मुंबई. फिल्म केजीएफ-1 (कोलार गोल्ड फील्ड-1) के बाद लोग केजीएफ पार्ट 2 का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे और उनका इंतजार खाली नहीं गया। केजीएफ-2 ने रिलीज के पहले दिन यानी 14 अप्रैल को कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। प्रशांत नील डिरेक्टेड इस फिल्म के हिंदी संस्करणों की कुल (ग्रॉस) कमाई करीब 63 करोड़ रुपए रही। इसमें सारे खर्चे निकालने के बाद भी बची नेट कमाई ने फिल्म ‘वॉर’ के पहले दिन के सर्वाधिक कलेक्शन के रिकॉर्ड को तोड़ दिया। आरआरआर करीब 550 करोड़ में बनी, जबकि केजीएफ 2 का बजट सिर्फ 150 करोड़ रु. ही है।
केजीएफ-2 हिंदी की पहले दिन की नेट कमाई (शुरुआती आंकड़ों के हिसाब से) 54 करोड़ रु. रही। इसके पहले का रिकॉर्ड ऋतिक रोशन, टाइगर श्रॉफ और वाणी कपूर की हिंदी, तमिल और तेलुगू में रिलीज फिल्म ‘वॉर’ के नाम था। वॉर ने पहले दिन 53.24 करोड़ कमाए थे। फिल्म ‘केजीएफ 2’ ने पहले दिन सारी भारतीय भाषाओं को मिलाकर घरेलू बॉक्स ऑफिस पर 128 करोड़ रु. की नेट कमाई की। ये कमाई राजामौली की फिल्म ‘आरआरआर’ की पहले दिन की कमाई के बराबर ही है।
सुपरस्टार यश की ये फिल्म कर्नाटक के कोलार में स्थित सोने की खदानों पर बेस्ड है। आइए जानते हैं कोलार गोल्ड फील्ड की असली कहानी...
दुनिया की सबसे गहरी सोने की खदान
कर्नाटक के दक्षिण-पूर्व इलाके में कोलार जिला स्थित है। जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर रॉबर्ट्सनपेट एक तहसील है। यहीं पर सोने की खदान है। कोलार बेंगलुरु से करीब 100 किमी दूर है। कोलार गोल्ड फील्ड दुनिया की दूसरी सबसे गहरी सोने की खदान है, पहले नंबर पर जोहानेसबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) की पोनेंग गोल्ड माइंस है।
हाथ से खोदा और सोना निकाल लिया
ब्रिटिश सरकार के लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन ने चोल वंश की दंतकथाएं सुनी थीं कि लोग हाथ से खोदकर सोना निकाल लेते थे। इसी बात से प्रभावित होकर वॉरेन ने गांव वालों से कहा कि जो इस खदान से सोना निकालकर दिखाएगा, उसे इनाम दिया जाएगा। इनाम पाने की लालच में ग्रामीण लेफ्टिनेंट वॉरेन के सामने मिट्टी से भरी एक बैलगाड़ी ले आए।
गांव वालों ने वॉरेन के सामने मिट्टी को पानी से धुला तो उसमें सोने के अंश दिखाई दिए। उस समय वॉरेन ने करीब 56 किलो सोना निकलवाया। 1804 से 1860 तक काफी पड़ताल की गई, लेकिन कुछ खास हाथ नहीं लगा। इस शोध के चलते काफी लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इसके कारण वहां खुदाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
1871 में कोलार में फिर शोध शुरू
न्यूजीलैंड से भारत आए रिटायर्ड ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्जगेराल्ड लेवेली 1804 में ‘एशियाटिक जर्नल’ में छपी एक रिपोर्ट पढ़ने के बाद कोलार गोल्ड फील्ड को लेकर काफी उत्साहित हुए। उसने इसे शुरू करने का सोचा। लेवेली ने बेंगलुरु में रहने का फैसला लिया। लेवेली ने 1871 में बैलगाड़ी से करीब 100 किमी तक का सफर किया। सफर के दौरान लेवेली ने खनन की जगहों की पहचान की और सोने के भंडार वाली जगहों को खोजने में कामयाब रहे।
लेवेली ने दो साल खोज को पूरा करने के बाद 1873 में मैसूर के महाराज की सरकार से कोलार में खनन करने का लाइसेंस मांगा। 2 फरवरी 1875 में लेवेली को खनन करने का लाइलेंस मिला, लेकिन उनके पास उतना पैसा नहीं था। लिहाजा उन्होंने इंवेस्टर ढूंढे और खनन का काम जॉन टेलर और सन्स के हाथ में आ गया, जो एक बड़ी ब्रिटिश कंपनी थी। ज्यादा समय उसका पैसा जुटाने और लोगों के काम करने के लिए तैयार करने में गुजरा। आखिरकार KGF से सोना निकालने का काम शुरू हो गया।
ऐसा था भारत में सोने का प्रोडक्शन
जॉन टेलर और सन्स ने 1880 में माइनिंग ऑपरेशन को टेकओवर कर लिया। 'स्टेट ऑफ द आर्ट' माइनिंग इंजीनियरिंग इक्विपमेंट लगाया। इनके द्वारा 1890 में लगाया गया उपकरण 1990 तक चला यानी यह 100 साल तक ऑपरेशनल रहा। 1902 में KGF, भारत का 95% सोना निकालती थी। 1905 में भारत गोल्ड प्रोडक्शन में दुनिया में छठे पायदान पर था।
मुश्किलों भरी थी गोल्ड माइनिंग
