BHOPAL.कुछ दिन पहले कांग्रेस ने अपना चुनाव प्रचार जबलपुर से प्रियंका गांधी की मौजूदगी में शुरू कर दिया था, लेकिन इसके काफी पहले 25 मार्च को ही अमित शाह ने पीसीसी चीफ और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में रैली कर भाजपा के चुनावी प्रचार का ताल ठोक दिया था। यहां अमित शाह के पुहंचने के दो मुख्या कारण हैं पहला तो आदिवासी वोट और दूसरा कमलनाथ को उनके घर में घेरना। चुनाव में भाजपा के लिए दोनों ही कारण बहुत अहमियत रखते हैं। पहला तो इसलिए क्योंकि माना जा रहा है कि कांग्रेस के पारंपरिक वोटर आदिवासियों पर जो पकड़ बीजेपी ने बनाई थी वो कमजोर पड़ती जा रही है। और दूसरा इसलिए क्योंकि बहुत लंबे समय के बाद मप्र कांग्रेस में कोई सर्वमान्य चेहरा सामने आया है जो कमलनाथ का है। कांग्रेस के दूसरे नेताओं सहित पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी यह बोल चुके हैं कि मप्र में कमलनाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा।
पहले आदिवासी वोट का गणित
आदिवासी आबादी मप्र की कुल आबादी का करीब 22 फीसदी है और विधान सभा की 230 सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं। लेकिन आदिवासी यहीं तक सीमित नहीं है उनका प्रभाव 84 अन्य सीटों पर भी है। इन सीटों पर वे जीत-हार तय करते हैं। यानी 230 में से कुल 131 सीटों पर आदिवासी मतदाता भाग्य विधाता है। यह सीटें कुल सीटों का 56 फीसदी हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार राज्य की 35 अन्य सीटों पर आदिवासी मतदाता 50 हजार से अधिक हैं।
कमजोर हुई बीजेपी की आदिवासियों पर पकड़
2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सात सीटों से सरकार बनाने से चूक गई थी। उसे बहुमत के लिए जरूरी 116 सीटों से 7 सीटें कम मिली थीं। इसके पीछे कारण देखें तो पता चलता है कि पार्टी को आदिवासी क्षेत्रों में 2013 के मुकाबले कम सीटें मिली थीं जो सत्ता से बेदखली का कारण बना।
2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने आदिवासी बहुल 84 विधानसभा सीटों में से 34 सीटों पर ही जीत हासिल की थी। जबकि, 2013 में इन क्षेत्रों में 59 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी। देखा जाए तो पांच साल में बीजेपी को 25 सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा था। इसके अलावा प्रदेश की सीटों पर आदिवासी की जीत-हार तय करते हैं, वहां बीजेपी को 16 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था।
68 सीटों पर फोकस
मप्र के विंध्य महाकोशल में 68 विधान सभा सीटें हैं। इस क्षेत्र पर फोकस करते हुए बीजेपी ने कस्टमाइज्ड प्लान तैयार किया है। इस प्लान का आगाज तो भोपाल में पीएम नरेंद्र मोदी के 15 नवंबर 2021 को आने से शुरू हो गया था। यहां जनजातीय महासम्मेलन का आयोजन किया गया था और प्रदेश के 2 लाख से ज्यादा आदिवासियों के पहुंचने का दावा किया गया था। मप्र सरकार ने आदिवासियों के महानायक बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा भी की थी। इस पूरी मुहिम के पीछे भाजपा से ज्यादा संघ का फोकस था।
लगातार आ रहे बड़े नेता
आज केंद्रीय गृहमंत्री का दौरा है। प्रधानमंत्री की प्रस्तावित यात्रा से पहले राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू शहडोल का दौरा कर चुकी हैं। आदिवासियों को साधने के लिए ही पेसा एक्ट को लागू किया जा चुका है।