दादा साहेब फाल्के: पत्नी के गहने गिरवी रखे थे, ऐसे बने फिल्मों के पितामह, जानें

author-image
Aashish Vishwakarma
एडिट
New Update
दादा साहेब फाल्के: पत्नी के गहने गिरवी रखे थे, ऐसे बने फिल्मों के पितामह, जानें

भोपाल. 16 फरवरी 1944, यही वो तारीख है जब दादा साहब फाल्के ने इस दुनिया को अलविदा कहा था। आज उनकी 78वीं पुण्यतिथि है। दादा साहेब फाल्के ऐसी शख्सियत है जिन्होंने बतौर प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और स्क्रीन प्लेराइटर हिंदी सिनेमा को बुलंदियों पर पहुंचाया। उन्होंने अपने 19 साल के करियर में 95 फिल्में और 27 शॉर्ट मूवी बनाईं। दादा साहेब फाल्के का असली नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के हैं। उनका जन्म महाराष्ट्र के त्रयंबक शहर में 30 अप्रैल 1870 को हुआ था। भारतीय सिनेमा के पितामह कहे जाने वाले दादा साहेब फाल्के ने देश को पहली फिल्म उस वक्त दी जब फिल्मों से जुड़ी जानकारी किसी को ना थी। जब लोग कैमरा, स्क्रिप्ट, डॉयलॉग जैसे शब्दों से भी परिचित नहीं थे। तब उन्होंने राजा हरिश्चंद्र जैसी आइकोनिक फिल्म दी। आइए जानते हैं कि कैसे त्रयंबक शहर का एक साधारण सा लड़का हिंदी सिनेमा का जनक कहलाने लगा। 



फोटोग्राफी से की करियर की शुरूआत: दादा साहेब फाल्के की फोटोग्राफी में दिलचस्पी थी। उन्होंने फोटोग्राफर के तौर पर अपनी पहली नौकरी गोधरा में की। कुछ समय बाद ही प्लेग से अचानक उनकी पत्नी और बच्चे की मौत हो गई जिसे वो बर्दाश्त ना कर सके और नौकरी छोड़ दी। बाद में दादा साहेब ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग में मानचित्रकार के पद पर भी काम किया। नौकरी छोड़ने के बाद 40 की उम्र में प्रिंटिंग का काम करने की शुरूआत की। उन्होंने पेंटर राजा रवि वर्मा के लिए भी काम किया। इसके बाद उन्होंने खुद का प्रिंटिंग प्रेस खोल लिया। इसी दौरान उन्होंने अपनी पहली विदेश यात्रा भी की। लेटेस्ट टेक्नॉलोजी और मशीनरी को समझने के लिए वो जर्मनी पहुंचे। इसके बाद पार्टनर से प्रिंटिंग को लेकर चल रहे विवाद की वजह से उन्होंने इस काम को छोड़ दिया।



ऐसे आया फिल्म मेकिंग आइडिया: दादा साहेब फाल्के को फिल्म बनाने का आइडिया साइलेंट फिल्म ''The Life of Christ'' देखने के बाद आया। यह फिल्म ईशा मसीह पर बनी थीं। इसे देखने बाद उन्हें लगा कि अगर महाभारत और रामायण को लेकर कहानी दिखाएं तो इसे पर्दे पर लोग पसंद करेंगे। उन्होंने अपनी पहली शॉर्ट फिल्म 'Growth of a Pea Plant' 1910 में बनाई। इसके लिए उन्होंने पहले मटर के बीज को बोया और फिर उसके बढ़ने की प्रक्रिया के हर फ्रेम को कैमरे में रिकार्ड किया। जिसको शूट करने में 45 दिन लगे थे। उसके बाद 2 मिनट की ये शार्ट फिल्म बनी। लीड एक्टर की खोज में उन्होंने एड दिया जिसमें लिखा- "Ugly faces need not apply"। 



गहने गिरवी रखकर पत्नी ने किया सपोर्ट: फाल्के ने बतौर फिल्मकार अपना करियर बनाने के लिए लंदन जाने का फैसला लिया। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए साल 1912 में अपने दोस्त से कुछ पैसे उधार लेकर वो लंदन चले गए। लगभग दो सप्ताह तक लंदन में फिल्म मेकिंग का काम सीखा और इससे जुड़े उपकरण खरीदने के बाद मुंबई वापस लौट आए। लंदन से आने के बाद उन्होंने 'राजा हरिश्चंद्र' (भारत की पहली मूक फिल्म) बनाने के बारे में सोचा। फिल्म बनाने के लिए सबसे पहली जरूरत पैसों की होती हैं। इस फिल्म को बनाने में करीब 15 हजार रुपए लगे थे। ये सारे पैसे उनकी दूसरी पत्नी सरस्वती बाई ने अपने गहने गिरवी रख कर दी।



40 मिनट की फिल्म 3 आने में दिखाई: फिल्म बनने के बाद सबसे बड़ा टास्क लोगों को थियेटर तक लाने का था। उस समय लोग 6 घंटे का नाटक 2 आने में देखते थे। तो फिर कोई फिल्म देखने क्यों आता? इसके लिए उन्होंने नए तरीके से प्रचार किया। इस प्रचार में लिखा- 'सिर्फ तीन आने में देखिए दो मील लंबी फिल्म में 57 हजार चित्र...'  कुछ खास लोगों और पत्रकारों के लिए इस फिल्म का प्रीमियर रखा गया। 3 मई, 1913 को मुंबई के कोरोनेशन थियेटर में ये फिल्म रिलीज की गई और हिट भी हुई। इसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों में इसे दिखाने के लिए कई प्रिंट तैयार किए गए। इस फिल्म की कहानी दादा साहेब की थी और डायरेक्टर प्रोड्यूसर भी वही थे। 




raja harishacnadra

फिल्म राजा हरिशचंद्र।




राजा हरिश्चंद्र के बाद की फिल्में: 'राजा हरीशचंद्र' के बाद 'मोहिनी भस्मासुर' (1913), 'सत्यवान सावित्री' (1914), 'लंका दहन' (1917), 'श्री कृष्णा जन्म' (1918), 'कालिया मर्दन' (1919) जैसी फिल्म दादा साहेब ने बनाईं। 



आखिरी फिल्म: 1932 में रिलीज हुई फिल्म 'सेतुबंधन' दादा साहेब फाल्के की आखिरी मूक फिल्म थी। उन्होंने 1937 में फिल्म 'गंगावतरण' से कमबैक की कोशिश की लेकिन ये फिल्म नहीं चली, ये उनकी आखिरी बोलने वाली फिल्म थी। इन फिल्मों की विदेशों में भी काफी तारीफ हुई। 16 फरवरी 1944 को नासिक में उनकी मृत्यु हो गई।



दादा साहेब फाल्के पुरस्कार: दादा साहेब फाल्के के नाम पर सिनेमा में अतुलनीय योगदान (incomparable contribution) के लिए भारत सरकार की ओर से अवॉर्ड दिया जाता है। इस अवॉर्ड की शुरूआत 1969 से हुआ। 'लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड' के रूप में दिया जाने वाला ये 'दादा साहेब फाल्के पुरस्कार' भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का सबसे प्रेस्टिजस पुरस्कार है। 1969 में ये पहला पुरस्कार एक्ट्रेस देविका रानी को दिया गया था।


Bollywood Film Making First Film Photography Dada Saheb Falke kisse Dada Saheb Falke Award Dada Saheb Lifetime achievement award दादा साहेब फाल्के दादा साहब फाल्के अवार्ड film production