कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आमने-सामने की बहस की चुनौती स्वीकार ली है। शुक्रवार को देश के पूर्व न्यायाधीशों के सार्वजनिक रूप से बहस करने के निमंत्रण को स्वीकार करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि मैं 100% किसी से भी डिबेट करने के लिए तैयार हूं। राहुल ने यह भी जोड़ा कि मैं जानता हूं कि प्रधानमंत्री मुझसे डिबेट नहीं करेंगे। राहुल गांधी शुक्रवार को संविधान पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। हालांकि इस बहस के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उनके ऑफिस की ओर से किसी तरह की प्रतिक्रिया अभी तक नहीं आई है। आइए जानते हैं पीएम नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच आमने-सामने की डिबेट का यह मामला आखिर क्या है…
इसी मुद्दे पर पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार हरीश दिवेकर का कॉलम NEWS STRIKE
रिटायर्ड जजों ने दिया है निमंत्रण
दरअसल एक- दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी को राष्ट्रहित में एक- दूसरे के सामने बहस करने के लिए आमंत्रित किया गया है। सुप्रीम कोर्ट (SC) और दिल्ली हाईकोर्ट (HC) के पूर्व न्यायाधीशों ने 2024 के लोकसभा चुनावों के बीच में खुली बहस के लिए दोनों को आमंत्रित किया है। एक प्रकार से यह दोनों को खुली बहस की चुनौती है।
लिखा- देशहित में ऐसी बहस अच्छी
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन लोकुर और एपी शाह ने यह निमंत्रण भेजा है। इसके अलावा द हिंदू के पूर्व संपादक एन राम भी पत्र लिखने वालों में शामिल हैं। मोदी और राहुल को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि बहस का ये प्रस्ताव गैर-पक्षपातपूर्ण और राष्ट्र के व्यापक हित में है। गैर-पक्षपातपूर्ण और गैर-व्यावसायिक मंच पर खुली बहस से देश के नागरिकों को बहुत लाभ होगा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत होगी। उन्होंने अपने खुले पत्र में लिखा कि "यह अधिक प्रासंगिक है, क्योंकि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। पूरी दुनिया हमारे चुनावों पर उत्सुकता से नजर रखती है। इसलिए, इस तरह की सार्वजनिक बहस न केवल जनता को शिक्षित करके, बल्कि एक स्वस्थ और जीवंत लोकतंत्र की सच्ची छवि पेश करने में भी बड़ी मिसाल कायम करेगी।"
दोनों दल लगा रहे एक- दूसरे पर आरोप
इस पत्र में लिखा है कि "प्रधानमंत्री ने आरक्षण, अनुच्छेद 370 और धन पुनर्वितरण पर कांग्रेस को सार्वजनिक रूप से चुनौती दी है। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने संविधान के संभावित बदलाव, चुनावी बांड योजना और चीन के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया पर प्रधानमंत्री से सवाल किया है, और उन्हें सार्वजनिक बहस की चुनौती भी दी है। दोनों पक्षों ने अपने- अपने घोषणापत्रों के साथ- साथ सामाजिक न्याय की संवैधानिक रूप से संरक्षित योजना पर उनके रुख के बारे में एक-दूसरे से सवाल पूछे हैं।''
चिट्ठी में जताई चिंता भी
पत्र में दोनों ओर से दी गई प्रतिक्रिया को लेकर चिंता भी व्यक्त की गई है। उन्होंने लिखा कि हम चिंतित हैं कि हमने दोनों पक्षों से केवल आरोप और चुनौतियां ही सुनी हैं, और कोई सार्थक प्रतिक्रिया नहीं सुनी है। जैसा कि हम जानते हैं, आज की डिजिटल दुनिया गलत सूचना, गलत बयानी और हेरफेर की प्रवृत्ति रखती है। इन परिस्थितियों में, यह सुनिश्चित करना मौलिक रूप से महत्वपूर्ण है कि जनता को बहस के सभी पहलुओं के बारे में अच्छी तरह से शिक्षित किया जाए, ताकि वे मतपत्रों में एक सूचित विकल्प चुन सकें, यह हमारे चुनावी मताधिकार के प्रभावी अभ्यास के लिए महत्वपूर्ण है।