गावस्कर के जीवन का अविस्मरणीय मैच जिसमें विरोधी टीम ने निकाले लाठी और चाकू

author-image
एडिट
New Update

गावस्कर के जीवन का अविस्मरणीय मैच जिसमें विरोधी टीम ने निकाले लाठी और चाकू

भारत के महान बल्लेबाज़ सुनील गावस्कर। जितना रनों का भंडार है उतना ही बड़ा खज़ाना दिलचस्प घटनाओं से जुड़े किस्सों का भी है। आज से 72 साल पहले यानी 10 जुलाई 1949 को मुंबई में जन्मे सुनील गावस्कर ने अपने शानदार टेस्ट करियर में 125 मैच खेले और 10,122 रन और 34 शतक बनाए। उस समय वह टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन और सबसे ज्यादा शतक बनाने वाले बल्लेबाज़ थे। गावस्कर ने चार किताबें भी लिखी। उनकी लेखनी का रोचक और सरल अंदाज पाठकों को उनकी ओर खींचता है। एक कमेंटेटर के तौर पर उनका विश्लेषण और टिप्पणियां बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। वे क्रिकेटरों की नकल करने की कला में भी सिद्धहस्त हैं। जिससे उनके सेंस ऑफ ह्यूमर का अच्छी तरह से अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

कान में छेद नहीं होता तो क्रिकेटर नहीं मछुआरा बनते

घटना कुछ इस तरह की है कि मुंबई में जब सुनील गावस्कर का जन्म हुआ उनके चाचा नारायण मसूरीकर उन्हें देखने अस्पताल पहुंचे और उन्होंने उनके बाएं कान पर एक छोटा सा छेद देखा। अगले दिन जब वह दोबारा आए तो उन्हें गावस्कर के कान में वो छेद नहीं दिखाई दिया। वे चिल्लाए कि यह वह बच्चा नहीं है जिसे उन्होंने पहले दिन देखा था। अस्पताल में हंगामा हो गया और कान में छेद वाले बच्चे की तलाश शुरू हुई। पता चला कि गावस्कर एक मछुआरिन के बगल में गहरी नींद में सो रहे थे। दरअसल बच्चों को नहलाते और सफाई करते वक्त बच्चे बदल गए थे।गावस्कर अपनी किताब 'सनी डेज़' में लिखा है "मैं अक्सर ये सोचता हूं कि यदि मेरे कान में छेद नहीं होता और मेरे चाचाजी मुझे नहीं पहचान पाते तो क्या होता । शायद मैं एक मछुआरे के रूप में बड़ा होता और पश्चिमी तट के पास कहीं मछलियां पकड़ रहा होता।"

.....और सिर्फ गावस्कर को सुरक्षित घर जाने दिया

सुनील गावस्कर मुंबई के सेंट जेवियर्स स्कूल एंड कॉलेज के सबसे सफल बल्लेबाज़ थे। उन्हें स्कूल स्तर के क्रिकेट में ही दोहरा शतक लगाने की आदत हो गई थी। लेकिन एक मैच जिसे वह कभी नहीं भूलते और उस मैच में लाठी और चाकू निकल आए थे। फाइनल में सेंट जेवियर्स कॉलेज का मुक़ाबला सिद्धार्थ कॉलेज के साथ था। जब अशोक मांकड़ ने शतक लगाया तो जेवियर्स कॉलेज के कुछ लड़के मैदान के बीच गाड़ी ले आए और अशोक को हार पहनाने लगे। सिद्धार्थ कॉलेज के किरण ने जब शतक लगाया तो उनके साथी मोटरसाइकिल लेकर ग्राउंड में आ गए और किरण को हार पहनाने लगे। जब सिद्धार्थ कॉलेज को जीत के लिए 20 रन चाहिए थे, तो उनका आखिरी बल्लेबाज़ साफ तौर पर एलबीडब्ल्यू था लेकिन अंपायर ने उन्हें आउट नहीं दिया क्योंकि उसे अपनी जान प्यारी थी। दरअसल सिद्धार्थ कॉलेज के बाहर बैठे लड़कों ने लाठियां और चाकू निकाल लिए थे। मैच के बाद उन लड़कों ने गाड़ी के शीशे तोड़ दिए। प्रतिद्वंदी कॉलेज के लड़कों ने गावस्कर को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया और उन्हें सुरक्षित घर जाने दिया।

अभिनय औऱ गायकी में भी आजमाया हाथ

1980 में गावस्कर ने एक मराठी फिल्म 'सावली प्रेमाची' में नायक की भूमिका भी निभाई थी लेकिन वो फिल्म फ्लॉप हो गई। 1988 में गावस्कर हिंदी फिल्म 'मालामाल' में गेस्ट एक्टर के रूप में भी दिखाई दिए थे। उन्होने एक मराठी गाना भी गाया जिस पर लता मंगेशकर ने ट्वीट किया कि गावस्कर क्रिकेट का एक यादगार अध्याय है लेकिन उन्हें संगीत की भी समझ है। वह एक प्रतिभाशाली गायक हैं। उनके जैसे जीवंत लीजेंड कम ही हैं।

अनसुने किस्से