BHOPAL. आज यानी 10 अप्रैल को 'विश्व होम्योपैथी दिवस' है। हर साल इस दिवस को एक खास थीम के तहत सेलिब्रेट किया जाता है। 2023 में इस दिवस की थीम 'वन हेल्थ वन फैमिली' है। यह थीम चिंता, डिप्रेशन आदि विभिन्न मानसिक स्वास्थ स्थितियों के इलाज के लिए होम्योपैथी के उपयोग पर केंद्रित है। यह थीम मेंटल हेल्थ के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने के महत्व पर जोर देता है, जिसमें मानसिक बीमारी के लक्षणों और मूल कारणों, दोनों को संबोधित करना शामिल है। ज्ञात हो कि दुनिया में पहली बार 10 अप्रैल 2005 को जर्मन फिजिशियन, स्कॉलर डॉ. सैम्युअल हैनीमैन की जयंती के सम्मान में मनाया गया, जिन्हें होम्योपैथी का संस्थापक माना जाता है।
मकसद-पद्धति के प्रति लोगों को करना है जागरूक
इस दिवस को मनाने का मकसद होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के बारे में लोगों को जागरूक करना है। वहीं, इस पद्धति से लोगों को किस तरह का फायदा होगा, इसे भी बताना है। दुनियाभर में किसी भी तरह के इलाज के लिए एलोपैथी, होम्योपैथी, आयुर्वेद, नेचुरोपैथी चिकित्सा पद्धति ही अपनाई जाती है।
डॉक्टरों का दावा-जड़ से दूर होती है बीमारी
दुनियाभर में लोग बीमारी होने पर सबसे पहले एलोपैथी दवाईयों का सेवन करते हैं। एलोपैथी से बीमार व्यक्ति को जल्द ही रिलीव मिल जाता है, लेकिन होम्योपैथी डॉक्टरों ने दावा किया है कि किसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए होम्योपैथी पद्धति काफी कारगर है। इस पैथी से अभी तक कई बीमारियों को जड़ से खत्म किया जा चुका है। कोविड के बाद इस पद्धति से कई लोगों को बीमारी से राहत भी मिली है।
कितनी पुरानी है होम्योपैथी पद्धति
होम्योपैथी दो यूनानी शब्दों, होम्योस और पैथोस का मिश्रण है। होम्योस का अर्थ है समान और पैथोस का अर्थ है दुख। प्रसिद्ध वैज्ञानिक और चिकित्सक डॉ. सैम्युअल हैनीमैन ने ही होम्योपैथिक दवा की खोज की थी। उन्होंने खुद को एक परीक्षण विषय के रूप में इस्तेमाल किया था। उन्होंने सिनकोना दवा के प्रभावों पर शोध करना शुरू किया। जिसके बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सिनकोना दवा एक स्वस्थ मानव शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा कर सकती है और दवा के वैकल्पिक तरीके के रूप में होम्योपैथी की सिफारिश की। यह पद्धित करीब 1700 साल पुरानी है।
इन बीमारियों में हो रहा उपयोग
होम्योपैथी ने कई बीमारियों में बेहतर काम किया है। होम्योपैथी का उपयोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है, जैसे- एलर्जी, डिप्रेशन, हमेशा महसूर होने वाली थकान, आंत सिंड्रोम और प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम।
आयुर्वेद और होम्योपैथी में ये है अंतर
दुनिया में इन दिनों इलाज के लिए एलोपैथी, होम्योपैथी, आयुर्वेद, नेचुरोपैथी पद्धतियों का उपयोग किया जाता है। होम्योपैथिक इलाज में न सिर्फ रोग को ठीक करती है, बल्कि जड़ से भी खत्म करती है। इन दवाओं का सेवन के समय धूम्रपान, नशे से परहेज किया जाता है। इसका असर धीरे होता है। यह पद्धति 1700 साल पुरानी है। वहीं, आयुर्वेदिक चिकित्सा दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति है। इसे भारत में 3 हजार साल से भी पहले विकसित किया गया था। यह चिकित्सा पद्धति विश्वास पर आधारित है। यह मन, शरीर और आत्मा के बीच एक संतुलन पर निर्भर करता है। आयुर्वेद को अब तक 30 से ज्यादा देशों में मान्यता मिल चुकी है। सर्दी, खांसी, जुकाम, पेट के रोग, किडनी आदि के रोगों के इलाज में आयुर्वेद का उपयोग तेजी से बढ़ा है।
इस तरह होता है इलाज
होम्योपैथी विशेषज्ञों का कहना है कि इस पैथी में इलाज करते समय यह देखा जाता है कि व्यक्ति को असल में समस्याएं क्या-क्या हैं? व्यक्ति की बीमारी को कम देखा जाता है। इस पैथी में यदि एक बीमारी से 6 अलग-अलग व्यक्ति संक्रमित हैं, तो सभी 6 को अलग-अलग तरह की दवाईयां दी जाएगी।