MUMBAI. आर.डी. बर्मन का जन्म कलकत्ता (Kolkata) में 27 जून 1939 को एक म्यूजिकल बैक्ग्राउंड रखने वाली फैमिली में हुआ। उनके पिता महान संगीत निर्देशक (music director) एस.डी. बर्मन थे। बर्मन साहब को अपने जन्म के बाद 'पंचम' नाम दिया गया था। इसीलिए उन्हें 'पंचम दा' के नाम से भी जाना जाता है।
राहुल देव बर्मन, जिन्हें आर.डी. बर्मन के नाम से जाना जाता है, 60s से 90s के समय इन्हें अनबीटेबल पश्चिमी संगीत (Bengali music) की शुरुआत करने के लिए जाना जाता था। आज भी आर डी बर्मन के निर्देशन (direction) में बने गाने उतने ही हिट हैं जितना पहले हुआ करते थे।
आर. डी बर्मन का म्यूजिकल करिअर | R D Burman Musical Career
उनके म्यूजिकल करियर की शुरुआत 1958 में हुई। उन्होंने 'सोल्हवा साल' (1958), चलती का नाम गाड़ी' (1958), और 'कागज़ का फूल' (1957) जैसी फिल्मों में अपने पिता को असिस्ट करना शुरू किया। संगीत निर्देशक (music director) के रूप में उन्होंने पहली बार गुरुदत्त की फिल्म राज (1959) में काम किया। एक संगीत निर्देशक (music director) के रूप में बर्मन ने फर्स्ट रिलीज महमूद की फिल्म छोटे नवाब (1961) से दिया। वहीं से उनके करिअर की शुरूआत हुई।
आर डी ने अपने पिता की फिल्म बंदिनी (1963), तीन देवियाँ (1965), गाइड (1965), ज्वेल थीफ (1967) और तलाश (1969) जैसी फिल्मों में असिस्टेंट म्यूजिक डायरेक्टर (asistant music director) के रूप में काम किया। बर्मन के पिता का हिट सॉन्ग 'है अपना दिल तो आवारा' में उन्होंने माउथ ऑर्गन (mouth organ) भी बजाय था। जिसका यूज फिल्म सोल्हवा साल (1958) में किया गया।
आर डी ने एक्टिंग में भी हाथ आजमाया था। फिल्म भूत बंगला (1965) और प्यार का मौसम (1967) जैसी फिल्मों में एक्टिंग भी की। 1966 में आई फिल्म तीसरी मंजिल उनके करिअर की एक बड़ी सक्सेस रही। इस फिल्म ने आर. डी. बर्मन की पहचान लोगो के बीच एक सक्सेसफुल संगीत निर्देशक (music director) के तौर पर रखी। इस फिल्म की सफलता से खुश होकर नासिर हुसैन ने अपनी अगली 6 फिल्मों के लिए आर. डी. बर्मन को साइन कर लिया।
फिल्म पड़ोसन (1968) और वारिस (1969) जैसी कई सक्सेसफुल फिल्मों में आर डी ने म्यूजिक डायरेक्ट किया। 70s की शुरुआत से आरडी बर्मन संगीत निर्देशक (music director) के रूप में बॉलीवुड की सबसे बड़ी हस्ती बन गए। इसके बाद 'अमर प्रेम' (1971), 'हरे रामा हरे कृष्णा' (1971), 'सीता और गीता' (1972), और 'शोले' (1975) के संगीत निर्देशक (music director) रूप बड़े प्रोजेक्ट्स किए और बॉलीवुड को बेहतरीन गाने दिए।
आर. डी. बर्मन का अंतिम समय
1980 का समय आर डी के लिए कुछ खास नहीं था। जहाँ आर.डी. बर्मन ने पश्चिमी प्रेरित (Bengali based) गानों से अपना करियर बनाया था, वहीँ उन्हें बार-बार बप्पी लहरी के पश्चिमी प्रेरित डिस्को (Bengali based disco) से मात दी जा रही थी।
1988 में, 49 साल की उम्र में बर्मन साहब को दिल हार्ट अटैक आया जिसके बाद उन्होंने सर्जरी करवाई और संगीत बनाना जारी रखा। लेकिन 54 साल की उम्र में उन्हें एक और हार्ट अटैक आया और 4 जनवरी, 1994 को उनकी मृत्यु हो गई।