1880 के दशक में माइनिंग ऑपरेशन बेहद कठिन था। पहले चुनिंदा जगहों पर ही लाइट हुआ करती थी, इसलिए कहीं लिफ्ट नहीं होती थी। माइंस में जाने के लिए शार्प हुआ करते थे, जिसमें लकड़ी की बीम से सपोर्ट किया जाता था। इसके बावजूद यहां पर कभी-कभी हादसा हो जाता है। माना जाता है 120 साल के ऑपरेशन में 6000 लोगों की मौत हो गई।
कोलार गोल्ड फील्ड्स में लाइट की कमी को पूरा करने के लिए कोलार से 130 किलोमीटर की दूरी पर कावेरी बिजली केंद्र बनाया गया। ये पावर प्लांट एशिया का दूसरा और भारत का पहला बिजली केंद्र था। बिजली मिलने के बाद कोलार गोल्ड फील्ड का काम दोगुना हो गया। इस केंद्र का निर्माण कर्नाटक के मांड्या जिले के शिवनसमुद्र में किया गया। सोने की खदान के चलते बेंगलुरू और मैसूर की बजाय KGF को प्रथमिकता मिलने लगी।
कोलार को कहा जाता था मिनी इंग्लैंड
कोलार में सोने की खुदाई शुरू होने के बाद यहां की सूरत बदल गई। माइनिंग के साथ-साथ यहां डेवलपमेंट भी आया। यहां पर ब्रिटिश इंजीनियरों, अधिकारियों और दुनिया भर के अन्य लोगों के लिए बंगले, हॉस्पिटल, गोल्फ कोर्स और क्लब बनाए गए। जगह काफी ठंडी थी और वहां पर लोग ब्रिटिश अंदाज में घर बनाने लगे। इस निर्माण से KGF मिनी इंग्लैड जैसा लगने लगा। हालांकि, जो लोग माइन में काम करते थे, उनके लिए हालात इंग्लैंड जैसे नहीं थे। वो कुली लेन में रहते थे, जहां सुविधाएं कम थीं। एक ही शेड में कई परिवार रहते थे और उनका जीवन बेहद कठिन था। ये जगह चूहों के हमले के लिए प्रसिद्ध थी। बताया जाता है यहां रहने वाले श्रमिकों ने एक साल में करीब 50 हजार चूहे मार दिए थे।
1956 में KGF पर सरकार का कंट्रोल
1930 में कोलार गोल्ड फील्ड में करीब 30 हजार मजदूर काम करते थे। KGF में जब सोने के भंडार में कमी होने लगी, तब कामगार भी कोलार छोड़कर जाने लगे। हालांकि KGF पर आजादी तक अंग्रेजों का कब्जा रहा, लेकिन आजादी के बाद 1956 में केंद्र सरकार ने कंट्रोल अपने हाथों में लेने का फैसला किया। वहीं ज्यादातर खदानों का स्वामित्व राज्य सरकारों को सौंप दिया गया।
भारत के सोने का 95% उत्पादन करने वाली खदानों को बंद होने से बचाने के लिए राष्ट्रीयकरण किया गया था। 1979 तक काफी घाटा होने लगा और मजदूरों की सैलरी तक नहीं दे पा रहे थे। 2001 में कोलार गोल्ड फील्ड्स को बंद कर दिया गया।
कोलार गोल्ड फील्ड फिलहाल खंडहर
KGF से कभी इतना सोना निकलता था कि हमारे देश को इंपोर्ट करने की जरूरत न के बराबर थी। KGF जब से बंद हुआ तब से भारत पर इंपोर्ट करने का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। जो सुरंगें सोना निकालने के खोदी गई थीं, उनमें अब पानी भर चुका है। खदान एकदम खंडहर हो चुकी है। सरकारी और कोर्ट के आदेश के बावजूद KGF का किसी ने फिर से पुनरुत्थान नहीं किया। माना जाता है कि KGF के पास अभी भी बहुत सोना है, लेकिन उसे निकालने के लिए जो लागत आएगी वो सोने से ज्यादा है।
मोदी सरकार ने दिए KGF को फिर से खोलने के संकेत
2001 में बंद होने के बाद 15 साल तक KGF ठप पड़ी रही। 2016 में मोदी सरकार ने KGF में फिर से काम शुरू करने का संकेत दिया। 2016 में KGF के लिए नीलामी प्रक्रिया शुरू करने के लिए टेंडर निकालने के लिए कहा था। फिलहाल KGF को लेकर सारे संकेत ठंडे बस्ते में हैं। घोषणा का क्या हुआ, इसका अभी कुछ पता नहीं है।
अगर कोलार खदान फिर से खुल जाएगी, तो क्या असर पड़ेगा…
चीन के बाद सोने की खपत में भारत दूसरे नंबर पर है। कोलार में आज भी काफी सोना बचा हुआ है। KGF का खुलना इसलिए भी अहम होगा कि जिस तरह सोने की मांग बढ़ रही है, उसे वहां से पूरा किया जा सकता है। इससे देश पर पड़ रहा बोझ भी थोड़ा कम होगा। रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद के अनुसार भारत ने 2021 में 1067.72 टन सोना इंपोर्ट किया। सोने के इंपोर्ट की वजह से भारत की जेब पर बोझ पड़ता है। ऐसे में अगर कोलार खदान फिर से खुल जाए तो कुछ बोझ हल्का हो सकता है।
देश में सोने से जुड़े तथ्य, एक नजर में
- वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक, भारतीय घरों और मंदिरों में करीब 25 हजार टन सोना मौजूद है। इसकी कीमत करीब 70 लाख करोड़ रुपए है।