Narsinghpur: बघुवार गांव में 28 वर्षों में दूसरी बार होंगे चुनाव, ग्रामीण दुःखी

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Vivek Sharma
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Narsinghpur: बघुवार गांव में 28 वर्षों में दूसरी बार होंगे चुनाव, ग्रामीण दुःखी

राजीव उपाध्याय,Narsingpurचुनाव पंचायत के हों या फिर नगरीय निकाय के आमतौर पर चुनाव आते ही उस क्षेत्र की जनता के अलग-अलग अंदाज देखने को मिलते हैं। युवा वर्ग में जहां उत्साह दिखाई देता है तो एक वर्ग ऐसा भी होता है जो फूफा की तरह मुंह फुलाए उम्मीदवारों को सबक सिखाने की ठान कर बैठा रहता है। कुल मिलाकर हर किसी में मन में किसी न किसी तरह का भाव होता ही है। लेकिन प्रदेश की शुगर कैपिटल यानि गन्ना राजधानी नरसिंहपुर का एक गांव ऐसा भी है जहां के वोटर निर्विरोध चुनाव न होने से काफी दुखी हैं। इन लोगों के दुख की एक वजह भी है। दरअसल नरसिंहपुर के गांव बघुवार की ग्राम पंचायत का एक रिकाॅर्ड रहा है । नब्बे के दशक में पंचायती राज अधिनियम लागू होने के बाद सिर्फ एक बार ही मतदान की नौबत आई थी। बाकी सभी चुनाव यहां आम सहमति से निर्विरोध ही हुए हैं। 28 साल बाद गांव की परंपरा टूटती देख यहां के बुजुर्गों ही नहीं युवाओं में भी मलाल देखने को मिल रहा है। 





मप्र में पंचायत चुनावों का आगाज हो चुका है। गांव की सरकार में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में लोगों ने नामांकन दाखिल किए हैं। पंच और संरपंच(Punch and Sarpanch) बनने के लिए नेता ऐड़ी चोटी का जोर लगा है. दोनों पदों के लिए वोटिंग होगी लेकिन कई जगहों पर निर्विरोध भी प्रतिनिधि चुने जा रहे हैं। इन्हीं में से एक है नरसिंहपुर जिला मुख्यालय(Narsinghpur District Headquarters) से 20 किमी दूर बसा गांव बघुवार। 25 जून को ग्राम पंचायत के नए सरपंच के लिए यहां मतदान है। इस मतदान की हर जगह चर्चा है। दरअसल, 1993-94 में पंचायती राज अधिनियम(Panchayati Raj Act) लागू होने के बाद यह दूसरा मौका है, जब सरपंच पद के लिए मतदान की नौबत आई। अब तक सारे चुनाव यहां निर्विरोध(unopposed) चुने गए। हर बार चुनाव के पहले ग्राम के बड़े बुजुर्ग बैठक करते।





एक राय से नए सरपंच को चुन लेते। कोशिश इस बार भी हुई, लेकिन सफल नहीं हो सकी। कुछ लोग चुनाव लड़ने पर आमादा थे। लिहाजा समझाइश की कोशिशें बेकार चली गईं। दो प्रत्याशी प्रीति चौहान (35) और दीक्षा चौहान (32) मैदान में उतर गईं।





स्कूलों में टीचर लेट नहीं होते





गांव के लोग दुखी हैं। वजह भी बड़ी खास है। दरअसल ग्रामीणों ने मिलजुलकर बघुवार को देश-प्रदेश में आदर्श गांव(model village) बनाया। चमचमाते रोड, 10 साल से जारी पौधरोपण, हर घर के सामने एक पेड़, स्कूल, ग्राम पंचायत, सोसायटीज सभी पेड़-पौधों से घिरे और भी न जाने बहुत कुछ अच्छा है यहां। गांव के स्कूलों में कभी कोई अध्यापक लेट नहीं आता। सरकारी स्कूलों का रिजल्ट कभी भी 80% से कम नहीं आता। बच्चों का शैक्षणिक स्तर किसी शहरी कॉन्वेंट या पब्लिक स्कूल से कम नहीं।





गांव के पूर्व उप सरपंच शोभाराम जाटव (63) कहते हैं कि चूंकि चुनाव नहीं होते, इसलिए यहां दलगत वैमनस्य नहीं पनपा। सुनिश्चित करते हैं कि नियमों का पालन हो। खुद का घर बनाने के लिए पेड़ काटना जरूरी हो तो भी व्यक्ति को तहसीलदार से अनुमति लेनी पड़ती है, लेकिन अब चिंता यह है कि आगे गांव की ये एकता बनी रहेगी या नहीं। बघुवार गांव में कृषि प्रधान गांव है। सभी गांववासी शिक्षा के महत्व को बखूबी समझते है। यहां प्राइमरी से लेकर हायर सेकेंडरी तक का सरकारी स्कूल है। ये स्कूल न केवल प्राइवेट स्कूल की तरह साफ सुथरा है। बल्कि इसका रिजल्ट भी 100 फीसद होता है। गांव की दीवारों से ही शिक्षा का ज्ञान मिलता है।  गांव की दीवारों पर स्कूल की सभी किताबों का पाठ छपा हुआ है। स्कूल की किताबों में लिखी ज्ञान देने वाली बातों को घरों की बाहरी दीवारों पर लिखा गया है। गांव में 100 फीसदी साक्षरता(literacy) है।





