फुटबॉल के फैन थे एसडी बर्मन, टीम हारती थी तो खुशी का गाना रिकॉर्ड नहीं करते थे, चप्पल चोरी रोकने के लिए करते थे खास उपाय

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Atul Tiwari
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फुटबॉल के फैन थे एसडी बर्मन, टीम हारती थी तो खुशी का गाना रिकॉर्ड नहीं करते थे, चप्पल चोरी रोकने के लिए करते थे खास उपाय

BHOPAL. म्यूजिक डायरेक्टर सचिन देव बर्मन किसी पहचान के मोहताज नहीं। उनके कंपोज किए सैकड़ों गाने आज भी लोगों की जुबान पर हैं। त्र‍िपुरा राजघराने से ताल्‍लुक रखने वाले एसडी बर्मन साहब ने 1937 में शुरुआत तो बंगाली फिल्‍मों से की थी, लेकिन हिंदी फिल्‍मों में संगीत को उन्‍होंने नया मुकाम दिया। 100 से ज्‍यादा फिल्‍मों के म्‍यूजिक डायरेक्‍टर एसडी बर्मन साहब ने लता मंगेशकर से लेकर मोहम्‍मद रफी, मन्ना डे, किशोर कुमार से लेकर मुकेश तक हर किसी के करियर को आसमान पर पहुंचाया। बर्मन दा जितने बेहतरीन संगीतकार थे, उससे कहीं ज्‍यादा दिलचस्‍प इंसान थे।



त्रिपुरा राजघराने से ताल्लुक



बंगाल प्रेजिडेंसी में 1 अक्‍टूबर 1906 को पैदा हुए एसडी बर्मन की मां राजकुमारी निर्मला देवी थीं। वह मण‍िपुर की राजकुारी थीं, जबकि उनके पिता एमआरएन देव बर्मन त्रिपुरा के महाराज के बेटे थे। सचिन देव बर्मन 9 भाई-बहन थे। पांच भाइयों में वह सबसे छोटे थे। यह दिलचस्‍प है कि राजघराने से ताल्‍लुक रखने के बावजूद सचिन देव बर्मन के कंजूसी के किस्‍से पूरी इंडस्‍ट्री में मशहूर हैं। यही नहीं, वह नाराज भी जल्‍दी हो जाते थे और पलभर में ही नाराजगी दूर भी हो जाती थी। 



अपनी फुटबॉल टीम हारती तो नहीं बनाते थे खुशी का गाना



एसडी बर्मन खर्च नहीं करते थे। इसलिए उन्‍हें इंडस्‍ट्री में बहुत से लोग कंजूस कहते थे, लेकिन उन्‍हें खाने-पीने का भी उतना ही शौक था। फुटबॉल उन्‍हें बहुत पसंद था। बताया जाता है कि एक बार जब मोहन बगान की टीम हार गई तो उन्होंने गुरुदत्त से कहा कि आज वह खुशी का गीत नहीं बना सकते हैं। कोई दुख वाला गीत है तो बनवा लो।



रेडियो स्‍टेशन से की थी शुरुआत



अभिमान, ज्वेल थीफ, गाइड, प्यासा, बंदनी, सुजाता, टैक्सी ड्राइवर जैसी फिल्‍मों में ऐतिहासिक संगीत देने वाले एसडी बर्मन ने म्‍यूजिक इंडस्‍ट्री में स‍ितारवादन के साथ कदम रखा था। कोलकाता यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद वह 1932 में कलकत्ता रेडियो स्टेशन पर गायक के तौर जुड़े।



चप्‍पल चोरी का डर 



एसडी बर्मन साहब का मजाकिया अंदाज खास मशहूर रहा है। उनके बेटे आरडी बर्मन की बायोग्राफी में खगेश देव बर्मन ने लिखा- 'मंदिर में घुसने से पहले सचिन देव बर्मन साहब जूते या चप्‍पल की जोड़ी एकसाथ नहीं रखते थे। वह एक चप्‍पल कहीं तो दूसरी चप्‍पल कहीं और रखते थे। जब उनसे किसी ने इसके बारे में पूछा तो उन्‍होंने जवाब दिया- आजकल चप्‍पल चोरी की वारदात बढ़ गई हैं। इस पर उनके साथी ने पूछा कि यदि चोर ने चप्‍पल के ढेर में से दूसरी चप्‍पी भी निकाल ली तो? इस पर एसडी बर्मन ने जवाब दिया कि यदि चोर इतनी मेहनत करता है तो वह वाकई इसे पाने का हकदार है।'



साहिर लुध‍ियानवी से 1 रुपये का झगड़ा



एसडी बर्मन और साहिर लुधियानवी के बीच हुई अनबन भी इंडस्‍ट्री में बहुत मशहूर है। गुरु दत्त अपनी फिल्‍म 'प्यासा' बना रहे थे। इस अनबन की वजह थी गाने का क्रेडिट किसे मिले। एसडी बर्मन के जीवन पर किताब लिखने वाली लेखिका सत्या सरन ने एक इंटरव्‍यू में बताया, 'यह मामला इतना बढ़ गया था कि साहिर लुध‍ियानवी ने सचिन देव बर्मन से कहा कि वह एक रुपए ज्यादा फीस चाहते हैं। इस जिद के पीछे साहिर का तर्क यह था कि एसडी के संगीत की लोकप्रियता में उनका बराबर का हाथ था। एसडी बर्मन ने शर्त को मानने से इनकार कर दिया और फिर दोनों ने कभी साथ में काम नहीं किया।



