एक फिल्म, कोई किसी रोल के लिए चुना गया, पर फाइनल कोई और हुआ, जो प्रोडक्ट तैयार हुआ, वो माइलस्टोन बन गया

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The Sootr CG
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एक फिल्म, कोई किसी रोल के लिए चुना गया, पर फाइनल कोई और हुआ, जो प्रोडक्ट तैयार हुआ, वो माइलस्टोन बन गया

परसों 15 अगस्त है। पंद्रह अगस्त 1975 को शोले रिलीज हुई थी। मेरे एक दोस्त इसके बारे में कहते हैं कि भारतीय फिल्मों को दो भागों में बांटा जा सकता है- शोले से पहले और शोले के बाद....। तो आज की यही कहानी है। और अपनी कहानी को मैंने नाम दिया है- 47 साल पहले भड़के शोले...आज भी दहक रहे हैं।

सबसे पहले बात फिल्म के सिनेमेटोग्राफर द्वारका दिवेचा की। द्वारका दिवेचा 19 मार्च 1918 में पैदा हुए थे और 5 जनवरी 1978 को उनका निधन हो गया। दिवेचा ने करीब 30 फिल्मों में कैमरामैन और फोटोग्राफर के रूप में काम किया । 1955 में उन्होंने फिल्म यास्मीन के लिए अपने ब्लैक एंड व्हाइट में सर्वश्रेष्ठ फोटोग्राफर का फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता था। 1960 में उन्होंने फिल्म सिंगापुर में अभिनय किया। द्वारका जी की सबसे प्रसिद्ध फिल्म शोले है। आलोचकों का कहना है कि सिनेमेटोग्राफी ने शोले की क्वालिटी कई गुना बढ़ा दी। ट्रेन से लकड़ी उड़ाने वाला शॉट हो, अमिताभ का गब्बर के मुंह पर रंग उड़ाने वाला शॉट हो, निम्मी यानी ठाकुर साहब के छोटे बेटे का चिड़िया मारने वाला शॉट हो, द्वारका जी ने कमाल किया है।

शोले की कास्टिंग के समय धर्मेंद्र ‘गब्बर’ का किरदार करना चाहते थे। बाद में वो ‘वीरू’ के किरदार के लिए राजी हो गए, जब उन्हें ये पता चला कि हेमा मालिनी उनके साथ होगी। 1950 के समय में मध्यप्रदेश के बीहड़ों में ‘गबरा’ नाम का एक सचमुच में असली डाकू हुआ करता था, जो गांव वालों के अलावा पुलिस वालों के नाक और कान काट दिया करता था। इसी कारण तीन राज्यों की पुलिस ने उसके ऊपर ५० हजार का इनाम रखा हुआ था। फिल्म का किरदार ‘गब्बर सिंह’ इसी डकैत से प्रेरित है।

फिल्म के मुख्य किरदार जय और वीरू के नाम फिल्म के लेखक सलीम साहब ने अपने कॉलेज के दो दोस्तों के नाम पर रखा था, वीरेन सिंह और जय सिंह था। शोले के बाद से ही बॉलीवुड में स्क्रिप्ट राइटर्स की डिमांड और पैसे दोनों बढ़ गए थे और उन्हें अपने काम के अच्छे-खासे पैसे मिलना शुरू हुए थे।

फिल्म के गाने ‘ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे’ को फिल्माने के लिए 21 दिन का समय लगा था। गाना गजब ही है। अमिताभ, धर्मेंद्र, बुलेट, सब शानदार। जो गाड़ी का नंबर है-3047, वो बाइचांस मेरी स्कूटर का भी था। शोले पहली फिल्म थी जो 100 से भी ज्यादा टॉकीज में 25 हफ्ते से भी ज्यादा समय तक लगी रही थी। मुंबई के ‘मिनर्वा थियटर’ में फिल्म शोले लगातार 5 साल चली।

