आगरा में पैदा हुआ एक अज़ीम शायर, फिर दिल्ली आया, श़ेर गढ़े, लतें भी पालीं; एक मामले में बदकिस्मत रहे देश के ‘रतन’

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The Sootr CG
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आगरा में पैदा हुआ एक अज़ीम शायर, फिर दिल्ली आया, श़ेर गढ़े, लतें भी पालीं; एक मामले में बदकिस्मत रहे देश के ‘रतन’

नमस्कार दोस्तो, मैं अतुल हूं। आज शनिवार है और हर शनिवार की तरह आज भी आपको कहानी सुनाने का वादा है। आज फिर एक कहानी लेकर आपके सामने मौजूद हूं। इस दुनिया में हर आदमी ठीक ठाक सा आदमी, पैसा तो चाहता ही है, नाम भी चाहता है, मेहनत से पैसा मिल भी जाता है, पर कमबख्त नाम नहीं मिलता। दुनिया में चंद ही होते हैं, जिन्हें दुनियावाले जानते हैं। आज ऐसे ही दो लोगों की कहानी सुना रहा हूं। दोनों को ही किसी पहचान की जरूरत नहीं है। दोनों भारत की अजीम शख्सियतें हैं। अगले हफ्ते इन्हीं दो लोगों को जन्मदिन होता है। आज इन्हीं लोगों की कहानी सुना रहा हूं। आज की कहानी को मैंने नाम दिया है- एक ही मिर्जा, एक ही टाटा...

अब तो आप समझ ही गए होगे कि आखिर बात किनकी होने वाली है। आज दो लोगों की बात करूंगा। 27 तारीख को मिर्जा गालिब का जन्मदिन है और 28 दिसंबर को रतन टाटा का। पहले बात मिर्जा गालिब की। वे 1979 में वे आगरा में पैदा हुए थे। गुलजार साहब के शब्दों में कहूं तो....

"बल्लीमारान के मोहल्ले की वो पेचीदा दलीलों की सी गलियां,
सामने टाल के नुक्कड़ पर बटेरों के कसीदे,
गुड़गुड़ाती हुई पान की पीकों में वो दाद, वो वाह! वाह!
चंद दरवाज़ों पर लटके हुए बोशीदा से कुछ टाट के परदे,
एक बकरी के मिमियाने की आवाज़,
और धुंधलाई हुई शाम के बेनूर अंधेरे ऐसे दीवारों से मुंह जोड़ के चलते हैं यहां,
चूड़ीवालां के कटड़े की बड़ी बी जैसे अपनी बुझती हुई आंखों से दरवाज़े टटोले,
इसी बेनूर अंधेरी सी गली क़ासिम से एक तरतीब चरागों की शुरू होती है,
एक कुराने सुख़न का सफ़ा खुलता है,
असदुल्ला खां ग़ालिब का पता मिलता है"

उनका असली नाम मिर्जा असदुल्लाह बेग खान था और मिर्जा गालिब उनका पेन नेम (तखल्लुस) था। गालिब को उर्दू, अरबी और फारसी भाषाओं का ज्ञान था और वह उर्दू और फारसी दोनों भाषाओं में शेरो-शायरी और ग़ज़ल लिखते थे। गालिब के दादा उज्बेकिस्तान से भारत आए थे। 13 साल की उम्र में गालिब का निकाह उमराव बेगम से हुआ था। शादी के बाद वह दिल्ली चले गए और वहीं बस गए। गालिब की शादी दिल्ली के एक अमीर खानदान की लड़की से हुई थी, लेकिन फिर भी इस महान शायर की जिंदगी गरीबी की वजह से मुश्किलों में ही बीती। गालिब के 7 बच्चे हुए, लेकिन कोई भी दो साल से ज्यादा नहीं जी पाया।    

मिर्जा गालिब की जिंदगी में भारतीय इतिहास में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, जैसे उनके समय में मुगल साम्राज्य अपने पतन की ओर जा रहा था और उसकी जगह ईस्ट इंडिया कंपनी के जरिए ब्रिटिश राज कायम हो रहा था। 1857 का पहला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम भी उनके ही समय में हुआ था। इन सभी घटनाओं का जिक्र गालिब के लेखन में मिलता है। 

मिर्जा गालिब को शराब पीने का बहुत शौक था। गालिब महंगी और अंग्रेजी शराब पीने के शौकीन थे। वह शराब पीने के लिए कुछ भी कर सकते थे। भले ही उनका पास पैसों की कितनी भी दिक्कत हो और चाहे सैकड़ों किलोमीटर दूर जाकर शराब लानी पड़े, लेकिन फिर भी लाते थे और पीते थे।

एक बार मिर्जा गालिब को शराब नहीं मिली और वो नमाज पढ़ने चले गए। इतने में उनका एक शागिर्द आया और उसने गालिब को शराब की बोतल दिखाई। बोतल देखते ही गालिब नमाज पढ़े बिना ही मस्जिद से निकलने लगे, तो किसी ने टोका- 'ये क्या मियां, बगैर नमाज पढ़े ही चल दिए?' तो गालिब बोले 'जिस चीज के लिए दुआ मांगना थी, वो तो यूं ही मिल गई। इस शराब के शौक ने उन्हें कर्जदार बना दिया था। उस समय उन पर 40 हजार रुपए से ज्यादा का कर्ज हो गया था। उस जमाने में 40 हजार बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। कर्ज ना चुकाने पर एक बार उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था।

