होली का पर्व संदेश देता है कि ईश्वर भक्तों की रक्षा के लिए हमेशा मौजूद रहते हैं; जानिए किस राज्य में कैसे मनाई जाती है होली

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Jitendra Shrivastava
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होली का पर्व संदेश देता है कि ईश्वर भक्तों की रक्षा के लिए हमेशा मौजूद रहते हैं; जानिए किस राज्य में कैसे मनाई जाती है होली

BHOPAL. प्राचीन पर्वों की यही सुंदरता है कि इनके पीछे छुपे पौराणिक राज हमें आकर्षित करते हैं। आइए जानें होलिका दहन का अभिप्राय और इतिहास। होलिका दहन का पर्व संदेश देता है कि ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं। होलिका दहन, होली त्योहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। 





हिंदुओं के लिए होली का पौराणिक महत्व भी 





होलिका दहन के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का विधान है और अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है। भारत में मनाए जाने वाले सबसे शानदार त्योहारों में से एक है होली। दीवाली की तरह ही इस त्योहार को भी अच्छाई की बुराई पर जीत का त्योहार माना जाता है। हिंदुओं के लिए होली का पौराणिक महत्व भी है। इस त्योहार को लेकर सबसे प्रचलित है प्रहलाद, होलिका और हिरण्यकश्यप की कहानी, लेकिन होली की केवल यही नहीं बल्कि और भी कई कहानियां प्रचलित है। वैष्णव परंपरा में होली को, होलिका-प्रहलाद की कहानी का प्रतीकात्मक सूत्र मानते हैं।





होलिका दहन का सबसे प्रचलित इतिहास





प्राचीनकाल में होली को होलाका के नाम से जाना जाता था और इस दिन आर्य नवात्रैष्टि यज्ञ करते थे। होलिका दहन के बाद 'रंग उत्सव' मनाने की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के काल से प्रारंभ हुई। तभी से इसका नाम फगवाह हो गया, क्योंकि यह फागुन माह में आती है। वक्त के साथ सभी राज्यों में होली को मनाने और उसको स्थाननीय भाषा में अन्य नाम से पुकारने लगे। प्राचीन भारतीय मंदिरों की दीवारों पर होली उत्सव से संबंधित विभिन्न मूर्ति या चित्र अंकित पाए जाते हैं। यह त्योहार 600 ईसा पूर्व से मनाया जाता रहा है। सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों में भी होली और दिवाली मनाए जाने के सबूत मिलते हैं। होली होलिका दहन होता है। दूसरे दिन धुलेंडी के दिन जिनके यहां कोई मर गया है उन्हें रंग डालने जाते हैं। पांचवें दिन रंग पंचमी पर रंगों से होली खेलते हैं। हालांकि होलिका दहन से ही रंग चढ़ने लगता है। होली मिलन समारोह आयोजित कर लोग रंग और गुलाल अबीर एक-दूसरे पर लगाते हैं, भांग पीते हैं, मिठाई खाते और गुझिया खाते हैं।





होलिका दहन की शुरुआत को लेकर ये किवदंतियां भी हैं





होलिका दहन की पौराणिक कथा





पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा कि उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुकसान नहीं पहुंचा सकती। किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत, होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है। होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं। होली की केवल यही नहीं बल्कि और भी कई कहानियां प्रचलित है।





कामदेव को किया था भस्म 





होली की एक कहानी कामदेव की भी है। पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन तपस्या में लीन शिव का ध्यान उनकी तरफ गया ही नहीं। ऐसे में प्यार के देवता कामदेव आगे आए और उन्होंने शिव पर पुष्प बाण चला दिया। तपस्या भंग होने से शिव को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और उनके क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए। कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति रोने लगीं और शिव से कामदेव को जीवित करने की गुहार लगाई। अगले दिन तक शिव का क्रोध शांत हो चुका था, उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित किया। कामदेव के भस्म होने के दिन होलिका जलाई जाती है और उनके जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार मनाया जाता है।





