूडेंट पर है सिर्फ 1 टीचर

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Arun Dixit
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मध्यप्रदेश में सीएम राइज की तर्ज पर अब मॉडल कॉलेज खोलने की तैयारी, कॉलेजों में 136 स्टूडेंट पर है सिर्फ 1 टीचर

BHOPAL. मध्यप्रदेश में छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए सीएम राइज स्कूलों को शुरू किया गया। हालांकि ये बात और है कि इन स्कूलों में अब तक कई विषयों के शिक्षक ही नहीं हैं, पर अब सरकार सीएम राइज स्कूलों की तर्ज पर ही हर जिले में मॉडल कॉलेज खोलने जा रही है।





मॉडल कॉलेज खोलने जा रही सरकार





सीएम राइज स्कूलों की बात करें तो बीते 10 महीने में यहां पढ़ने वाले बच्चों को सरकार यूनिफॉर्म तक नहीं दे पाई है। स्कूल लाने और ले जाने के लिए बस सुविधा की बात तो बहुत दूर है। अब देखना होगा कि उच्च शिक्षा विभाग इन मॉडल कॉलेज के जरिए शिक्षा का स्तर कितना सुधार पाती है या ये भी सीएम राइज स्कूल की तरह ही बस बिल्डिंग के रंग-रोगन तक जाकर सिमट जाएंगे।





वीडियो देखें.. मध्यप्रदेश सरकार के पास नहीं छात्रों को पढ़ाने के लिए पर्याप्त टीचर





सीएम राइज की तरह होंगी सुविधाएं





उच्च शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार मॉडल कॉलेज को-एड होंगे। ये कॉलेज सीएम राइज पैटर्न पर तैयार किए जाने हैं। सीएम राइज की तरह ही इन कॉलेजों में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा कि यहां बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ ही हॉस्टल, लैब, लाइब्रेरी और खेल सुविधाएं भी छात्रों को मुहैया करवाई जाएं। इसी के साथ ई-लाइब्रेरी, वर्चुअल लैब और रिसर्च फैसिलिटी भी विकसित की जाएंगी।





कैसे सुधरेगा शिक्षा का स्तर, 136 स्टूडेंट पर 1 टीचर





मध्यप्रदेश के सरकारी कॉलेजों में स्टूडेंट की संख्या 14 लाख 58 हजार है। वहीं शिक्षकों की संख्या 10 हजार 700 है। कुल मिलाकर 136 स्टूडेंट पर 1 टीचर है। यूजीसी के नियम की बात करें तो क्वालिटी एजुकेशन के लिए 25 स्टूडेंट पर 1 टीचर होना चाहिए जबकि मध्यप्रदेश में छात्रों की संख्या यूजीसी के सामान्य अनुपात से 5 गुना ज्यादा है।





4 हजार पद खाली, सिर्फ 1700 पर भर्ती





मध्यप्रदेश में सरकारी कॉलेजों में छात्रों की पढ़ाई-लिखाई यूजीसी के नियमों के मुताबिक बदहाल स्थिति में है। एमपीपीएससी कॉलेजों में 1700 सहायक प्राध्यापकों की भर्ती करने जा रहा है। हालांकि उच्च शिक्षा विभाग के अनुसार ही प्रदेश में असिस्टेंट प्रोफेसर के लगभग 4 हजार पद खाली हैं। शेष पद दूसरी बार में भरे जाएंगे। वहीं यदि यूजीसी की क्वालिटी एजुकेशन के हिसाब से देखा जाए तो उच्च शिक्षा विभाग में 47 हजार शिक्षकों की कमी है जबकि प्रदेश में सिर्फ 10 हजार 700 टीचर ही पदस्थ हैं।





देश में टॉप-100 तक मध्यप्रदेश का कोई नाम ही नहीं





नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिग फ्रेमवर्क (NIRF) देश की सभी टॉप यूनिवर्सिटीज, कॉलेज और अन्य शैक्षणिक संस्थानों को उनके परफॉरमेंस के आधार पर रैंकिंग देने का काम करता है जिसमें देश की 1875 यूनिवर्सिटी-कॉलेजों ने भाग लिया था। शर्मनाक ये है कि इन रैकिंग के लिए प्रदेश के 93वें यूनिवर्सिटी और कॉलेजों ने हिस्सा लिया था पर 100वें नंबर तक मध्यप्रदेश की किसी भी यूनिवर्सिटी या कॉलेज का नाम नहीं आया।





PHD में हम बीते 5 साल से 11वें पायदान पर





पीएचडी के मामले में बीते 5 सालों से मध्यप्रदेश 11वें स्थान पर है। मध्यप्रदेश से बेहतर स्थिति तेलगांना, उत्तरप्रदेश, केरल, महाराष्ट्र और कर्नाटक की है। प्रदेश में पीएचडी में नामांकन लेने वालों की संख्या में पिछले 5 सालों में 2 हजार 881 स्टूडेंट की बढ़ोतरी जरूर हुई है पर AISHE की जारी रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 से 2020-21 तक की मध्यप्रदेश में पीएचडी में नामांकन लेने वाले स्टूडेंट की संख्या 6 हजार 153, तेलगांना में 34 हजार 411, उत्तरप्रदेश में 19 हजार 806, महाराष्ट्र में 15 हजार 751, कर्नाटक में 11 हजार 28, केरल में 8 हजार 738 है। पिछले 5 सालों में प्रदेश इन राज्यों से आगे नहीं निकल पाया है जबकि प्रदेश में 2 सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी, 22 स्टेट पब्लिक यूनिवर्सिटी और 39 प्राइवेट यूनिवर्सिटी हैं।





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सिर्फ कॉलेजों की सीट बढ़ाने पर फोकस





छात्रों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। सरकार कॉलेजों में सीटें तो बढ़ा देती है पर उस अनुपात में टीचर्स की भर्ती नहीं होती जिससे स्टूडेंट को क्वालिटी एजुकेशन नहीं मिल पाता है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाने के कारण ही कॉलेज से पासआउट होने पर भी युवाओं को नौकरी नहीं मिल पा रही है और बेरोजगारी की मार कहीं न कहीं झेलनी पड़ रही है।





आरक्षण प्रक्रिया में उलझ जारी है सरकारी टीचरों की भर्ती





उच्च शिक्षा विभाग के रिटायर्ड अतिरिक्त संचालक राधावल्लभ शर्मा ने कहा कि सरकरी कॉलेजों में स्टूडेंट के लिए सीटें तो बढ़ाई गई हैं लेकिन पर्याप्त संख्या में टीचरों की भर्ती नहीं की गई है, जिसका असर स्टूडेंट की शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ा है। स्टूडेंट-टीचर का जो क्लास में संवाद होता है वो नहीं हो पा रहा है जिससे संवादहीनता की स्थिति बन गई है और स्टूडेंट 20 प्रश्नों पर निर्भर हो गया है। सरकारी टीचरों की भर्ती आरक्षण प्रक्रिया में उलझ जाती है।





सरकार के पास नहीं कोई जवाब





मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव ने कहा कि इस बारे में सरकार गंभीर है। कुल मिलाकर उनके पास इस समस्या के समाधान को लेकर कोई सही जवाब नहीं था। एक अच्छी एजुकेशन के लिए सबसे जरूरी होता है योग्य शिक्षक का होना जोकि है ही नहीं और सरकार का पूरा फोकस इन्फ्रास्ट्रक्चर सहित अन्य सुविधाओं पर है। यही हाल सीएम राइज स्कूल के भी हैं। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि शिक्षा का स्तर कैसे सुधरेगा।



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