मप्र में चुनाव से पहले उठा मुद्दा, उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की तैयार, गुजरात अब तक समिति भी नहीं बना सका

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Puneet Pandey
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मप्र में चुनाव से पहले उठा मुद्दा, उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की तैयार, गुजरात अब तक समिति भी नहीं बना सका

BHOPAL. चुनावी बिसात पर चालों और पत्तों को फेंके जाने का दौर पूरे जोर पर है। कांग्रेस और भाजपा अपने सारे पत्ते फेंटने में लगी हुई हैं। कौन सा पत्ता कब दिखाना है और कब फेंकना है इसकी पूरी तैयारी हो चुकी है। इसी कड़ी में भाजपा ने यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा उठा कर नई बहस को जन्म दे दिया है। फिलहाल इसका रिएक्शन धीमा रहा है, लेकिन यह मुद्दे बड़ा होगा इसमें कोई शक नहीं है। यह ऐसा मुद्दा है जो वोटरों का जमकर ध्रुवीकरण करेगा चाहे वो बीजेपी के हों या फिर कांग्रेस के। कॉमन सिविल कोड का मुद्दा न सिर्फ इस साल के अंत में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर उठाया गया है, बल्कि इसे अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनाव को भी ध्यान में रख कर चर्चा में लाया गया है। 





बीजेपी सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर कमेटी बनाने की तैयारी कर रही है। चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि यह कानून पूरे देश में लागू होना चाहिए।



 यूनिफॉर्म सिविल कोड अगल लागू होता है तो फिलहाल उत्तराखंड में बने कानून को आदर्श के तौर पर देखा जा सकता है। इस कानून में डेमोग्राफिक चेंज, जनसंख्या नियंत्रण जैसे प्रावधानों को लागू किया जा सकता है। इसका चुनाव में बहुत गहरा असर होने की संभावना है।





यह केवल चुनावी स्टेंट 





जहां बीजेपी के प्रमुख चुनावी मुद्दों में यूनिफॉर्म सिविल कोड रहेगा, वहीं इस पर कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद (भोपाल मध्य विधानसभा सीट) ने कहा अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लाया जाता है तो हम विरोध करेंगे। भारत में एक कानून संभव नहीं है। संविधान को निर्माताओं ने बहुत सोच समझकर बनाया है। सरकार अल्पसंख्यकों को टारगेट कर रही है। यूनिफॉर्म सिविल कोड से मुस्लिम ही नहीं दूसरे धर्मों को भी दिक्कत होगी। 





यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिसंबर 2022 में कहा था कि प्रदेश में जल्द ही इसके लिए कमेटी का गठन किया जाएगा, लेकिन इसके बाद यह मुद्दा चर्चा में नहीं आया। लेकिन अब चुनाव से पहले फिर सुगबुगाहट शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि प्रदेश में चुनाव से पहले सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर कमेटी बना सकती है। यह भी कहा जा रहा है कि सरकार इस पर जल्द ही कार्रवाई कर सकती है। 





उत्तराखंड विस चुनाव में बड़ा मुद्दा बना था यूनिफॉर्म सिविल कोड 





यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे को उत्तराखंड विधान सभा चुनाव में सबसे पहले उठाया गया था। राज्य में यह मुद्दा साल 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले फिर से उठ रहा है। उत्तराखंड देश का ऐसा पहला राज्य बनने जा रहा है, जहां यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होगा।  





क्या होगा उत्तराखंड के नए कानून में





जानकारी के मुताबिक उत्तराखंड में लागू होने जा रहे यूनिफार्म सिविल कोड को राज्य को बदलती डेमोग्राफी को देखते हुए बनाया गया है। उसमें जनसंख्या नियंत्रण, फैमिली प्लानिंग को शामिल किया जाएगा। कहा जा है कि इस बिल के तहत दो बच्चों के नियम का उल्लंघन करने वाले लोगों को वोट डालने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है। इसके अलावा सरकारी सुविधाओं का अधिकार भी छीना जा सकता है। 



यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि जनता समान नागरिक संहिता चाहती थी इसीलिए हमें सत्ता में लेकर आई है। उत्तराखंड दुनिया भर के धर्म, संस्कृति का केंद्र है और राजधानी भी है। उन्होंने राज्य के डेमोग्राफी चेंज को लेकर कहा कि हम किसी धर्म के खिलाफ नहीं है, लेकिन देश के लोग चाहते हैं कि यहां का मूल स्वरूप नहीं बदले। 





गुजरात सरकार अब तक नहीं बना सकी कमेटी





उत्तराखंड की तरह गुजरात में भी विधान सभा चुनाव से पहले बीजेपी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की बात कही थी। लेकिन इस मुद्दे पर यहां की सरकार अब तक कमेटी नहीं बना सकी है। हालांकि कहा जा रहा है कि राज्य सरकार इस मुद्दे पर भारत सरकार के लॉ कमीशन के नोटिस पर सकारात्मक जवाब दे सकती है। लॉ कमीशन इस मुद्दे पर सभी पक्षों से उनकी राय जानना चाहता है।





असम के मुख्यमंत्री भी समर्थन में 





यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने करीब एक महीने पहले कहा कि इस कानून के आने के बाद चार शादियां करने का अधिकार खत्म हो जाएगा। सरमा ने तेलंगाना के करीमनगर में कहा कि भारत में समान नागरिक संहिता आने वाली है और भारत को एक सच्चा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने का समय भी आ गया है।





क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड





यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब देश में सभी जाति, धर्म और लिंग के लोगों के लिए एक कानून होना है। इसके लागू होने के बाद सभी धर्मों के लिए बने अलग-अलग कानूनों के तहत शादी, तलाक और संपत्ति के बंटवारे को लेकर एक ही तरह के नियम होंगे। 



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