पुरुष पैंट की पिछली पॉकेट में पर्स रखने की अपनी आदत बदलें, नहीं तो चलना-फिरना भी हो सकता है मुश्किल

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Jitendra Shrivastava
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पुरुष पैंट की पिछली पॉकेट में पर्स रखने की अपनी आदत बदलें, नहीं तो चलना-फिरना भी हो सकता है मुश्किल

BHOPAL. पर्स रखने के लिए पैंट या जीन्स की पीछे वाली पॉकेट का इस्तेमाल करना पुरुषों के बीच बेहद सामान्य बात है। पैसों और कई तरह के कार्ड्स से भरा पर्स पिछली पॉकेट में रखना अधिकांश पुरुषों की आदत में शामिल है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यही छोटी सी आदत आपको गंभीर बीमारी का शिकार बना सकती है और इससे आपका चलना-फिरना, उठना-बैठना तक दूभर हो सकता है।



दाहिने नितंब से लेकर पैर और पंजों तक तेज दर्द मतलब 'फैट वॉलेट सिंड्रोम'



हाल ही में हैदराबाद के 30 साल के एक व्यक्ति को एक बीमारी हुई। शुरुआत में उसने कोई छोटी-मोटी नस की परेशानी समझकर इसे अनदेखा कर दिया, लेकिन परेशानी और दर्द बढ़ता गया। उसे करीब तीन महीने तक दाहिने नितंब से लेकर पैर और पंजों तक तेज दर्द होता रहा। कई तरह की दवाएं और ट्रीटमेंट लेने के बाद भी उसे राहत नहीं मिली। बाद में जांच करने पर डॉक्टर को पता चला कि उसे 'फैट वॉलेट सिंड्रोम' था।



क्या है ये 'फैट वॉलेट सिंड्रोम'



फैट वॉलेट सिंड्रोम से पीड़ित उस व्यक्ति को खड़े होने या चलने की तुलना में बैठने या लेटने पर ज्यादा तेज दर्द होता था। उस व्यक्ति की एमआरआई समेत कई तरह की जांच की गई जिसमें उसे रीढ़ की हड्डी या पीठ के निचले हिस्से में नसों पर दबाव या संकुचन होने जैसी कोई शिकायत नहीं थी। इसके बाद उसका नर्व कंडक्शन (एक तरह की जांच जिसकी मदद से नसों में होने वाले नुकसान का पता लगाया जाता है) किया गया। इस जांच में डॉक्टरों ने पाया कि उस व्यक्ति की दाहिनी साइटिक नर्व को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा था, लेकिन यह फिर भी पता नहीं चल सका कि साइटिक नर्व में हुए नुकसान का कारण क्या था। इसके बाद उस व्यक्ति ने अपने डॉक्टर को बताया कि वह हमेशा पैंट या जींस के पीछे की दाहिनी तरफ पैसों और कार्ड्स जैसी चीजों से लदा भारी पर्स रखता था जो लगभग 10 घंटे तक ऑफिस में रहने के दौरान भी उसकी जेब में रखा रहता था।



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फैट वॉलेट सिंड्रोम हो सकता है बेहद दर्दनाक



इसके बाद डॉक्टरों को पता चला कि उस भारी पर्स की वजह से उस व्यक्ति की पिरिफोर्मिस मसल (मांसपेशी) दब गई थी जिस वजह से रीढ़ की हड्डी से पैर तक जाने वाली साइटिका नस पर भी दबाव पड़ रहा था। फैट वॉलेट सिंड्रोम होने पर कई बार सीधे साइटिका नस पर भी दबाव पड़ सकता है और मरीज को और भी तेज दर्द हो सकता है।



क्यों होती है ये परेशानी



नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में न्यूरोलॉजिस्ट और सीनियर कंसल्टंट डॉक्टर डॉ. पीएन रेनजेन बताते हैं, ''अक्सर पुरुष अपने बटुए यानी वॉलेट में रुपए-पैसों के अलावा जरूरी कागजात, आधार कार्ड, पैन कार्ड, डेबिट कार्ड और क्रैडिट कार्ड जैसी कई चीजें भी रखते हैं जिसकी वजह उनका पर्स काफी भारी हो जाता है। इससे उनमें फैट वॉलेट सिंड्रोम (वॉलेट न्यूरिटाइस) होने का खतरा बढ़ जाता है। फैट वॉलेट सिंड्रोम को मेडिकल भाषा में पिरिफोर्मिस सिंड्रोम कहते हैं।''



