MUMBAI. 70 के दशक के पॉपुलर एक्टर विनोद खन्ना हर दिलों की धड़कन हुआ करते थे। आज ( 27 अप्रैल) को विनोद की डेथ एनिवर्सरी है। उनका जन्म 6 अक्टूबर, 1946 को हुआ था। एक समय ऐसा था जब हर तरफ सिर्फ विनोद के ही चर्चे हुआ करते थे। हर कोई उनकी फिल्मों का इंतजार करता था। विनोद जब अपने करियर के पीक में थे, तब उन्होंने एक ऐसा फैसला किया जिसने हर किसी को हैरान कर दिया। विनोद, ओशो के प्रभाव में आकर संन्यासी बन गए थे। उनके करियर और फैमिली के बीच का पूरा संतुलन बिगड़ गया था। उनके आखिरी पलों में वह अपना ना ही करियर बचा पाए और ना ही परिवार।
1968 में शुरू हुआ था फिल्मी सफर
विनोद खन्ना ने 1968 में फिल्म ‘मन का मीत’ से बॉलीवुड में कदम रखा था। मेरा गांव मेरा देश,अमर अकबर एंथनी, मुकद्दर का सिकंदर, द बर्निंग ट्रेन इतकी शानदार फिल्में है। विनोद बॉलीवुड के ऐसे एक्टर रहे हैं, जिन्होंने अपनी एक्टिंग से लोगों को अपना दिवाना बनाया। उनका लुक तो चार्मिंग था ही, लेकिन उनकी अदायगी और डॉयलॉग डिलिवरी ऐसी थी कि लोग सीटियां बजाए नहीं रहते थे।
विनोद खन्ना के फैसले ने लोगों को किया था हैरान
विनोद के पास 25-30 फिल्मों की लाइन लगी थी। लेकिन उन्होंने इन फिल्मों के ऑफर को रिजेक्ट कर संन्यासी बनने का फैसला ले लिया था। विनोद पुणे के ओशो आश्रम में कई सालों तक रहे थे। वे ओशो के साथ अमेरिका भी गए और उनकी सेवा में लगे रहते थे। बहुत कम लोग जानते होंगे कि वे ओशो के पर्सनल गार्डन के माली भी बने था। वहां उन्होंने ओशो के वाशरूम और बर्तन भी साफ किए थे।
ये खबर भी पढ़िए....
सन्यासी बनने की वजह से हुआ डिवोर्स
विनोद ने गीतांजली से शादी की थी। दोनों की मुलाकात कॉलेज में हुई थीं। उनके दो बच्चे भी हैं। उनकी लाइफ में सब कुछ सही चल रहा था। वो लोग हैप्पी लाइफ जी रहे थे। इसी दौरान विनोद अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर अमेरिका साधु बनने चले गए। सन्यासी बनने के कुछ दिनों बाद से उनके और उनकी पत्नी के बीच दरार आनी शुरू हो गई थी। फिर दोनों का डिवोर्स हो गया। सन्यासी बनने के कुछ ही साल बाद विनोद का ओशो के आश्रम से मन उचट गया और वह इंडिया वापस आ गए थे। इसके बाद विनोद ने कविता दफ्तरी से शादी कर ली।