BHOPAL, द सूत्र. भोपाल उत्तर इस सीट को पारंपरिक रूप से कांग्रेस की सीट माना जाता है। यहां 1977 से अब तक हुए विधानसभा के 10 चुनाव में से 8 बार कांग्रेस जीती है, जबकि दो बार 1977 में जनता पार्टी और 1993 में बीजेपी का प्रत्याशी जीता है। यहां से वर्तमान विधायक कांग्रेस के आरिफ अकील हैं। वे यहां से चार बार चुनाव जीत चुके हैं।
आइए जानते हैं चुनावी समीकरण
विधानसभा सीट का इलाका-
भोपाल (उत्तर) विधानसभा क्षेत्र में हमीदिया रोड, सेफिया कॉलेज रोड, चौक बाजार, इमामी गेट, सिंधी कालोनी, इब्राहीमगंज, टीला जमालपुरा, आरिफ नगर, नारियलखेड़ा, कैंची छोला, शाहजहांनाबाद, कोहेफिजा, लालघाटी, खानूगांव का इलाका आता है
मौजूदा मतदाता - महिला- 1 लाख 13 हजार 907
मौजूदा मतदाता - पुरुष- 1 लाख 20 हजार 574
कुल मौजूदा मतदाता= 2 लाख 34 हजार 489
साक्षरता का प्रतिशत - (2011 के अनुसार)- 80.37 %
धार्मिक समीकरण - (2011 के अनुसार) हिंदू (%)- 59 %,
मुस्लिम (%)- 38%
अन्य (%)- 3%
आर्थिक समीकरण- मतदाताओं की आर्थिक गतिविधियां मिलीजुली हैं। वैश्य व जैन समुदाय के वोटर मुख्यत: व्यवसायी हैं। इस वर्ग में कुछ मुस्लिम मतदाता भी शामिल हैं। कुल आबादी का करीब एक तिहाई नौकरीपेशा व सीमित संख्या में मजदूर वर्ग भी है।
विधानसभा सीट पर मतदान का ट्रेंड कब और कितना (सर्वाधिक और न्यूनतम मतदान) मतदान का ट्रेंड- सर्वाधिक मतदान 1993 में 76.26 फीसदी और न्यूनतम मतदान 1977 में 49.03 प्रतिशत रहा है।
विधानसभा क्षेत्र का इतिहास
1977 में हुआ पहला चुनाव, जनता पार्टी और सीपीआई में मुकाबला
– भोपाल उत्तर विधानसभा सीट पहली बार 1977 में बनी। इस सीट पर पहला विधानसभा चुनाव भी 1977 में ही हुआ, तब संयुक्त मध्यप्रदेश (छत्तीसगढ़ अलग नहीं) था और इस विधानसभा क्षेत्र का नंबर 230 हुआ करता था। छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद अब यह नंबर 150 हो गया है। यहां पहले विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला तब नई बनी जनता पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के बालकृष्ण गुप्ता के बीच हुआ था। इसमें जनता पार्टी के हामिद कुरैशी ने बालकृष्ण गुप्ता को 11 हजार 977 वोटों से हराया था। इमर्जेंसी के बाद हुए उस ऐतिहासिक चुनाव में भी 40.92 प्रतिशत वोट ही पड़े थे।
विधानसभा क्षेत्र की खास पहचान-
देर रात पटियेबाजी खास पहचान
यह क्षेत्र मुख्यत: पुराने भोपाल का व्यावसायिक और रिहाइशी इलाका है, जहां नवाबकालीन गंगा-जमुनी संस्कृति का असर अब भी दिखाई पड़ता है। इस इलाके के बड़े उद्योग जैसे कपड़ा मिल, पुट्टा मिल, आइस फैक्ट्री आदि बंद हो चुके हैं। इससे मजदूर आंदोलन लगभग समाप्त हो चुका है। ये क्षेत्र कभी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़ हुआ करता था। 1990 के बाद से यहां के सामाजिक समीकरण काफी बदल गए हैं। मतदाताओं का धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण हुआ है। विधानसभा क्षेत्र के चौक-जुमेराती, मंगलवारा, बुधवारा, तलैया, फतेहगढ़ और पीरगेट जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में देर रात गपशप के लिए होने वाली पटियाबाजी इसकी खास पहचान है।
विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक मिजाज
अब तक 10 में से 8 विस चुनाव में जीती कांग्रेस