यह साइटिक तंत्रिकाओं से संबंधित एक डिसॉर्डर है



साइटिका एक नस होती है जो रीढ़ की हड्डी से होते हुए कुल्हे और पैर की एड़ी तक जाती है। इस डिसॉर्डर में कूल्हों (हिप्स) और नितंबों (बटॉक) में दर्द होने लगता है। उन्होंने आगे बताया, ''पिरिफोर्मिस सिंड्रोम तब होता है जब आपकी पिरिफोर्मिस मांसपेशी आपकी साइटिका नस को दबाने लगती है जिसकी वजह से कई बार अंगों में सूजन तक होने लगती है। यह आपके नितंब और आपके पैर के पिछले हिस्से में दर्द या सुन्नता पैदा कर सकता है। यह कई बार आपके शरीर के एक तरफ या कई बार दोनों तरफ भी हो सकता है। पिरिफोर्मिस सिंड्रोम ऐसे लोगों में सामान्य है जो दफ्तर या काम वाली जगहों पर भारी पर्स के साथ देर तक बैठकर काम करते रहते हैं। कई बार लंबी दूरी की यात्रा करने वाले कार और ड्रक ड्राइवर भी अपने बटुए को अपनी पिछली जेब में रखते हैं जिस वजह से उन्हें भी यह परेशानी हो सकती है।''



क्यों पीछे की जेब में पर्स रखने से बचना चाहिए



वास्तव में बैक पॉकेट में पर्स रखना कोई नई बात नहीं है, लेकिन इससे व्यक्ति को असहजता होती है जिसे वो सहूलियत के चक्कर में अनदेखा कर देते हैं। कई बार इससे बॉडी का बैलेंस बिगड़ता है और इससे कमर और हिप्स पर भी दबाव पड़ता है। चूंकि कमर से ही कूल्हे की साइटिका नस गुजरती है इसलिए इस दबाव की वजह से आपके कूल्हे और कमर में तेज दर्द होता है। वहीं, जब आप घंटों तक ऐसे ही बैठे रहते हैं तो इससे हिप ज्वाइंट्स में मौजूद पिरिफॉर्म मसल्स पर भी दबाव पड़ने लगता है जिससे कई बार ब्लड सर्कुलेशन रुक जाता है। ऐसी स्थिति लंबे समय तक अगर बनी रहती है तो इससे नसों में सूजन भी बढ़ सकती है।



इस स्थिति से कैसे बचें



पीएन रेनजेन ने बताया कि बैठते या गाड़ी चलाते समय अपने पर्स को अपनी पिछली जेब में ना रखें। इसके बजाय इसे अपनी सामने की जेब, जैकेट या शर्ट में रख लें। इससे आपकी पीठ के निचले हिस्से पर तनाव नहीं पड़ेगा और बैठने में आपको कोई दिक्कत महसूस नहीं होगी। इसके अलावा अगर आपको पिछली पॉकेट में ही पर्स रखना है तो इसके लिए आप उसका भार कम कर सकते हैं। पर्स जितना हल्का होगा, आपको उसे कैरी करने में उतनी ही आसानी होगी।



क्या है इस सिंड्रोम का इलाज



फैट वॉलेट सिंड्रोम या पिरिफोर्मिस सिंड्रोम कितना गंभीर हो सकता है और ऐसा होने पर व्यक्ति को राहत पाने के लिए क्या करना चाहिए। इस पर पीएन रेनजेन कहते हैं, ''सियाटिक नर्व रीढ़ की हड्डी और कमर की नसों से जुड़ी होती है और ये पैरों तक जाती है। इसकी वजह से ही आपके पैरों में संतुलन बनता है। अगर इसमें कोई दिक्कत हो तो आपके पंजे को काम करने में दिक्कत हो सकती है।'' वो आगे कहते हैं, ''सामान्य भाषा में कहें तो वो ऐसी स्थिति में संतुलन नहीं बना पाएगा और लटकने लगेगा। यह हालांकि, एक बेहद सामान्य परेशानी है जो ज्यादा समय तक भारी पर्स रखने वाले लोगों को होती है।'' 



इस बीमारी में मसल स्ट्रेचिंग जैसी एक्सरसाइज से राहत मिलती है



डॉक्टर पीएन रेनजेन ने बताया कि ऐसा नहीं है कि अपना पर्स पीछे की जेब में रखने वाले हर एक व्यक्ति को यह परेशानी होती है। लेकिन किसी को ऐसा होता है तो सबसे पहले मरीज की नर्व कंडक्शन के जरिए जांच होती है। अगर पर्स की वजह से सियाटिक नर्व में दिक्कत हो रही है तो हम लोगों को बैक पॉकेट में भारी पर्स ना रखने की सलाह देते हैं। इसके अलावा दर्द को दूर करने के लिए एंटी-इंफ्लेमेटरी और पेन किलर दी जाती हैं। कुछ मसल स्ट्रेचिंग जैसी एक्सरसाइज भी मरीज से करवाते हैं ताकि उसे जल्द से जल्द राहत मिल सके।


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