फिल्म में ठाकुर का किरदार पहले एक रिटायर्ड आर्मी अफसर का था, जिसे फिल्म निर्माताओं ने बाद में बदलकर पुलिस अफसर में कर दिया था। फिल्म का एक और मशहूर किरदार ‘सूरमा भोपाली’ जिसे जगदीप जी ने निभाया था, एक असल किरदार था। भोपाल में ही रहने वाले सूरमा एक वन विभाग के अधिकारी थे और जगदीप जी के ही जान-पहचान वाले थे।

फिल्म में गब्बर सिंह के अहम् किरदार को सबसे पहले डैनी डेन्जोप्पा को दिया गया था और इसके लिए उन्हें सायनिंग अमाउंट भी दे दिया गया था, मगर बाद में तारीखें नहीं मिलने की वजह से यह रोल अभिनेता अमजद खान की झोली में आ गया। फिल्म का एक मशहूर डायलॉग ‘कितने आदमी थे’ को करीब 40 बार फिल्माया गया था और बाद में इन्हीं में से एक सीन को फाइनल किया गया।

इस फिल्म में ‘सांभा’ के किरदार को पूरी फिल्म में एक ही डायलॉग दिया गया था, मगर फिर भी उस किरदार को निभाने वाले मैक मोहन को आज भी ‘सांभा’ के नाम से ही जाना जाता है। फिल्म एडिट होने के बाद मैक ने रमेश सिप्पी से कहा कि यार, मैं रोज शूट पर जाता था और एक डायलॉग रखा। सिप्पी बोले- मैक, इसी से तुम जाने जाओगे और हुआ भी यही।

शुरुआत में जय के किरदार के लिए शत्रुघ्न सिन्हा को चुना गया था। बाद में यह किरदार अमिताभ बच्चन को दिया गया। धर्मेंद्र ने भी अमिताभ के लिए कहा था। फिल्म ‘जंजीर’ ने अमिताभ को स्टार बनाया था, मगर फिल्म ‘शोले’ ने अमिताभ को सुपरस्टार बनाया था। शोले के समय अमिताभ बड़े स्टार नहीं थे। कास्टिंग में अमिताभ का नाम चौथे नंबर- धर्मेंद्र, संजीव कुमार, हेमामालिनी के बाद आता है।

फिल्म में हेमा मालिनी और धर्मेंद्र के बीच फिल्माए गए सीन को ख़राब करने के लिए धर्मेंद्र जी काम करने वाले लाइट बॉयज को पैसे दिया करते थे, ताकि उन्हें फिर से फिल्माया जा सके और धर्मेंद्र जी को हेमाजी के साथ ज्यादा समय बिताने का मौका मिलते रहे।

धर्मेंद्र और हेमा मालिनी ने इस फिल्म की रिलीज़ के 5 साल बाद शादी कर ली थी मगर अमिताभ बच्चन और जया बच्चन की शादी फिल्म की शूटिंग से चार महीने पहले ही हुई थी। शूटिंग के दौरान जया बच्चन जी गर्भवती थी, जिन्होंने बाद में श्वेता बच्चन को जन्म दिया था। 
बैंगलोर से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित ‘रामनगर’ गांव को आज भी ‘रामगढ़’ के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यही वो जगह थी जहां फिल्म शोले की शूटिंग हुई थी। इतना ही नहीं इस क्षेत्र के आस-पास स्थित पत्थरों को शोले पत्थरों के नाम से जाना जाता है और यह एक टूरिस्ट प्लेस भी बन गया है।

गब्बर सिंह के किरदार को निभाने वाले अमजद खान को फिल्म में लेने के लिए एक ही इंसान ने हामी नहीं दी थी, वो थे जावेद अख्तर साहब, क्यूंकि उन्हें लगता था कि अमजद खान की आवाज गब्बर सिंह के किरदार के लिए दमदार नहीं है। फिल्म को ‘फिल्मफेयर’ में 9 नॉमिनेशन होने के बावजूद केवल एक ही फिल्मफेयर अवार्ड मिला था और वो था ‘बेस्ट एडिटिंग’ का, जो एम एस शिंदे को दिया गया। शोले ही वो पहली फिल्म थी जिसे 70 मिलीमीटर यानी 70 एमएम में बनी थी और पहली फिल्म जिसमें ‘स्टीरियोफोनिक साउंड’ का इस्तेमाल किया गया था।