राजनीतिक पार्टी से ज्यादा जातिगत समीकरण चुनाव में रहते हैं प्रभावी

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राजनीतिक पार्टी से ज्यादा जातिगत समीकरण चुनाव में रहते हैं प्रभावी

BHOPAL.द सूत्र.

मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में विधानसभा की 6 सीट हैं। इनमें बड़ामलहरा भी शामिल है। इस सीट को पारंपरिक रूप से बीजेपी की सीट माना जाता है। यहां 1977 से अब तक हुए विधानसभा के 12 (2 उपचुनाव ) चुनाव में से 7 बार बीजेपी और 2 बार कांग्रेस जीती है। 1977 में जनता पार्टी,1980 में सीपीआई और 2008 में भारतीय जनशक्ति पार्टी का प्रत्याशी जीता है। यहां से वर्तमान विधायक बीजेपी से प्रदुम्न सिंह लोधी हैं। वे यहां से 2018 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीते थे। 2020 का उपचुनाव बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर जीते | आइए जानते हैं चुनावी समीकरण।

विधानसभा का क्षेत्र: यह विधानसभा क्षेत्र एक विशाल भूभाग में फैला है, जिसकी सीमाएं बिजवार, छतरपुर, विधानसभा क्षेत्र से लगती हैं। वहीं, दमोह ,सागर और टीकमगढ़ जिले को छूती हैं | इस विधानसभा क्षेत्र में नगर परिषद् बड़ामलहरा , घुवारा ,और बक्स्वाहा के प्रमुख क्षेत्र आते हैं | मुख्यतः बड़ामलहरा और बक्स्वाहा जनपद क्षेत्र के गांव इसमें जुड़े हैं |

महिला मतदाता: 95 हजार 361

पुरुष मतदाता: 1 लाख 16 हजार 70

कुल मतदाता: 2 लाख 7 हजार 38

साक्षरता का प्रतिशत: 63.74 % (2011 के अनुसार) पुरुष: 61.11%, महिला: 44.91%

आर्थिक समीकरण: कृषि पर ही आधारित हैं | वैश्य व जैन समुदाय के वोटर मुख्‍यत: व्यवसायी पर ये भी कृषि से जुड़े हैं । नौकरीपेशा बहुत ही सीमित संख्या में हैं। अधिकांशतः छोटी जोत के किसान और कृषि मजदूर हैं, जो रोजगार की तालाश में महानगरों की और जाते हैं | वन उपज में तेन्दुपत्ता और महुआ भी इनकी आर्थिक स्थिती के लिए एक बड़ा सहारा है।

विधानसभा सीट पर मतदान का ट्रेंड कब और कितना (सर्वाधिक और न्यूनतम मतदान): सर्वाधिक मतदान 2018 में 71 .6 6 फीसदी और न्यूनतम मतदान 1962 में 24. 29 प्रतिशत रहा है।

विधानसभा क्षेत्र का इतिहास:Marut (35).jpg

1952 से बड़ामलहरा विधानसभा सीट अपने अस्तित्व में आ गई थी | 1952 और 1957 में यहां से दो विधायक चुने जाते थे। 1962 से सिर्फ एक विधायक चुना जाने लगा। 1972 तक यह सीट एक तरह से कांग्रेस के कब्जे में रही। ये अलग बात रही की 1967 में बिजावर रियासत के राज परिवार से जुड़े गोविन्द सिंह जूदेव निर्दलीय चुनाव जीते | 1977 में जनता पार्टी के जंग बहादुर सिंह और 1980 में सीपीआई के कपूरचंद्र घुवारा चुनाव जीते थे | बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर 1985 में शिवराज भैय्या, 1990 अशोक चौरसिया, 1998 में स्वामी प्रसाद लोधी (उमा भारती के बड़े भाई ), 2003 में उमा भारती, 2006 में उमा भारती के त्यागपत्र के बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने सीपीआई के रहे कपूरचंद्र घुवारा को प्रत्याशी बनाया और उन्होंने उमा भारती की जनशक्ति पार्टी की रेखा यादव को 4385 मतों से पराजित किया | विधानसभा का यह उप चुनाव बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का चुनाव हो गया था | 2008 के चुनाव में भारतीय जनशक्ति पार्टी की रेखा यादव ने कांग्रेस की मंजुला देवडिया को 6522 मतों से पराजित किया। इस चुनाव में बीजेपी के कपूरचंद्र घुवारा तीसरे नंबर पर रहे। 2013 के चुनाव के पहले उमा भारती की बीजेपी में वापसी के बाद रेखा यादव ने बीजेपी के टिकिट पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस के तिलक सिंह लोधी को 1514 मतों से पराजित किया | 2018 में बीजेपी से टिकिट ना मिलने पर कांग्रेस के टिकिट पर प्रदुम्न सिंह लोधी ने चुनाव लड़ा। उन्होंने बीजेपी की मंत्री ललिता यादव को 15779 के बड़े अंतर से शिकस्त दी | 2020 में प्रदुम्न सिंह लोधी की बीजेपी में वापसी हुई। 2020 में हुए उप चुनाव में उन्होंने कांग्रेस की रामसिया भारती को 17567 मतों से पराजित किया | इस उपचुनाव में दलबदल में माहिर अखंड यादव भी बीएसपी से चुनाव मैदान में उतरे थे, उन्हें 13.71 % मत मिले |