कहा जाता है कि मिर्जा गालिब को जुआ खेलने की जबर्दस्त लत थी। जुआ खेलने के लिए उन्हें 6 महीने की जेल भी हुई थी। उस समय के मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र से भी मिर्जा गालिब के अच्छे रिश्ते थे। बादशाह ने भी गालिब को जेल से छुड़वाने की कोशिश की, लेकिन उस समय मुगलों का नहीं अंग्रेजों का जमाना आ चुका था, तो उनकी नहीं चली। बाद में मिर्जा गालिब ने खुद जुगाड़ लगाया और तीन महीने में जेल से छूट गए। गालिब की मौत की खबर 17 फरवरी 1869 को एक उर्दू अखबार में छपी थी। दिल्ली में उनकी मौत 15 फरवरी को ही हो चुकी थी।

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले

उनके देखे से जो आ जाती है चेहरे पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

आह को चाहिए, इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ के सर होते तक 

हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,

दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है 

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है...

और अब बात रतन टाटा की। रतन टाटा सही मायने में लेजेंड हैं। असल में टाटा होना अपने आप ही लेजेंड हो जाता है। जिस चुटकी भर नमक पर हम भरोसा करते हैं, वो टाटा ही है। रतन टाटा 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में पैदा हुए थे। रतन शर्मीले व्यक्ति हैं, झूठी चमक-दमक में विश्वास नहीं करते। वे मुंबई के कोलाबा में एक किताबों से भरे घर में रहते हैं। कुत्तों से उन्हें काफी प्यार है। रतन वास्तव में देश के रतन हैं। दुनिया उनका नाम काफी अदब से लेती है। रतन टाटा पारसी हैं। टाटा ग्रुप के संस्थापक जमशेद टाटा के बेटे नवल के दत्तक पुत्र हैं। रतन टाटा का पूरा नाम रतन नवल टाटा है। 

यूं तो रतन टाटा की कई कहानियां है, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की होती है कि उन्होंने शादी क्यों नहीं की। रतन ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी, लेकिन उनकी दादी के कहने पर उन्होनें आर्किटेक्चर फील्ड में जाने का सोचा। उन्हें लॉस एंजिल्स में नौकरी मिली। यहीं उन्हें एक लड़की से प्यार हो गया था। करीब 2 साल तक उनका साथ रहा। दोनों की बीच सबकुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन तभी अचानक से रतन की दादी की तबीयत खराब हो गई। रतन 7 साल से उनसे मिले नहीं थे। ऐसे में उन्होनें कुछ समय के लिए भारत जाने का फैसला लिया। रतन को लगता था कि वे जिस लड़की से प्यार करते हैं, वह उनके साथ भारत चलेगी। फिर वह दोनों शादी कर लेंगे। लेकिन शादी का उनका यह सपना अधूरा रह गया। वो 1962 का दौर था, जब भारत-चीन युद्ध छिड़ गया था। इसके कारण टाटा की प्रेमिका के पिता ने शादी करने से मना कर दिया और यह रिश्ता टूट गया।

ऐसा कहा जा सकता है कि प्यार और रतन टाटा की आपस में कभी जमी नहीं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्हें जिंदगी में एक बार नहीं, बल्कि 4 बार प्यार हुआ। चारों बार वेसीरियस थे। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। हमेशा बात शादी आने तक टूट ही जाती थी। एक इंटरव्यू के दौरान जब उनसे पूछा गया कि उन्होनें कभी शादी क्यों नहीं की तो रतन ने जवाब दिया कि हर समय अलग था। लेकिन जब मैं इसमें शामिल लोगों को देखता हूं तो मुझे बुरा नहीं लगता।

कभी एक्ट्रेस सिमी ग्रेवाल और रतन टाटा की रिलेशनशिप के भी चर्चे रहे हैं। 2011 में सिमी ग्रेवाल ने टाइम्स ऑफ इंडिया के एक इंटरव्यू में बताया था कि रतन टाटा और मैंनें एक लंबा सफर तय किया है। वे परफेक्ट हैं, उनके पास गजब का सेंस ऑफ ह्यूमर है। वे बेहद ही विनम्र व्यक्ति हैं। पैसा कभी भी उनकी प्रेरणा शक्ति नहीं रहा। रतन क्यों रतन हैं, ये एक से साबित हो जाता है। उन्होंने देश की सबसे सस्ती कार लॉन्च की थी। नाम है टाटा नैनो। रतन ने इसकी कहानी भी बताई थी। बताया कि मैंने एक परिवार को एक स्कूटर पर जाते देखा था, वो बारिश में भीगते हुए जा रहे थे, मैं इन लोगों के लिए कुछ करना चाहता था क्योंकि इन लोगों के पास विकल्प नहीं था और इसकी वजह से ये लोग परिवार के लिए अपने जीवन को जोखिम में डालते हैं। और फिर आ गई एक लाख की कार...लखटकिया।...बस यही थी आज की कहानी...