चॉकलेट, बिस्किट, चिप्स, भुजिया और कोल्ड ड्रिंक्स में मानक से आठ गुना तक ज्यादा शुगर फैट और सोडियम, बीमारियां बढ़ा रहीं

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Pratibha Rana
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चॉकलेट, बिस्किट, चिप्स, भुजिया और कोल्ड ड्रिंक्स में मानक से आठ गुना तक ज्यादा शुगर फैट और सोडियम, बीमारियां बढ़ा रहीं

New Delhi. हर कोई बिस्किट, चिप्स, भुजिया, कोल्ड ड्रिंक, ब्रेड और चॉकलेट जैसे अल्ट्रा प्रॉसेस्ड फूड (यूपीएफ) खाने-पीने का शौक कहीं महंगा ना पड़ जाए। हमारे घरों का हिस्सा बन चुकी ये सामग्रियां हमें धीरे-धीरे लती और बीमार बना रही हैं। फैक्टरी निर्मित इन उत्पादों में शुगर, फैट और सोडियम की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों की तुलना में आठ गुना तक अधिक है। बावजूद आक्रामक मार्केटिंग, बच्चों को लक्षित करने वाले विज्ञापनों और लचर नियमों का फायदा उठाकर फूड कंपनियां तेजी से भारत में अपना बाजार बढ़ा रही हैं। इन जंक फूड की खपत के साथ-साथ भारत में तेजी से डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। यह गंभीर जानकारी संगठन न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट (नापी) के शोध में सामने आई है।

हर उत्पाद में शुगर, फैट और सोडियम तीनों तत्व

पोषण पर काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट ने बिस्किट, चिप्स, भुजिया, कोल्ड ड्रिंक, ब्रेड और चॉकलेट जैसे 43 पैकेज्ड फूड का अध्ययन किया। इसमें पाया कि एक भी उत्पाद ऐसा नहीं है, जिसमें शुगर, फैट और सोडियम तीनों की तत्व डब्ल्यूएचओ की ओर से तय मानक के अंदर हों। करीब एक तिहाई उत्पाद तो ऐसे थे, जिनमें शुगर, फैट और सोडियम तीनों की मात्रा तय मानक से कहीं अधिक थी। ये सभी ऐसे उत्पाद हैं, जिनकी हमारे घरों में रोजाना खपत होती है और खासतौर पर बच्चे इन्हें पसंद करते हैं।

भ्रामक विज्ञापनों से बच्चों को बना रहे लक्ष्य

शोध में सामने आया कि फूड कंपनियां अपने विज्ञापन में सेलिब्रिटी इंडोर्समेंट, बच्चों को लक्ष्य बनाकर और जरूरी सूचनाएं छुपाकर उत्पादों को बढ़ावा दे रही हैं। यह विज्ञापन कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत गुमराह करने वाले विज्ञापनों की कैटेगरी में आते हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) का अध्ययन बताता है कि देश में डायबिटीज के 10 करोड़ मरीज हैं। हर 4 में से 1 भारतीय या तो डायबिटीज या प्री-डायबिटीज या मोटापे से ग्रस्त है। पोषण ट्रैकर के आंकड़े बताते हैं कि 5 साल से कम उम्र के 43 लाख बच्चे मोटापे या अधिक वजन के शिकार हैं, जो ट्रैक किए गए कुल बच्चों का 6% है। विशेषज्ञ इसके पीछे बड़ी वजह जंक फूड को मानते हैं।

ग्रामीण भारत और गरीब वर्ग के बीच में पहुंचे जंक फूड

अगस्त 2023 में आई विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक स्टडी में बताया गया था कि भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की खुदरा बिक्री वर्ष 2011 और 2021 के बीच 13.37% की चक्रवृद्धि दर से बढ़ी है। जंक फूड सिर्फ अमीर और शहरी वर्ग तक सीमित नहीं रह गया है। आक्रामक मार्केटिंग के दम पर इसने ग्रामीण भारत और गरीब वर्ग के बीच भी जगह बना ली है।

अल्ट्रा प्रॉसेस्ड फूड : अकाल मौत का खतरा 14% तक बढ़ा

जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित अध्ययन में यह भी पाया गया कि अल्ट्रा प्रॉसेस्ड फूड की खपत में 10% की बढ़ोतरी से डायबिटीज का का खतरा 15% तक और अकाल मृत्यु का खतरा 14 फीसदी बढ़ जाता है। इसके अलावा, अल्ट्रा प्रॉसेस्ड फूड हृदय रोग, स्ट्रोक, डिप्रेशन और कैंसर जैसी बामारियों का भी कारण बनते हैं।