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 सरपंच नरेंद्र सिंह चौहान की भी यही चिंता है। वे बोले कि यह प्रदेश का एक बिरला गांव है, जहां अंडरग्राउंड सेनिटेशन है। इसके लिए सरकारी मदद मिली। जब पैसा कम पड़ा तो ग्रामीणों ने मदद की। साझा निगरानी इतनी तगड़ी है कि गांव की किसी भी दुकान में कोई तंबाकू आधारित पान-मसाला और सिगरेट नहीं बेच सकता। युवा पीढ़ी शराब समेत दूसरे नशे से दूर है, इसलिए झगड़े कम होते हैं। यदि होते भी हैं तो पुलिस तक नहीं जाते। ज्यादातर मामले मिलजुलकर सुलझा लिए जाते हैं। किसान मुख्य रूप से गन्ना उगाते हैं, जो आला दर्जे का होता है। किसान खुद ही गन्ने से गुड़ बनाते हैं। 300 एकड़ जमीन पर गन्ना लगता है, जिससे हर साल करीब 3000 टन गुड़ पैदा होता है।





पूरी तरह से जैविक खेती





पूरी तरह जैविक खेती गांव के किसान जैविक खेती(Organic farming) ही करते हैं। जानकारी के अनुसार पूर्व में सेवानिवृत्त डिप्टी डायरेक्टर (एग्रीकल्चर) इसी गांव के हैं। जिले से बाहर रहकर नौकरी पूरी करने बाद  गांव लौटने पर किसानों को नई तकनीकी सिखाई। जैविक खाद के लिए गांव में गड्ढे बनाए गए। इन गड्ढों में गांव का कचरा इकट्ठा किया जाता है, जिससे खाद बनाई जाती है। हर वर्ष खाद की नीलामी की जाती है।





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गोबर गैस प्लांट में प्रदेश में सबसे आगे है।  इस गांव में गोबर गैस के मामले में गांव पूरे प्रदेश में सबसे आगे है। ज्यादातर घरों में गोबर गैस की मदद से खाना पकाया जाता है। सफाई और जल संचयन गांव में सफाई और जल संचयन पर विशेष ध्यान दिया जाता है।  इस गांव के हर घर में शौचालय है। सफाईकर्मियों द्वारा प्रतिदिन गांव की सफाई की जाती है। जल निकासी की व्यवस्था है कि बारिश कितनी भी हो, गांव में कभी पानी नहीं रुकता। सभी नालियां अंडरग्राउंड हैं। गांव पूरी तरह मच्छर मुक्त है। जलसंचय के लिए नालियों को कुओं से जोड़ा गया है, जिसमें पानी इकट्ठा होता रहता है। 





रोज निकलती है प्रभातफेरी





50 वर्षों से गांव में सुबह पांच बजे प्रभातफेरी निकाली जाती है। भजन-कीर्तन की गूंज से गांव जागता है। प्रभातफेरी में सभी जाति-धर्म के लोग शामिल होते हैं। इस काम के लिए रामायाण मंडल नाम से एक मंडली बनाई गई है। बघुवार गांव को 2010 में राष्ट्रपति भी पुरस्कृत कर चुके हैं। 





गांव की ये सात खासियत





दूसरों को देती हैं सीख शिक्षा: साढ़े तीन साल की उम्र होते ही बच्चे को स्कूल भेजना अनिवार्य है।





पर्यावरण संरक्षण : गांव की गलियों- सड़कों के किनारे पेड़-पौधे लगे हैं। हर पौधे को ट्री-गार्ड की मदद से सुरक्षित किया गया है।





जल संरक्षण : गांव में तीन समृद्ध तालाब हैं। बारिश के बहाव को इन्हीं में मोड़ा गया है।





सुव्यवस्थित : गांव में 20 साल पहले से ही ड्रेनेज सिस्टम और पानी की सप्लाई लाइन है।





विकास के लिए सरकार पर निर्भर नहीं





 गांव के लोग कभी भी विकास के लिए सिर्फ सरकार पर निर्भर नहीं रहे। सरकार से मिली राशि में गांव वालों ने डेढ़ लाख रु. मिलाकर पक्का स्कूल भवन बनाया, भ्रमरी नदी पर बने स्टॉपडेम में ढाई लाख रु. देकर खेती के लिए पानी के संकट को भी हल किया। नियमित साफ सफाई, घरों के आगे बने सोखते गड्ढे, भूमिगत नालियों का निर्माण, गांव में वृक्षारोपण, वर्षा जल की हरेक बूंद को सहेजकर सिंचाई में उपयोग करना यह सब गांववालों की आदत में शामिल हो चुका है।





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शतप्रतिशत साक्षरता, घरों की दीवारों पर लिखे प्रेरक, ज्ञानवर्धक और संस्कारक्षम वाक्य मन पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। 40 प्रतिशत घरों का भोजन गोबर गैस से बनता है।  इसी सरकारी विद्यालय से पढ़कर यहां के अवधेश शर्मा लेफ्टीनेंट बने। कुछ डॉक्टर भी बने। नरसिंहपुर के कलैक्टर रहे मनीष सिंह का मानना था कि आईएएस की तैयारी कर रहे छात्रों को परीक्षा देने से पहले इस गांव को आकर देखना चाहिए, उनकी इस टिप्पणी के बाद विद्यार्थियों के कई बैच गांव देखने पहुंचे।



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