1977 में पहली बार अलग विधानसभा सीट बनने के बाद से इस इलाके का राजनीतिक मिजाज कांग्रेस के पक्ष में ही रहा है। शुरू से लेकर अब तक हुए कुल 10 विधानसभा चुनाव में से आठ बार कांग्रेस प्रत्याशी ही जीतता आया है। केवल दो बार गैर कांग्रेसी प्रत्याशी जीते हैं। 1977 में जनता पार्टी के हामिद कुरैशी और 1993 में भारतीय जनता पार्टी के रमेशचंद्र शर्मा गुट्टू भैया यहां से चुनाव जीते थे। खास बात यह है कि हिंदू बहुल सीट होने के बाद भी भाजपा इसे जीतने में केवल एक बार ही कामयाब रही है। 1980 के विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के रसूल अहमद सिद्दीकी जीते। 1985 में भी उन्हीं को जीत हासिल हुई। 1990 में निर्दलीय आरिफ अकील जीते। उन्होंने कांग्रेस के रसूल अहमद सिद्दीकी को हराया था। दरअसल इस सीट से आरिफ टिकट मांग रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने नहीं दिया। नतीजतन आरिफ ने अपने दम पर चुनाव लड़ा और 1993 को छोड़कर हर विधानसभा चुनाव जीते। इस लिहाज से वो मप्र विधानसभा के अत्यंत वरिष्ठ विधायकों में हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव में भी आरिफ अकील को ही टिकट मिलने की पूरी संभावना है। वैसे भी हिंदू बहुल सीट से आरिफ अकील का लगातार जीतना इस बात का परिचायक है कि यहां वोट पार्टी के बजाए आरिफ के नाम पर ही ज्यादा पड़ते हैं। हिंदू समुदाय में भी आरिफ की अच्छी पकड़ है।
विधानसभा क्षेत्र की बड़ी चुनावी उठा-पटक
1990 में निर्दलीय आरिफ ने कांग्रेस के सिद्दीकी को हराया
इस सीट पर बड़ी चुनावी उठापटक दो ही बार दिखी। पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 1990 के चुनाव में आरिफ अकील ने कांग्रेस के दिग्गज नेता रसूल अहमद सिद्दीकी को हराया। वो तीसरे नंबर पर रहे। दूसरे नंबर पर भाजपा के रमेश शर्मा गुट्टू भैया रहे थे। आरिफ ने यह चुनाव महज 2863 वोटों से जीता था।
1993 में बीजेपी के गुट्टू भैया ने आरिफ को हराया
इस सीट पर दूसरा बड़ा घटनाक्रम 1993 के चुनाव में आरिफ अकील का हारना था। इसके पहले 1992 में भोपाल में भयंकर साम्प्रदायिक दंगे हुए थे। इसमें आरिफ अकील का नाम भी आया था। जिसके कारण इस सीट के हिंदुओं में काफी रोष था। 1993 के चुनाव में हिंदू समुदाय की भारी वोटिंग का परिणाम यह रहा कि भाजपा के रमेश शर्मा गुट्टू भैया 9667 वोटों से जीत गए, लेकिन इस नतीजे के बाद आरिफ ने अपनी छवि को बदला और वो दबंग सर्वहितैषी नेता के रूप में उभरे। परिणामस्वरूप भोपाल उत्तर आरिफ अकील और कांग्रेस का अजेय गढ़ बन चुकी है। भाजपा को यहां प्रत्याशियों का टोटा है। भाजपा ने पिछले दो विधानसभा चुनावों में मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट देकर नया प्रयोग किया। 2013 के विस चुनाव में आरिफ बेग और 2018 के विस चुनाव में दिवंगत रसूल अहमद सिद्दीकी की बेटी फातिमा रसूल अहमद सिद्दीकी को भाजपा ने मैदान में उतारा, लेकिन आरिफ के आगे कोई नहीं टिक सका। एक बार भाजपा नेता रामेश्वर शर्मा ने भी यहां से किस्मत आजमाई, लेकिन बाद में वो हुजूर सीट से चुनाव लड़े और जीते भी। इसी तरह एक बार आलोक शर्मा को भी टिकट दिया गया, लेकिन वो भी हारे। हालांकि बाद में वो भोपाल के महापौर चुने गए।
विधानसभा क्षेत्र के मुद्दे
बुनियादी सुविधाएं, ट्रैफिक की समस्या
क्षेत्र के कई पुराने बंद पड़े उद्योगों की खाली पड़ी जमीनों का उपयोग, क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क, पानी आदि की समस्या। नवाब के जमाने की कई इमारतें अब जर्जर हालत में हैं, उनका रखरखाव। सबसे बड़ी समस्या ट्रैफिक और संकरे रास्तों की है। यह पूरा इलाका बेहद घना बसा है।
पिछले चुनाव (2018) में समीकरण - मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में रहा। इस सीट पर धार्मिक ध्रुवीकरण वैसा नहीं हो पाता, जैसा दूसरी सीटों पर होता है। भाजपा ने यहां मुस्लिम प्रत्याशी फातिमा रसूल सिद्दीकी को टिकट देकर मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगानी चाही, लेकिन नाकाम रही।