14 दिन में ही 900 ग्राम बढ़ जाता है वजन

अमेरिका में हुए एक अन्य अध्ययन में सामने आया कि जंक फूड खाने वाले अनजाने में रोजाना 500 अतिरिक्त कैलोरी ले लेते हैं और महज 14 दिनों में उनका वजन लगभग 900 ग्राम बढ़ जाता है। नापी के संयोजक डॉ. अरुण गुप्ता कहते हैं, भारत में यूरोप और अमेरिका जैसे भयावह हालात न बनें, इसके लिए जंक फूड की खपत पर लगाम लगाना जरूरी है।

कहां हो रही चूक, नियमों का मसौदा लंबित

मालूम हो, पैकेज्ड फूड उत्पादों पर फ्रंट ऑफ पैक लेबलिंग का मसौदा बीते एक साल से फूड रेगुलेटर भारतीय खाद्य संरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के पास लंबित है। महामारी विशेषज्ञ प्रोफेसर एचपीएस सचदेव कहते हैं, फ्रंट ऑफ पैक लेबलिंग की प्रस्तावित नीति फूड कंपनियों की भागीदारी के चलते त्रुटिपूर्ण हो गई है। एफएसएसएआई हेल्थ स्टार रेटिंग को लागू करने जा रहा है, जो कि प्रभावशील नहीं है। फूड इंडस्ट्री स्व-नियमन पर जोर दे रही है, जबकि 22 देशों में हो चुके अध्ययन में यह साबित हो चुका है कि इस मामले में स्व-नियमन कारगर नहीं है।

जंक पुश : हर माह चुनिंदा 10 चैनलों पर दो लाख से ज्यादा विज्ञापन

नापी की सदस्य नूपु र बिडला कहती हैं, आप किसी भी प्री-पैकेज्ड खाद्य उत्पाद का विज्ञापन देखेंगे तो पाएंगे कि यह ‘हाई फैट शुगर, सॉल्ट’ और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड प्रकृति के हैं, जिनमें सभी प्रकार के एडिटिव्स, रंग, स्वाद और इमल्सीफायर शामिल हैं। बिडला कहती हैं, डब्ल्यूएचओ के एक अप्रकाशित अध्ययन के अनुसार, हर महीने चुनिंदा 10 चैनलों पर 200,000 से अधिक ऐसे विज्ञापन दिखाए जाते हैं। हम इसे जंक पुश कहते हैं।

जंक फूड में पोषक तत्वों की मात्रा बहुत कम

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रोफेसर श्रीनाथ रेड्डी कहते हैं, जंक फूड में उन पोषक तत्वों की बहुत कम मात्रा होती है, जो शरीर को वृद्धि और पोषण प्रदान कहते हैं। जबकि ये हमें बड़ी मात्रा में नमक, चीनी, अनहेल्दी फैट और रसायन प्रदान करते हैं। विज्ञान इस बात पर स्पष्ट है कि इन खाद्य पदार्थों को हमारे नियमित आहार से क्यों बाहर रखा जाना चाहिए। लेकिन, इनकी खपत चिंताजनक स्तर तक बढ़ती जा रही है। डॉ. रेड्डी कहते हैं, लोगों में इन खाद्य पदार्थों से होने वाले नुकसान के बारे में जानकारी अपर्याप्त है, जबकि भ्रामक दावे वाले विज्ञापन इन उत्पादों की लत को बढ़ा रहे हैं।

मौजूदा नियामकीय नीतियां पर्याप्त नहीं

डॉ. अरुण गुप्ता के अनुसार, बच्चों को टार्गेट करने वाले और भ्रामक विज्ञापनों को लगाम लगाने के लिए मौजूदा नियामकीय नीतियां पर्याप्त नहीं हैं। भारत में किसी भी कानूनी ढांचे या दिशानिर्देश में भ्रामक विज्ञापनों को रोकने, भ्रामक दावों पर प्रतिबंध लगाने या लोगों को स्वास्थ्य के खतरों के बारे में चेतावनी देने की क्षमता नहीं है।

सावधान! फूड लेबल को पढ़ें, दावों से मूर्ख मत बनिए

अमेरिका में बतौर पेशेवर डायटिशियन सेवा देने वाली माशा डेविस के अनुसार, किसी पैकेट के सामने दिए गए दावों से मूर्ख मत बनिए। आपको पैकेट के पीछे छोट अक्षरों में प्रकाशित जानकारी पर ध्यान देना चाहिए। उदाहरण के लिए, निर्माता किसी उत्पाद को फाइबर या ओमेगा-3 फैटी एसिड का अच्छा स्रोत होने का दावा कर सकते हैं, लेकिन यह नुकसान दायक है। डेविस कहती है, हम सभी को फूड लेबल पढ़ना आना चाहिए। इसमें उपयोग की गई सामग्री को वजन के आधार पर घटते क्रम में सूचीबद्ध किया जाता है। यानी सूची में जो अवयव ऊपर हैं, उनकी मात्रा उस उत्पाद में अधिक है। आदर्श रूप से चीनी और नमक शीर्ष पर नहीं होना चाहिए।

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