राजीव जैन@JAIPUR
राजस्थान में विधानसभा के चुनाव जैसे-जैसे करीब आते जा रहे हैं, बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला भी नजदीक का होता जा रहा है। आज पांचों राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की बदौलत कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले में ला खड़ा कर दिया है। प्रदेश में 6 महीने पहले मुकाबला एकतरफा लग रहा था और बीजेपी बढ़त कायम किए हुए थी। पर अब गहलोत ने जिस आक्रामक तरीके से अपनी योजनाओं को जनता के बीच पहुंचाया, उससे कांग्रेस बराबरी पर पहुंच गई है।
बीजेपी-कांग्रेस में गुटबाजी का माहौल
प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के अलावा तीसरे मोर्चे के तौर पर कई दल भी ताल ठोंक रहे हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला इन दोनों दलों के बीच ही होगा। दोनों दलों में गुटबाजी का माहौल है। इससे ऐन चुनाव के मौके पर उठापटक होना भी तय है। बीजेपी में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने जिस तरीके से किनारे किया है, उससे उनके समर्थकों में हताशा का माहौल है। इसके बावजूद बीजेपी ने प्रदेश में निचले स्तर पर संगठन को बहुत ही मजबूत कर लिया है। इसका फायदा निश्चित तौर पर बीजेपी को मिलेगा। बीजेपी में उम्मीदवार तय करने की प्रक्रिया अब अंतिम चरण में है। बीजेपी ने संगठन से जुड़े लोगों को उम्मीदवार बनाया तो उसको चुनावी मैदान में मजबूती मिलेगी।
बीजेपी में कई नेताओं में सीएम पद की रेस
बीजेपी में आधा दर्जन से ज्यादा नेता मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं। इससे पार्टी को नुकसान के साथ फायदा भी दिख रहा है। वसुंधरा राजे और उनके समर्थकों का रवैया भी पार्टी के लिए किस तरह का रहेगा, इसको लेकर भी असमजंस के हालात हैं। मोटे तौर पर प्रदेश में बीजेपी, वसुंधरा समर्थक और विरोधियों में बंटी हुई है। बीजेपी के लिए मैदान सजाने वाला RSS इस बार पूरी तरह से वसुंधरा राजे के विरोध में खड़ा हुआ है।
बीजेपी की रणनीति
प्रदेश के मौजूदा राजनीतिक माहौल में बीजेपी की रणनीति अब साफ होने लगी है। प्रदेश के कई इलाकों में बीजेपी ने कट्टर हिंदूवादी छवि को अपने प्रचार का हथियार बनाना भी शुरू कर दिया है। प्रदेश में पिछले कुछ समय में घटित घटनाओं को लेकर बीजेपी ने कांग्रेस के प्रति तीखे तेवर अपनाने शुरू कर दिए हैं। जयपुर में हिंदूवादी संगठनों के हुए धरने से इसकी बानगी साफ तौर पर देखी जा सकती है। इसी तरह से उदयपुर में कन्हैयालाल कांड को बीजेपी के नेता पूरे प्रदेश में प्रचारित कर कांग्रेस की नीतियों को सनातन के खिलाफ बताने लग गए हैं। माना जा रहा है कि अगर बीजेपी का हिंदू कार्ड चला तो फिर कांग्रेस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा।
खत्म नहीं हुई गहलोत-पायलट की तनातनी
दूसरी तरफ कांग्रेस की तैयारियां भी तेजी से चल रही हैं। बीजेपी की तरह ही कांग्रेस में गुटबाजी का आलम है। गहलोत और पायलट गुट में तनातनी अभी खत्म नहीं हुई है। कांग्रेस आलाकमान के दखल के बाद पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को संतुष्ट किया गया है। पर यह ऊपरी तौर पर ही है। पायलट वैसे तो पूरी तरह से सरकार रिपीट की बात कह रहे हैं, लेकिन उनके समर्थक वर्ग में अभी भी घोर निराशा का माहौल है। इसकी बानगी हाल में कुछ विधायकों और मंत्रियों के विरोध के तौर पर साफ दिखी। गहलोत गुट के विधायकों का विरोध ऐसी जगहों पर हुआ जहां पायलट के समर्थक वर्ग की बहुलता थी।
कांग्रेस का आम कार्यकर्ता अभी नहीं हुआ एक्टिव
मुख्यमंत्री गहलोत अपनी सरकार को रिपीट कराने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं। उनकी योजनाओं को लेकर आम जनता में सकारात्मक माहौल भी है। इसके बावजूद उनके विधायकों का अपने क्षेत्रों में जिस तरह का विरोध है, उससे भी कांग्रेस की परेशानी बढ़ी हुई है। कांग्रेस के ज्यादातर विधायकों के खिलाफ माहौल होने से उनके टिकट काटे जाने का दबाव भी है। टिकट काटने और नहीं काटने पर होने वाले नफा-नुकसान को लेकर ही इन दिनों कांग्रेस के बड़े नेता मंथन करने में जुटे हुए हैं। कांग्रेस का आम कार्यकर्ता अभी तक सक्रिय नहीं हुआ है और उम्मीदवार घोषित होने के बाद ही उसकी सक्रियता सामने आएगी।
दोनों दलों में आपसी खींचतान से माहौल गरमाया
दोनों दलों की आपसी खींचतान को लेकर ही माहौल गरमाया हुआ है। इस खींचतान पर अंकुश लगाने की कवायद का दौर ही बीजेपी और कांग्रेस में चल रहा है। इसके चलते ही टिकट घोषित होने में देरी हो रही है। बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति ने कुछ उम्मीदवार तय कर दिए हैं, पर उनकी घोषणा गुटबाजी के कारण ही नहीं हो पा रही है। इसी तरह से कांग्रेस भी ऊहापोह में फंसी हुई है। उम्मीदवारों की जल्द घोषणा का दावा करने वाली कांग्रेस अब इससे पीछे हटती दिख रही है।