अजय बोकिल, BHOPAL. मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों की औपचारिक घोषणा हो चुकी है। राज्य में 2 मुख्य राजनीतिक द्वंद्वियों के बीच सत्ता के लिए मुकाबला लगभग बराबरी के मोड़ पर आ गया है। 15-20 सीटों का हेरफेर और डेढ़-दो फीसदी फ्लोटिंग वोटों का रुझान ही तय करेगा कि सत्ता सिंहासन पर कौन बैठेगा।
बीते 6 माह में देखने मिले कई दिलचस्प मोड़
मध्यप्रदेश के चुनावी परिदृश्य में बीते 6 माह में कई दिलचस्प मोड़ देखने को मिले हैं। इस साल की शुरुआत में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी बावजूद तमाम एंटी इनकम्बेंसी, भ्रष्टाचार, पार्टी में अंतर्कलह और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणाबाजी के किसी तरह सत्ता में लौटती दिख रही थी। इसका मुख्य कारण तब कांग्रेस का सुस्त और दिशाहीन होना था, लेकिन मई में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की दमदार जीत और सत्तारूढ़ बीजेपी की करारी हार ने जहां मध्यप्रदेश में कांग्रेस का मनोबल आसमान पर पहुंचा दिया और लगने लगा कि कांग्रेस यह चुनाव जीत लेगी। वहीं दूसरी तरफ बीजेपी रक्षात्मक और आत्मचिंतन के मोड में चली गई। इसका नतीजा यह निकला कि पार्टी अपने डेढ़ दशक के काम और उपलब्धियों के बजाए रेवड़ी और रियायती कल्चर के भरोसे हो गई। 'लाड़ली बहना' और 'मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना' इसी सोच की उपज है।
कर्ज लेकर भी रेवड़ी बांटने की नीति
शिवराज सरकार ने कर्ज लेकर भी रेवड़ी बांटने की नीति अपना ली। मतदाता को सीधे नकद लाभ का कुछ तो फायदा बीजेपी को होगा ही। अब यह इस बात पर निर्भर है कि बीजेपी इसे वोट में कितना कन्वर्ट कर पाती है। चूंकि इन योजनाओं से लाभान्वितों की संख्या बहुत बड़ी है, इसलिए आश्चर्य नहीं कि ये वोट अंतत: बीजेपी की झोली में ही जाएं।
ढीला पड़ता दिख रहा कांग्रेस का चुनाव अभियान
दूसरी तरफ कर्नाटक चुनाव के बाद पूरे जोश में आई कांग्रेस का चुनाव अभियान अब ढीला पड़ता दिख रहा है। पार्टी में टिकट वितरण पर एक राय नहीं बन पा रही है। कांग्रेस को जीत की सारी उम्मीद आदिवासी सीटों और अंचल के हिसाब से ग्वालियर चंबल, मालवा और विंध्य क्षेत्र से ज्यादा है। वह इन्हीं इलाकों में प्रचार पर जोर दे रही है।
कांग्रेस के प्रचारक राहुल-प्रियंका, बीजेपी का चेहरा मोदी
राहुल-प्रियंका की सभाओं से उसे कुछ मदद मिल सकती है। लेकिन इन्हीं इलाकों में बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा दांव पर लगाकर वोट मांग रही है। इसमें शक नहीं कि बीजेपी राज को लेकर मध्यप्रदेश के लोगों में नाराजी तो है, लेकिन क्या ये वोट में भी कन्वर्ट होगी, यह दावे के साथ कोई भी नहीं कह सकता। कांग्रेस का प्रचार अभियान अगर ढीला-ढाला ही रहा तो आक्रामक शैली में प्रचार कर रही बीजेपी उसके मंसूबों पर पानी फेर सकती है। फिलहाल दोनों की जीत की संभावना 5:5 है। अब चुनाव की घोषणा हो चुकी है तो यह अनुपात और बदल सकता है।