हार का खौफ: भारतीय टीम की हॉकी देख डर गया था ब्रिटेन, ओलंपिक में नहीं उतरी टीम

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हार का खौफ: भारतीय टीम की हॉकी देख डर गया था ब्रिटेन, ओलंपिक में नहीं उतरी टीम

भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने 1928 में हॉलैंड के एम्सटर्डम में पहला स्वर्ण पदक जीतकर ओलिंपिक में जीत के सफर की शुरुआत की थी। इस टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन कर टीम इंडिया अपने सभी मैच जीतने में कामयाब रही थी। खासबात यह रही कि उसने किसी भी मैच में विरोध टीम को अपने खिलाफ एक भी गोल करने का मौका नहीं दिया। लेकिन क्या आपको मालूम है कि भारत पर करीब 200 साल तक राज करने वाले अंग्रेज भारत की हॉकी टीम का दमदार खेल देखकर इतने डर गए थे कि ब्रिटेन की हॉकी टीम इस ओलिंपिक में हिस्सा ही नहीं लिया था।

प्रैक्टिस मैच में भारत का दमदार खेल देखकर डर गया ब्रिटेन

भारतीय टीम कैप्टन जयपाल सिंह के नेतृत्व में 10 मार्च 1928 को केसर-ए- हिंद नाम के जहाज से नीदरलैंड (हालैंड) के लिए रवाना हुई। टीम में मेजर ध्यानचंद जैसे दिग्गज खिलाड़ी भी शामिल थे जिन्हें दुनिया हॉकी के जादूगर के नाम से भी जानने लगी थी। नीदरलैंड पहुंचने से पहले जहाज 20 दिन लंदन में रुका और यहां भारतीय टीम ने कुछ प्रैक्टिस मैच खेले। भारत ने ब्रिटेन की सभी क्लब टीम को अपने दमदार खेल से हरा दिया। भारतीय टीम का खेल देखकर सभी हैरान रह गए। सब जान गए थे कि यह टीम अपराजेय है।भारतीय टीम के चर्चे इतने मशहूर हुए कि ब्रिटिश टीम ने ओलिंपिक में हार के डर से हॉकी में भाग लेने का इरादा ही छोड़ दिया। ब्रिटेन को डर था कि ओलिंपिक में कहीं वह अपने खुद के औपनैवेषिक देश से हार न जाए। यदि ऐसा हुआ तो पूरी दुनिया में उसकी जमकर बदनामी होगी। भारतीय टीम के प्रदर्शन को देखकर ब्रिटिश मीडिया ने भी उसकी जमकर तारीफ की और भारत को एम्सटर्डम ओलिंपिक खेलों में जीत का प्रबल दावेदार बताया।

पहले ही मैच में ध्यानचंद ने हैट्रिक लगाकर चौंकाया

एम्सटर्डम ओलिंपिक में भारत का पहला मुकाबला ऑस्ट्रिया के साथ था। सभी को उम्मीद थी कि मैच में बेहतरीन प्रतिस्पर्धा देखने को मिलेगी लेकिन भारत ने यह एकतरफा मैच 6-0 से जीतकर सभी को हैरान कर दिया। पहले हाफ में ही ध्यानचंद ने हैट्रिक लगा दी और दूसरे हाफ में भी उन्होंने ऑस्ट्रियाई खिलाड़ियों को चैन नहीं लेने दिया। पूरी ऑस्ट्रियाई टीम मिलकर भी ध्यानचंद को रोक नहीं पाई। ध्यानचंद ने मैच में चार गोल किए। उनके अलावा शौकत अली और माौरिसे गेटले ने एक-एक गोल किया। इस मैच में भारतीय टीम की जो शानदार खेल दिखाया उसने बाकी टीमों को चौंका कर रख दिया था।