लता मंगेशकर से भी हुई थी अनबन



एसडी बर्मन साहब का लता मंगेशकर से भी झगड़ा हुआ था। एक बार रेडियो इंटरव्यू में लता जी ने कहा, 'हमारी अनबन 1958 की फिल्म 'सितारों से आगे' के एक गीत को लेकर हुई थी। मैंने 'पग ठुमक चलत...' गीत रिकॉर्ड किया तो पंचम दा बहुत खुश हुए और इसे ओके कर दिया, लेकिन बर्मन साहब (सचिन देव बर्मन) परफेक्शनिस्ट थे। उन्होंने मुझे फोन किया कि वो इस गीत की दोबारा रिकॉर्डिग करना चाहते हैं। मैं कहीं बाहर जा रही थी, इसलिए मैंने मना कर दिया। बर्मन साहब इस पर नाराज हो गए। इसके बाद कई साल तक हम दोनों ने साथ में काम नहीं किया।'



लता और सचिन देव बर्मन की इस अनबन को उनके बेटे आरडी बर्मन यानी पंचम दा ने ही सुलझाया था। चार साल बाद 1962 में जब राहुल देव बर्मन अपनी फिल्म 'छोटे नवाब' का म्‍यूजिक कंपोज कर रहे थे, तब उन्होंने पिता एसडी बर्मन से कहा कि म्‍यूजिक डायरेक्‍टर के तौर पर वह अपनी पहली फिल्म में लता दीदी से गाना गवाना चाहते हैं। इसके बाद दोनों बाप-बेटे में काफी देर बातचीत हुई और आखिरकार एसडी बर्मन मान गए।



किशोर कुमार के साथ खास केमिस्ट्री



बर्मन साहब, किशोर कुमार की आवाज का बहुत ध्यान रखते थे। वो हमेशा किशोर कुमार से ज्यादा उछल कूद करने से मना करते थे। वो फोन कर किशोर कुमार से कहते 'अगर तू अपनी आवाज को नहीं संभालेगा तो आवाज भी तेरे को नहीं संभालेगा।' एक दिन किशोर कुमार, एसडी बर्मन साहब के साथ फिल्म प्रेम पुजारी के प्रीमियर पर पहुंचे। वहां किशोर कुमार ने एस डी बर्मन साहब से कहा- 'दादा कल रिकॉर्डिंग है और इस एयर कंडीशन के कारण मेरी आवाज थोड़ी गड़बड़ लग रही है।' बर्मन साहब ने थिएटर के मैनेजर को बुलाकर पूरे थिएटर का एयर कंडीशन मशीन ऑफ करने को कह दिया। कभी कभी बीच रास्ते पर अगर बर्मन साहब को किशोर कुमार दिख जाते तो उन्हें बीच रास्ते पर गाड़ी रोककर रिहर्सल कराते। पूरे रास्ते पर ट्रैफिक जाम हो जाता था।



जब किशोर दा, बर्मन साहब के लिए आखिरी गाना गा रहे थे तो उस समय वो स्टूडियो में मौजूद नहीं थे, बल्कि अस्पताल में थे। इंटरव्यू के दौरान किशोर कुमार ने बताया कि जब बर्मन साहब के घर गाने की रिहलसल चल रही थी तो बर्मन साहब की तबीयत खराब हो रही थी। रिहर्सल कर जब किशोर दा अपने घर के लिए निकलने तो उसके कुल 30 मिनट बात बर्मन साहब की तबीयत ज्यादा खराब हो गई। डॉक्टर ने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने को कहा। तो बर्मन साहब ने साफ इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि 'किशोर की रिकॉर्डिंग होने के बाद ही वो अस्पताल जाएंगे।' 



पंचम दा यानी राहुल देव बर्मन को अपने पिता की हालत देखी नहीं गई। वो तुरंत किशोर कुमार के पास पहुंचे और पूरी बात बताई। किशोर कुमार, बर्मन साहब से मिलने पहुंचे और वहां जाकर अपनी आवाज जानबूझकर खराब कर बोले- 'दादा, मेरी आवाज अभी खराब है। कुछ दिनों के लिए रिकॉर्डिंग टाल दीजिए और अस्पताल चले जाइए।' बर्मन साहब ने किशोर दा का हाथ पकड़ते हुए कहा कि देख किशोर, गाना अच्छा होना चाहिए रे। अगर मैं रिकॉर्डिंग के समय न भी रहूं तब भी सोचना मैं वहीं हूं और वैसे ही गाना जैसा मैं चाहता हूं।' जिसका डर था वही हुआ। बर्मन साहब रिकॉर्डिंग के वक्त स्टूडियो में मौजूद नहीं थे।



किशोर कुमार के गाना रिकॉर्ड करने के बाद राहुल देव बर्मन गाने का टेप लेकर अस्पताल पहुंचे और बर्मन साहब को गाना सुनाया। गाना सुनने के बाद बर्मन साहब ने अपने बेटे से कहा 'पंचम, मुझे मालूम था, किशोर ऐसा ही गाएगा।' वो गाना अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी की फिल्म मिली का था- 'बड़ी सूनी सूनी है जिंदगी ये जिंदगी।'



सचिन देव बर्मन और सचिन तेंदुलकर का कनेक्‍शन



यह बात भी दिलचस्‍प है कि महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर का नाम भी एसडी बर्मन के ही कारण पड़ा है। दरअसल, सचिन तेंदुलकर के दादा सचिन देव बर्मन के बहुत बड़े फैन थे। उन्‍होंने ही प्रेरित होकर अपने पोते का नाम सचिन तेंदुलकर रखा था। सचिन देव बर्मन की याद में त्र‍िपुरा सरकार हर साल सचिन देव बर्मन मेमोरियल अवॉर्ड भी देती है। 31 अक्‍टूबर 1975 को एसडीबर्मन साहब का निधन हो गया। साल 2007 में एसडी बर्मन की याद में सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया।


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