राजीव उपाध्याय, JABALPUR. मध्यप्रदेश सरकार कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीजों के इलाज के लिए कितनी गंभीर और संवेदनशील है ? इस सवाल का जवाब जबलपुर में 7 साल से बन रहे स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट को देखकर लगाया जा सकता है। 2015-16 से शुरू हुए केंद्र और राज्य सरकार के इस संयुक्त प्रोजेक्ट की मंथर गति के आगे कछुआ चाल की कहावत भी फीकी नजर आती है।
7 साल में भी नहीं बन सका स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट
135 करोड़ रुपए की लागत से बन रहे इस प्रोजेक्ट की शुरुआत के 7 साल गुजर जाने के बाद भी इसकी बिल्डिंग मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट को हैंडओवर नहीं हुई है। जबकि बिल्डिंग का वर्क ऑर्डर 12 अगस्त 2016 को जारी हुआ था और इसका कार्य 24 महीने में यानी 11 अगस्त 2018 को पूरा होना था। स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट की बिल्डिंग का अलावा यहां इलाज के लिए जरूरी उपकरणों, डॉक्टर, सर्जन और स्टॉफ भर्ती की प्रकिया का भी अभी तक कोई अता-पता नहीं है। इस बारे में द सूत्र के सवालों पर विभाग के अधिकारी अगले दो-तीन महीनों में कैंसर इंस्टीट्यूट के शुरू होने का दावा कर रहे हैं लेकिन कामकाज की गति देखकर नहीं लगता कि ये पूर्ण रूप से इस साल भी शुरू हो पाएगा।
प्रदेश के कैंसर पीड़ित महानगरों के चक्कर काटने पर मजबूर
मध्यप्रदेश में कैंसर से पीड़ित मरीजों को इलाज के लिए महानगरों के चक्कर काटने से बचाने के लिए 2015 में जबलपुर में स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट बनाने का निर्णय लिया गया था। जबलपुर में इसलिए क्योंकि यहां महाकौशल अंचल के अलावा बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र के कैंसर पीड़ित मरीज भी इलाज कराने आते हैं। कारण ये है कि इन इलाकों के सागर, रीवा और शहडोल जैसे संभागीय मुख्यालयों में भी कैंसर के इलाज के लिए जरूरी सभी सुविधाएं नहीं हैं। यही वजह है कि इन शहरों और आस-पास के जिलों से रोजना 150 से 200 मरीज कैंसर की जांच और इलाज के लिए जबलपुर के नेताजी सुभाष मेडिकल कॉलेज अस्पताल का रुख करते हैं।
मरीजों को मिल रही जनवरी 2023 की तारीख
जबलपुर से करीब 400 किलोमीटर दूर सिंगरौली जिले से ब्रेस्ट कैंसर के इलाज के लिए आईं शांति बाई और शहडोल के राजू सेन मुंह के कैंसर के इलाज के लिए जबलपुर के चक्कर काटने को मजबूर हैं। लेकिन यहां भी दोनों को इलाज नहीं सिर्फ तारीख मिल रही है। दोनों की रेडियोथैरेपी होना है लेकिन मरीजों की लंबी लाइन के कारण उन्हें इसके लिए जनवरी 2023 की तारीख मिली है। जबकि बीमारी की गंभीरता को देखते हुए इन दोनों का इलाज जल्द से जल्द शुरू होने की जरूरत है। शांति बाई तो अपनी रेडिएशन थैरेपी कराने के लिए पिछले 4 महीने से भटक रहीं है लेकिन उनका इलाज शुरू नहीं हो पा रहा है। उनके परिवार की आर्थिक हालत ऐसी नहीं है कि वे किसी प्राइवेट अस्पताल में डेढ़ से दो लाख रुपए खर्च कर अपनी सिकाई करा सकें।
कैंसर रोगियों की मौतों की जिम्मेदारी कौन लेगा ?