भारत ने बेल्जियम को 9-0 से हराया

भारतीय टीम के सामने अगली चुनौती बेल्जियम की थी। यूरोप में बेल्जियम को शानदार टीम के तौर पर जाना जाता था, लेकिन भारत से मुकाबले में बेल्जियम का हाल ऑस्ट्रिया से भी बुरा हुआ। भारत ने उसे 9-0 से मात दी। इस मैच में ध्यानचंद की हॉकी से सिर्फ एक गोल निकला। बेल्जियम के खिलाड़ी उन्हें घेरकर रखने में कामयाब हुए। लेकिन उनकी कमी पूरी की फिरोज खान ने। ध्यानचंद खुद को फंसा हुआ देखकर फिरोज को गेंद पास करते और फिरोज अपनी स्टिक से गेंद को डी में पहुंचाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर देते। फिरोज ने इस मैच में पांच गोल किए। दो गोल फ्रेडेरिक सीमैन और एक-एक गोल जॉर्ज मार्टिंस औऱ ध्यानचंद ने किए। अगले मैच में भारतीय टीम का सामना डेनमार्क से हुआ। इस मैच में भारत ने डेनमार्क को 5-0 से मात दी और सेमीफाइनल में जगह बना ली। इसके बाद स्विट्जरलैंड को भारतीय टीम ने 6-0 से जीत दर्ज कर फाइनल में प्रवेश किया।

फायनल में हालैंड को 3-0 से दी मात

फाइनल में भारत का सामना मेजबान नीदरलैंड से था। लेकिन फाइनल में फिरोज खान चोटिल हो गए और शौकत अली बीमार पड़ गए। जयपाल सिंह बीच में ही कप्तानी छोड़ कर वापस भारत लौट चुके थे। इसक कारण एंग्लो-इंडियन खिलाड़ियों से उन्हें अपेक्षित समर्थन न मिल पाना रहा। उनकी अनुपस्थिति में कप्तानी का भार एरिक ने संभाला। तमाम बुरी खबरों को पीछे छोड़ते हुए भारतीय टीम फाइनल के दिन मैदान पर उतरी। 26 मई को खेले गए फाइनल में भारत ने नीदरलैंड को 3-0 से हरा दिया और अपना पहला ओलंपिक मेडल जीता। फाइनल में ध्यानचंद ने एक बार फिर हैट्रिक लगाकर भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाते हुए भारत के स्वर्णिम सफर की शुरुआत की।

भारत के खिलाफ एक गोल भी नहीं कर पाई विपक्षी टीम

भारतीय टीम की इस ओलंपिक में एक खास बात यह रही कि उसने पूरे टूर्नामेंट में एक भी गोल नहीं खाया था। विपक्षी टीम का कोई भी खिलाड़ी भारतीय टीम का किला भेद नहीं पाया और इसमें सबसे बड़ा योगदान गोलकीपर रिचर्ड जेम्स एलन का था। पूरे टूर्नामेंट में रिचर्ड ने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया और किसी भी खिलाड़ी को गोल नहीं करने दिया।एम्सटर्डम ओलिंपिक खेलों से ध्यानचंद का नाम विश्व पटल पर छा गया। उन्होंने अपने करिश्माई खेल से टीम को लगातार जीत दिलाई। पूरे टूर्नामेंट में ध्यानचंद ने कुल 14 गोल किए और यहां से फिर ध्यानचंद ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह लगातार अपने खेल से नए कीर्तिमान स्थापित करने में कामयाब रहे।

ध्यानचंद की स्टिक तुड़वाकर देखी, कहीं उसमें चुंबक तो नहीं लगा

नीदरलैंड में तो लोगों ने ध्यानचंद की हॉकी स्टिक तुड़वा कर देखी कि कहीं उसमें चुंबक तो नहीं लगा है। जापान के लोगों को अंदेशा था कि उन्होंने अपनी स्टिक में गोंद लगा रखी है। मेजर ध्यानचंद के खेल की महानता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वियना के स्पोर्ट्स क्लब में उनकी एक मूर्ति लगाई गई है जिसमें उनके चार हाथ और उनमें चार स्टिकें दिखाई गई हैं, जैसे कि वो कोई देवता हों। एम्सटर्डम ओलिंपिक में पहला स्वर्ण पदक जीतने के बाद भारत ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने ओलिंपिक में लगातार पांच बार (1932, 1936, 1948, 1952, 1956) में स्वर्ण पदक जीता।

हॉकी के जादूगर