नवरात्रि के पांचवें दिन देवी दुर्गा के पांचवे स्वरूप मोक्ष प्रदान करने वाली और समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने वाली मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है।
मां के स्वरुप की बात करें तो मान्यता के अनुसार, स्कंदमाता चार भुजाओं वाली हैं, माता अपने दो हाथों में कमल का फूल लिए दिखती हैं। एक हाथ में स्कंदजी बालरूप में बैठे हैं और दूसरे से माता तीर को संभाले हैं।
मां स्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना देवी के नाम से भी जाना जाता है। स्कंदमाता का वाहन सिंह है। शेर पर सवार होकर माता दुर्गा अपने पांचवें स्वरुप स्कन्दमाता के रुप में भक्तजनों के कल्याण करती हैं।
मान्यता है कि देवी स्कंदमाता की पूजा करने से व्यक्ति संतान सुख की प्राप्ति होती है।
वाराणसी के जगतपुरा क्षेत्र के बागेश्वरी देवी मंदिर परिसर में दुर्गा के पांचवे स्वरूप मां स्कंदमाता का मंदिर है। देवी के इस रूप का उल्लेख काशी खंड और देवी पुराण में इस स्वरूप का उल्लेख मिलता है।
मध्य प्रदेश के विदिशा में पुराने बस स्टैंड के पास सांकल कुआं के पास दुर्गाजी का विशाल मंदिर है। इसकी स्थापना 1998 में हुई थी, यहां माता दुर्गा का स्कंदमाता स्वरूप विराजमान है। मंदिर के पुजारी के अनुसार 40 से 45 साल पहले इस जगह पर झांकी सजाई जाती थी। इस बीच कुछ भक्तों के मन में मां की ज्योति जगी तो उन्होंने मां स्कंदमाता मंदिर का निर्माण कराया।