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Akbar imposed tax on Prayag Photograph: (thesootr)
Prayagraj. तीर्थराज प्रयागराज में 144 वर्षों में होने वाले महाकुंभ का इतिहास भारतीय संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है। इस अद्भुत मेले से जुड़े कई किस्से और घटनाएं हमारे अतीत की झलक दिखाते हैं। दस्तावेजों से पता चलता है कि प्रयागराज महाकुंभ भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक ताने-बाने का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी परंपराओं ने समय के साथ विविधता और समृद्धि हासिल की है। 'द सूत्र' अपने पाठकों के लिए लेकर आया है ऐसी ही रोचक जानकारियां...
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अकबर और कुंभ पर टैक्स
16वीं शताब्दी में मुगल सम्राट अकबर ने कुंभ मेले पर टैक्स लगाया, जिसे बाद में हिंदू समुदाय की मांग पर हटा दिया। डॉ. धनंजय चोपड़ा की किताब भारत में कुंभ के अनुसार, अकबर ने तीर्थ पुरोहितों को माघ मेले के आयोजन के लिए ढाई सौ बीघा जमीन भी दान में दी थी। वहीं, 1822 में अंग्रेजों ने तीर्थयात्रियों से सवा रुपए का टैक्स वसूलना शुरू किया, जो उस समय के लिए बड़ी राशि थी। इस भारी टैक्स के कारण कुंभ में सन्नाटा छा गया। बाद में 1840 में गवर्नर जनरल लॉर्ड ऑकलैंड ने तीर्थयात्रियों से वसूले जाने वाले टैक्स को खत्म कर दिया, लेकिन व्यापारियों पर टैक्स जारी रहा। 1882 में अंग्रेज सरकार ने कुंभ पर 20,228 रुपए खर्च किए, जबकि उनकी कमाई 49,840 रुपए रही थी।
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7वीं सदी में भी होते थे आयोजन
चीनी यात्री ह्यून त्सांग 7वीं शताब्दी में भारत आए थे। उन्होंने अपनी किताब SI-YU-KI में लिखा कि कन्नौज के राजा हर्षवर्धन हर 5 साल में माघ के महीने में प्रयागराज के संगम पर अपनी संपत्ति दान करते थे। हालांकि ह्यून त्सांग ने कुंभ पर्व का सीधा उल्लेख नहीं किया, लेकिन उनके विवरण से पता चलता है कि उस समय भी प्रयागराज में धार्मिक आयोजन होते थे।
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...जब नागा और बैरागी संन्यासियों में हुआ युद्ध
डॉ. जादूनाथ सरकार की किताब 'ए हिस्ट्री ऑफ दसनामी नागा संन्यासीज' में लिखा है कि 1253 में हरिद्वार के कुंभ मेले में नागा और बैरागी संन्यासियों के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में शैव नागा संन्यासियों ने वैष्णव बैरागियों को हराया। यह घटना कुंभ में धार्मिक समुदायों के टकराव की अनोखी झलक देती है।
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चैतन्य महाप्रभु ने किया था स्नान
1514 में बंगाल के आध्यात्मिक गुरु चैतन्य महाप्रभु ने प्रयागराज में कुंभ के दौरान संगम पर स्नान किया। डॉ. डी.पी. दुबे की किताब कुंभ मेलाः पिलग्रिमेज टू द ग्रेटेस्ट कॉस्मिक फेयर में इसका उल्लेख है। वहीं, 15वीं शताब्दी में सरस्वती गंगाधर की मराठी रचना गुरुचरित्र में नासिक में सिंहस्थ कुंभ के आयोजन का जिक्र मिलता है। इससे यह साफ है कि इस काल तक कुंभ प्रमुख धार्मिक आयोजन बन चुका था।