Sidhi Lok Sabha seat सीधी लोकसभा सीट
भोपाल. विंध्य अंचल की सीधी लोकसभा सीट से इस बार रीति पाठक मैदान में नहीं हैं। रीति विधायक बन गई हैं। उनकी जगह पार्टी ने राजेश मिश्रा को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने यहां से कमलेश्वर पटेल को मैदान में उतारा है। वहीं, बीजेपी के राज्यसभा सदस्य रहे अजय प्रताप सिंह भी मैदान में आ गए हैं। बीजीपे को मोदी लहर का भरोसा है। वोटर शांत है, लेकिन राजनीति के जानकार बता रहे हैं कि बीजेपी के लिए सीधी लोकसभा की डगर कमलेश्वर पटेल टेडी कर सकते हैं। अजय प्रताप सिंह के गोंगपा के टिकट पर मैदान में कूदने से मुकाबला रोचक हो गया है। वजह, यहां पर आदिवासी मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है। ठाकुर समाज के भी निर्णायक वोट हैं। इनके सहारे अजय प्रताप हार-जीत के समीकरण बनाने-बिगाड़ने की कोशिश में हैं।
ये बन रहे समीकरण
बीजेपी प्रत्याशी बनाए गए राजेश मिश्रा कांग्रेस के साथ कड़े मुकाबले में फंसते दिख रहे हैं। कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे कमलेश्वर पटेल उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं। वजह दो हैं। पहला, क्षेत्र में पटेल सहित पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की अच्छी खासी तादाद है। दूसरी वजह, भाजपा के राज्यसभा सदस्य अजय प्रताप सिंह का पार्टी से बगावत कर मैदान में उतरना। जहां तक सीधी सीट के राजनीतिक मिजाज का सवाल है तो 2008 के परिसीमन के बाद यह अनारक्षित हुई है। तब से सीट पर भाजपा का कब्जा है। 2009 का पहला चुनाव गोविंद मिश्रा जीते थे। इसके बाद 2014 और 2019 के दाे चुनाव भाजपा की ही रीति पाठक जीतीं। 2008 से पहले सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित थी। तब कभी कांग्रेस और कभी भाजपा जीतती थी।
सामाजिक वोट का बंटवारा
सीधी में भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशी बदलने से राजनीतिक सीमकरण भी बदले हैं। जैसे अब तक भाजपा को सिंगरौली क्षेत्र में एकतरफा वोट मिल रहा था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। वजह, कांग्रेस के कमलेश्वर पटेल का इस क्षेत्र में अच्छा असर है। उनके परिवार के लोग यहां रहते हैं और रिश्तेदारियां भी हैं। कमलेश्वर यहां काफी सक्रिय रहते हैं। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने समर्थन किया तो क्षत्रिय और उनके प्रभाव वाला वोट भी भाजपा को नहीं मिलेगा। वह कांग्रेस के पास जाएगा। बचा खुचा अजय प्रताप सिंह ले जा सकते हैं। इसके अलावा सीधी क्षेत्र में पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है। कमलेश्वर इस अंचल में पिछड़ों के नेता के तौर पर उभरे हैं। कमलेश्वर के पिता स्व इंद्रजीत कुमार का क्षेत्र में हर कोई सम्मान करता है। इसमें काेई शक नहीं कि भाजपा के राजेश मिश्रा साफ सुथरी छवि के हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता उनकी बड़ी ताकत है। क्षेत्र में भाजपा का स्थाई वोट बैंक है। हालांकि राजेश बसपा से विधानसभा का एक चुनाव लड़कर हार चुके हैं। वे बाद में भाजपा में आए। बहरहाल, मुकाबला दिलचस्प, रोचक और कड़ा होने के आसार हैं।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हारी
चार माह पहले नवंबर 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी 2018 वाली स्थिति बहाल रखी है। पहले भी उसके पास 8 में से 7 सीटें थीं, अब भी हैं। 2018 में क्षेत्र की आठ में से सिर्फ एक सीट सिहांवल में कांग्रेस के कमलेश्वर पटेल जीते थे, जबकि 2023 में कांग्रेस के अजय सिंह चुरहट की सीट जीते। कांग्रेस के हालात पिछली बार जैसे इस मायने में भी हैं कि 2018 में अजय सिंह विधानसभा चुनाव हारे थे और 2019 में कांग्रेस ने उन्हें लोकसभा का प्रत्याशी बनाया था। इसी तरह इस बार 2023 में विधानसभा हारे कमलेश्वर को कांग्रेस ने लोकसभा का टिकट दे दिया। अजय सिंह को 2 लाख 86 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से पराजय का सामना करना पड़ा था। कमलेश्वर पटेल कैसा प्रदर्शन करते हैं। यह 4 जून को मतगणना के दिन पता चल सकेगा।
अजा-जजा, ब्राह्मण, पिछड़ों का दबदबा
परिसीमन से पहले सीधी अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित थी, इससे पता चलता है कि क्षेत्र में आदिवासी मतदाताओं की तादाद ज्यादा है। क्षेत्र की 8 में से 3 विधानसभा सीटें इस वर्ग के लिए आरक्षित हैं। अनुसूचित जाति वर्ग को मिला कर यह ताकत और बढ़ जाती है। इस वर्ग के लिए भी एक विधानसभा सीट आरक्षित है। दोनों वर्ग के मतदाताओं की तादाद 4 लाख के आसपास बताई जाती है। इसके बाद ब्राह्मण और पिछड़े वर्ग के लगभग बराबर 3-3 लाख मतदाता हैं। पिछड़ों में पटेलों के अलावा काछी और यादव बड़ी तादाद में हैं। ब्राह्मणों के एकमुश्त वोट भाजपा के पाले में जाने की संभावना है। पटेलों के साथ कुछ अन्य पिछड़ी जातियां कांग्रेस के साथ जा सकती हैं। भाजपा के बागी गोंगपा प्रत्याशी अजय प्रताप सिंह क्षत्रियों और आदिवासियों के कुछ वोट ले जा सकते हैं।