महाभारत की कहानी





महाभारत की एक कहानी के मुताबिक युधिष्ठर को श्री कृष्ण ने बताया- एक बार श्री राम के एक पूर्वज रघु, के शासन में एक असुर महिला थी। उसे कोई भी नहीं मार सकता था, क्योंकि वह एक वरदान द्वारा संरक्षित थी। उसे गली में खेल रहे बच्चों के अलावा किसी से भी डर नहीं था। एक दिन, गुरु वशिष्ठ, ने बताया कि उसे मारा जा सकता है, यदि बच्चे अपने हाथों में लकड़ी के छोटे टुकड़े लेकर, शहर के बाहरी इलाके के पास चले जाएं और सूखी घास के साथ-साथ उनका ढेर लगाकर जला दें। फिर उसके चारों ओर परिक्रमा दें, नृत्य करें, ताली बजाएं, गाना गाएं और नगाड़े बजाएं। फिर ऐसा ही किया गया। इस दिन को, एक उत्सव के रूप में मनाया गया, जो बुराई पर एक मासूम दिल की जीत का प्रतीक है।





श्रीकृष्ण और पूतना की कहानी





होली का श्रीकृष्ण से गहरा रिश्ता है। जहां इस त्योहार को राधा-कृष्ण के प्रेम के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। वहीं, पौराणिक कथा के अनुसार जब कंस को श्रीकृष्ण के गोकुल में होने का पता चला तो उसने पूतना नामक राक्षसी को गोकुल में जन्म लेने वाले हर बच्चे को मारने के लिए भेजा। पूतना स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था, लेकिन कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए। उन्होंने दुग्धपान करते समय ही पूतना का वध कर दिया। कहा जाता है कि तभी से होली पर्व मनाने की मान्यता शुरू हुई। 





जानिए किस राज्य में कैसे मनाया जाता है होली का पर्व





मध्यप्रदेश भगोरिया उत्सव





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मध्यप्रदेश में भी कई राज्यों की तरह ही पहले दिन होलिका दहन किया जाता है और उसके दूसरे दिन धुलेंडी मनाई जाती है। होली के पांचवें दिन बड़े ही धूम-धाम से रंगपंचमी मनाई जाती है। इस अवसर पर भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें बड़ी संख्या में शामिल हुए लोग सूखे रंग से होली खेलते हैं। मध्यप्रदेश में झाबुआ के क्षेत्रों में भी होली की खासा धूम देखने को मिलती है। यहां पर होली को 'भगोरिया' कहा जाता है।





उत्तराखंड में कुमाउ की होली





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उत्तराखंड के कुमाउ क्षेत्र में हर साल कुमाउनी होली बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है। यहां के लोगों के लिए यह पर्व ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उत्सव से कम नहीं है। कहते हैं कि यहां दो महीने तक होली का खुमार देखने को मिलता है। यहां विभिन्न प्रकार के संगीत समारोह के रूप में होली मनाई जाती है। इसे बैठकी होली, खड़ी होली और महिला होली के नाम से भी जाना जाता है।





उत्तर प्रदेश में ब्रज की होली





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भारत में सबसे ज्यादा मशहूर है ब्रज की होली। बरसाना की लट्‌ठमार होली देश में ही नहीं विदेश में भी प्रसिद्ध है। ब्रज की होली को लट्ठमार होली कहा जाता है। इस दिन नंद गांव के लोग होली खेलने के लिए राधा के गांव बरसाने जाते हैं और बरसाना गांव के लोग नंद गांव में जाते हैं। मथुरा, वृंदावन और बरसाना के इलाकों में खासतौर पर लट्ठमार होली खेली जाती है। यहां पर महिलाएं लाठी से पुरुषों की पिटाई करती हैं, जबकि पुरुष उनसे बचने की कोशिश करते हैं। यह सब हंसी-खुशी के वातावरण में होता है। मथुरा-वृंदावन में रंगों से ही नहीं, बल्कि फूलों से भी होली खेली जाती है।





राजस्थान में शाही होली





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राजस्थान के उदयपुर में एक अलग ही अंदाज में होली खेली जाती है। यही वजह है कि इसे रजवाड़ा और शाही होली कहा जाता है। यहां जूलूस भी निकाला जाता है, जिसमें हाथी, घोड़े से लेकर शाही बैंड शामिल होता है, जिसे देखने विदेशों से भी लोग यहां आते हैं। होली के दिन राजस्थान में जैसलमेर के मंदिर महल में लोकनृत्यों का आयोजन किया जाता है। इस दौरान यहां के रंग देखते ही बनते हैं।