जबलपुर शहर में 2015-2016 में स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट बनना शुरू हुआ था। इससे कैंसर रोगियों के साथ-साथ उनके परिजनों ने भी सस्ता और बेहतर इलाज मिलने के आस में राहत की सांस ली थी। लेकिन अब कैंसर इंस्टीट्यूट की विशालकाय बिल्डिंग मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले मरीज और परिजनों को मुंह चिढ़ाती नजर आने लगी है। हैरानी की बात ये है कि जिस समय-सीमा में इस इंस्टीट्यूट की बिल्डिंग बनकर तैयार हो जानी चाहिए थी उसकी समय सीमा खत्म हुए भी चार साल हो चुके हैं। लेकिन इसका निर्माण कराने वाले लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) की प्रोजेक्ट इम्प्लीमेंटेशन यूनिट (PIU) अभी तक इसे मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट को नहीं सौंप पाई है।
135 करोड़ रुपए में बन रहा है स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट
केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से जबलपुर के मेडिकल अस्पताल परिसर में स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट का निर्माण किया जा रहा है। इसके लिए 135 करोड़ रूपए का बजट स्वीकृत किया गया है। इसमें सिविल वर्क के लिए 70 करोड़ रुपए की राशि राज्य सरकार को देना है। वहीं बाकी की राशि जिससे कैंसर की जांच और इलाज के लिए मशीनें और अन्य उपकरण खरीदे जाने है वो केंद्र सरकार वहन करेगी। मेडिकल कॉलेज से संबद्ध उजम्बा कैंसर अस्पताल की पूर्व अधीक्षक डॉ. पुष्पा किरार के मुताबिक स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट को मुंबई के टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के तर्ज पर विकसित किया जाना है।
फाइनल इन्स्पेक्शन के बाद हैंडओवर होगी बिल्डिंग
स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के निर्माण में चार साल की देर और इसके कारणों के बारे में पीआईयू के एडिशनल डायरेक्टर आरके अहिरवार से सवाल किए जाने पर उन्होंने कई भी जानकारी देने से इनकार किया। उनका कहना है कि उन्हें विभाग के उच्चाधिकारियों ने मीडिया को किसी भी प्रकार का वर्जन देने से इनकार किया है। पीआईयू के जानकार सूत्रों के मुताबिक अभी बिल्डिंग का फाइनल इंस्पेक्शन होना बाकी है। यदि उसमें कोई खामी या कमी निकलती है तो पहले उसे दूर किया जाएगा इसके बाद बिल्डिंग मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट के हवाले की जाएगी।
जल्द शुरू होगी स्टॉफ की भर्ती प्रक्रिया : प्रभारी डीन
मेडिकल कॉलेज की प्रभारी डीन डॉ. गीता गुइन का कहना है कि स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट की बिल्ंडिंग डेढ़ से दो माह में हैंडओवर हो जानी चाहिए। प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव की आचार संहिता लागू होने के कारण स्टाफ की भर्ती की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई थी लेकिन अब जल्द ही इसके लिए विज्ञापन जारी किए जा रहे हैं। यहां मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट की भर्ती होते ही 20 बेड की यूनिट में इलाज शुरू कर दिया जाएगा। चिकित्सा उपकरणों की खरीद की प्रक्रिया शासन स्तर पर चल रही है।
रेडिएशन थैरेपी में लाखों का खर्च
कैंसर विशेषज्ञ और प्रोफेसर डॉ. श्यामजी रावत का कहना है कि निजी अस्पतालों में लीनियर एक्सीलेरेटर से रेडियेशन थैरेपी का एवरेज खर्च एक मरीज को 1 से 2 लाख रुपए तक पड़ता है। ये रेडिएशन की तकनीक पर डिपेंड करता है कि उसे किस तकनीक से रेडिएशन थैरेपी दी जा रही है।
रेडिएशन थैरेपी देने की तकनीक 4 तरह की होती हैं
- थ्री डी सी आर टी
मध्यप्रदेश के किसी अस्पताल में लीनियर एक्सीलेटर मशीन नहीं
आयुष्मान कार्ड में एक लाख रुपए तक अप्रूव है। मध्य प्रदेश में अभी किसी मेडिकल अस्पताल में लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन की सुविधा नहीं है। जब मशीन लगाई जाएगी उसके बाद सरकार फीस निर्धारित करेगी।