एशिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हुई रीवा की खिचड़ी, 100 किलो देशी घी में 600 किलो चावल और 300 किलो दाल से बनाई

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Rahul Garhwal
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एशिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हुई रीवा की खिचड़ी, 100 किलो देशी घी में 600 किलो चावल और 300 किलो दाल से बनाई

REWA. रीवा के पचमठा आश्रम में महाशिवरात्रि पर एशिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बन गया। प्रसाद के लिए 5100 किलो खिचड़ी बनाई गई जो एशिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हुई। 51 हजार लोगों ने खिचड़ी खाई। महाशिवरात्रि पर 15वीं बार खिचड़ी बनाई गई है। इससे पहले 3 हजार किलो खिचड़ी का रिकॉर्ड था।



1100 किलो के कड़ाहे में बनी खिचड़ी



यूपी के कानपुर और आगरा के कारीगरों ने 15 दिनों में 1100 किलो के कड़ाहे को बनाया था। कड़ाहे को हाइड्रोलिक मशीन से उठाकर ट्रक में रखा गया। इसके बाद कानपुर से रीवा के पचमठा आश्रम में लाया गया। कड़ाहे की ऊंचाई 5.50 फीट और चौड़ाई 11 फीट है। इतनी ज्यादा ऊंचाई होने की वजह से इसके अंदर झांक नहीं सकते थे। इसलिए एक अलग तरह की भट्ठी बनाई गई। कड़ाहे को भट्ठी पर चढ़ाने के लिए जेसीबी की मदद लेनी पड़ी।



कैसे बनाई गई 5100 किलो खिचड़ी



1100 किलो के कड़ाहे में 100 किलो देशी घी डाला गया, 100 किलो हरी सब्जियां डाली गईं। 600 किलो चावल और 300 किलो दाल के बाद 4 हजार लीटर पानी डाला गया। इसके बाद भट्ठी पर खिचड़ी तैयार हुई। इतनी ज्यादा मात्रा में खिचड़ी बनती देखने के लिए एशिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड की टीम पचमठा आश्रम पहुंची थी।



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खिचड़ी को घोषित करना चाहिए राष्ट्रीय व्यंजन



पचमठा आश्रम के संतों का कहना है कि खिचड़ी हर क्षेत्र का व्यंजन है। जाति और धर्म के अनुसार खिचड़ी के अलग-अलग नाम हैं। उत्तर में इसका नाम खिचड़ी तो दक्षिण भारत में पोंगल है। विज्ञान से लेकर आयुर्वेद और मेडिकल चिकित्सक भी खिचड़ी खाने की सलाह देते हैं। रीवा के पचमठा में विशाल खिचड़ी भंडारे का उद्देश्य इसे राष्ट्रीय व्यंजन घोषित कराने का है।



पचमठा आश्रम पांचवां मठ



पचमठा आश्रम के महंत विजय शंकर ब्रह्मचारी का कहना है कि आदिगुरु शंकराचार्य ने भारत की 4 दिशाओं में 4 मठ बनाए थे। रीवा से गुजरते समय आदिगुरु शंकराचार्य ने बीहर नदी के किनारे पांचवें मठ की स्थापना की। इसे पचमठा नाम दिया गया। सदियों से संत महात्मा अमरकंटक से प्रयागराज जाते समय पचमठा आश्रम में रुकते थे। इसलिए इसे संतों की सिद्ध स्थली भी कहा जाता है। 1954-55 में स्वामी ऋषि कुमार महाराज ने संस्कृत विद्यालय की स्थापना की। इसके बाद से पचमठा आश्रम का महत्व और बढ़ गया।


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