विधानसभा क्षेत्र की खास पहचान: बड़ामलहरा विधानसभा क्षेत्र छतरपुर जिले के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक माना जाता है | खनिज सम्पदा से भरपूर है | उद्योग के नाम पर यहां भारत और एशिया की दूसरा बड़ा हीरा खनन उद्योग लग रहा है | रिओ टिंटो द्वारा इसे छोड़ने के बाद अब इसे बिरला कम्पनी के लोग संचालित कर रहे हैं | दरअसल यह इलाका वन क्षेत्र बाहुल्य है। एक समय बुंदेलखंड इलाके में डकैतों की शुरुआत इसी इलाके से हुई थी | यहां के प्रमुख डकैतों के किस्से आज भी लोग सुनाते रहते हैं | यहां का भीम कुंड और अर्जुन कुंड अपनी जिओलॉजिकल संरचना के कारण अनोखा माना जाता है | जैन तीर्थ क्षेत्र नैनागिर और द्रोणगिर को देखने देश के अनेक स्थलों से धर्मावलम्बी आते हैं |

2003 से 2018 तक के विधानसभा चुनाव में कौन जीता-कौन हारा: अब तक 12 में से 7 विस चुनाव में जीती बीजेपी, 2 बार कांग्रेस एक-एक बार जनता पार्टी, सीपीआई, जनशक्ति जीती है।

विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक मिजाज:

1977 के बाद से इस विधानसभा सीट का राजनीतिक मिजाज बदल गया है। 1977 के पहले तक जहां यह कांग्रेस के पक्ष में रहता था, अब यह मुख्यत: बीजेपी के पक्ष में ही रहता है । शुरू से लेकर अब तक हुए 12 विधानसभा चुनाव में से 7 बार बीजेपी प्रत्याशी ही जीतता आया है। तीन बार गैर कांग्रेसी प्रत्याशी जीते हैं। वहीं कांग्रेस सिर्फ दो बार ही चुनाव जीत पाई। बड़ामलहरा विधानसभा क्षेत्र पिछड़ा वर्ग बाहुल्य क्षेत्र है। यहां यादव और लोधियों का वर्चस्व माना जाता है | यही कारण है कि 2003 के विधानसभा चुनाव में उमा भारती को यह विधानसभा क्षेत्र सबसे सुरक्षित लगा | इस क्षेत्र से अधिकांशतः बाहरी लोग ही विधायक चुने गए | सियासत में अपनी अलग तासीर के लिए यह क्षेत्र जाना जाता है |

विधानसभा क्षेत्र की बड़ी चुनावी उठा-पटक:

 इस सीट पर बड़ी चुनावी उठा-पटक दो ही बार दिखी। पहली बार 1998 में जब कांग्रेस की निर्विवाद और 1993 का चुनाव जीतीं विधायक उमा यादव का टिकिट काट कर राजबहदुर सिंह को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया | यह वह निर्णय था, जिसने कांग्रेस के ताबूत में अंतिम कील ठोंकी थी |

 दूसरी बड़ी चुनावी उठा-पटक 2006 के उप चुनाव में देखने को मिली थी | उमा भारती के इस्तीफे से रिक्त इस सीट पर हुए उप चुनाव में उमा भारती ने विद्रोह कर अपनी पार्टी जनशक्ति पार्टी बनाई | उनके प्रत्याशी के तौर पर रेखा यादव चुनावी मैदान में थीं | वोटिंग के दिन सेरोरा गांव में उमा भारती के खास प्रीतम लोधी का मतदान केंद्र पर विवाद हो गया। गांव भड़क गया और उमा भरती को अपनी जान बचाना मुश्किल पड़ा | घंटों घिरे रहने के बाद देर रात पुलिस फोर्स की मदद से उन्हें बड़ामलहरा ले जाया गया | इस चुनाव में रेखा यादव 4385 मतों से चुनाव हार गईं| बीजेपी को भी अपने वोटों का समीकरण साधने के लिए सीपीआई के कपूरचंद्र घुवारा को टिकिट देना पड़ा था |

विधानसभा क्षेत्र के मुद्दे: बड़ामलहरा बुंदेलखंड का वह विधानसभा क्षेत्र है, जिसने बुंदेलखंड का पहला मुख्यमंत्री उमा भारती के रूप में मध्य प्रदेश को दिया | चुनाव जीतने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने इसे गोद भी लिया था | यह इलाका अब भी बुनियादी सुविधाओं का मोहताज है | स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सुविधाओं के लिए भी इलाके के लोग परेशान हैं | यहां के 50 फीसदी गांवों में 10 वीं से ज्यादा पड़ा लिखा युवक अब भी तलाशने से नहीं मिलता | इस इलाके में पेयजल समस्या सदियों से एक शाश्वत समस्या है | आर्थिक पिछड़ापन एक प्रमुख समस्या है | यहां हर चुनाव के पहले स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा जोर शोर से उठता है पर अधिकांशतः यहां से बाहरी प्रत्याशी ही चुनाव जीतता है।

पिछले चुनाव (2018) में समीकरण: मुख्‍य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में रहा। इस सीट पर जाति के आधार पर मतदान करने की जो परम्परा 1985 से शुरू हुई वह अब भी जारी है । भाजपा ने यहां यादव प्रत्याशी ललिता यादव को टिकट देकर यादव और पार्टी वोट बैंक का समीकरण बनाना चाहा था, लेकिन असफल रही। कांग्रेस के प्रद्युम्न सिंह लोधी ने ललिता यादव को 15779 वोट से मात दी।

चुनाव से जुड़े मशहूर किस्से: 1980 में जब यहां से सीपीआई के कपूरचंद घुवारा चुनाव जीते थे | उनके विधायक बनते ही यहां के आम आदमी की आवाज विधानसभा में गूंजने लगी | इसी के चलते यहां के कमजोर तबके के लोग भी दबंगों से भिड़ने लगे, जिसके चलते दबंगों ने विधायक के दो समर्थकों की नाक काट दी | बाद में दोनों को विधायक ने सोवियत संघ इलाज के लिए भेजा और नाक जुड़वाई |

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