छत्तीसगढ़ का होरी उत्सव





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छत्तीसगढ़ में होली वाले दिन होलिका दहन होता है और दूसरे दिन रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में होली को 'होरी' कहा जाता है। यहां पर होली का पारंपरिक रूप देखने को मिलता है। इसके साथ ही गली-गली में नगाड़े की थाप पर लोकगीत गाए जाते हैं।





हरियाणा में धुलेंडी की धूम





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भारतीय संस्‍कृति में रिश्‍तों और प्रकृति के बीच सामंजस्‍य का अनोखा मिश्रण हरियाणा की होली में देखने को मिलता है। हरियाणा में होली धुलेंडी के रूप में मनाते हैं और सूखी होली गुलाल और अबीर से खेलते हैं। हरियाणा की धुलेंडी में भाभी द्वारा देवर को परेशान करने की प्रथा है। इस दिन भाभियां देवरों को तरह-तरह से सताती हैं और देवर बेचारे चुपचाप झेलते हैं, क्योंकि इस दिन तो भाभियों का दिन होता है। यह देशभर में प्रसिद्ध है।





बंगाल की दोल जात्रा





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बंगाल में होली के एक दिन पहले यहां दोल जात्रा निकाली जाती है, जिसे दोल उत्सव भी कहा जाता है। दोल उत्सव बंगाल में होली से एक दिन पहले मनाया जाता है, जिसमें महिलाएं लाल किनारी वाली पारंपरिक सफेद साड़ी पहनकर शंख बजाते हुए राधा-कृष्ण की विधि-विधान पूजा-अर्चना करते हुए उनकी भक्ति में रम जाती हैं। बता दें कि इस दिन प्रभात-फेरी (सुबह निकलने वाला जुलूस) का आयोजन बड़े ही धूमधाम से किया जाता है।





गोवा में शिमगोत्सव





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गोवा में होली को कोंकणी में शिमगो या शिमगोत्सव कहते हैं। यहां बड़े ही धूमधाम से रंगों से होली खेली जाती है। इस दौरान खाने में तीखी मुर्ग या मटन की करी खाते हैं, जिसे शगोटी कहा जाता है। इसके बाद मीठा खाया जाता है। बता दें कि गोवा के मछुआरा समाज में होली फाल्गुन मास में आने वाले त्योहारों को शिमगो या शिमगा कहा जाता है। यहां पर होली के दिन देश के साथ-साथ विदेशी पर्यटक भी जमकर होली खेलते हैं। लोग रंग खेलने के साथ डीजे पार्टी, पूल पार्टी जैसे आयेजनों में जमकर लुफ्त उठाते हैं। 





बिहार की कपड़ा फाड़ होली





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बिहार में होली को फाग या फगुआ भी कहते हैं। इस अवसर पर यहां गाए जाने वाले फगुआ की अपनी गायन शैली के लिए अलग पहचान है। राज्य में कई स्थानों पर कीचड़ से होली खेली जाती है तो कई स्थानों पर कपड़ा फाड़ होली खेलने की भी परंपरा है। होली के दिन रंग से सराबोर लोग ढोलक की धुन पर नाचते हैं और लोकगीत गाते हैं।





महाराष्ट्र की गोविंदा होली





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महाराष्ट्र में रंगपंचमी में सुखा गुलाल खेलने की प्रथा है। महाराष्ट्र में गोविंदा होली की बहुत धूम होती है। होली पर यहां मटकी फोड़ होली खेली जाती है। इसके साथ ही पूरा वातावरण रंगों से सराबोर हो जाता है। यहां पर होली को 'फाल्गुन पूर्णिमा' भी कहा जाता है।





पंजाब में होला मोहल्ला





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पंजाब में होली को 'होला मोहल्ला' कहा जाता है। पंजाब में होली के अगले दिन सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनन्दपुर साहिब में 'होला मोहल्ला' मेले का आयोजन किया जाता है, जो 6 दिन तक  चलता है। इसमें वीरता और पराक्रम का रंग देखने को मिलता है। कहते हैं कि इस परंपरा की शुरूआत सिखों को दसवें गुरू, गोविंदसिंह जी के द्वारा की गई थी।



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