चुनाव पंचायत के हों या फिर नगरीय निकाय के, आमतौर पर चुनाव आते ही उस क्षेत्र की जनता के अलग-अलग अंदाज देखने को मिलते हैं। युवा वर्ग में जहां उत्साह दिखाई देता है तो एक वर्ग ऐसा भी होता है जो फूफा की तरह मुंह फुलाए उम्मीदवारों को सबक सिखाने की ठान कर बैठा रहता है। कुल मिलाकर हर किसी में मन में किसी न किसी तरह का भाव होता ही है। लेकिन प्रदेश की शुगर कैपिटल यानि गन्ना राजधानी नरसिंहपुर का एक गांव ऐसा भी है जहां के वोटर निर्विरोध चुनाव न होने से काफी दुखी हैं। इन लोगों के दुख की एक वजह भी है। दरअसल नरसिंहपुर के गांव बघुवार की ग्राम पंचायत का एक रिकाॅर्ड रहा है । नब्बे के दशक में पंचायती राज अधिनियम लागू होने के बाद सिर्फ एक बार ही मतदान की नौबत आई थी। बाकी सभी चुनाव यहां आम सहमति से निर्विरोध ही हुए हैं। 28 साल बाद गांव की परंपरा टूटती देख यहां के बुजुर्गों ही नहीं युवाओं में भी मलाल देखने को मिल रहा है।
प्रत्याशियों को भी उलाहना दे रहे ग्रामीण
गांव के शंकर सिंह पटेल का कहना है कि हर बार चुनाव के समय गांव के बड़े-बुजुर्ग बैठकर आम सहमति बनाते थे। बिना पक्षपात और रागद्वेष के अन्य दावेदारों को अगली बार मौका दिए जाने के आश्वासन पर ही बात खत्म हो जाती थी। हालांकि इस बार भी बुजुर्गों ने प्रयास किया कि गांव की इस उपलब्धि को बरकरार रखा जाए लेकिन समझाइश की कोशिश बेकार रही, यहां से सरपंच पद के लिए दो प्रत्याशी प्रीति चैहान और दीक्षा चैहान में से कोई भी नामांकन वापसी के लिए तैयार नहीं हुई, इसलिए अब मतदान होगा। गांव के बुजुर्गों ने दोनों को समरस पंचायत का भी हवाला दिया। लेकिन चूंकि यह पंचायत पहले से काफी संपन्न है। मुख्य रूप से गन्ने की फसल लेने वाले सभी किसान भी संपन्न हैं इसलिए समरस पंचायत के 15 लाख भी महिला उम्मीदवारों को डिगा नहीं पाए।
थाने की नहीं पड़ी जरूरत, अण्डरग्राउंड सैनिटेशन, नशामुक्त पंचायत
गांव के पूर्व सरपंच शोभाराम जाटव बताते हैं कि उनके गांव के मामले कभी थाने तक नहीं जाते। लोग आपस में बैठकर ही हर विवाद का समाधान कर लेते हैं। स्वानुशासन ऐसा कि गांव में न तो तंबाखू-पान मसाला बिकता है और न ही कोई शराब का सेवन करता है। बड़े अनुशासन का पालन करते हैं तो युवाओं की हिम्मत ही नहीं कि वे राह से भटक पाएं। वहीं वर्तमान सरपंच नरेंद्र चैहान ने बताया कि उनका गांव प्रदेश का ऐसा बिरला गांव है जहां अण्डरग्राउण्ड सैनिटेशन है। इतनी उपलब्धियों के कारण इस पंचायत को सरकार से फण्ड भी अच्छा खासा मिलता है। वहीं गांव के संपन्न लोग भी जनभागीदारी से विकास कराने में आगे आते रहते हैं। इसके अलावा शत प्रतिशत साक्षरता दर के कारण भी यह गांव पढ़े लिखे लोगों का गांव कहलाता है।
लोकतंत्र की विवशता, पर ऐसा न होता तो अच्छा होता
गांव वालों का एकसुर में यही कहना है कि दोनों प्रत्याशियों को बाध्य तो किया नहीं जा सकता था। लेकिन यदि उनके गांव की रीत बनी रहती तो उन्हें काफी प्रसन्नता होती। बहरहाल प्रत्याशियों को मतदान की तारीख नजदीक आते-आते गांव वालों का यह मलाल मिट जाने की उम्मीद है।