Lok Sabha Election Results 2024 : लोकसभा चुनाव 2024 ( lok sabha election 2024 ) के नतीजों की तस्वीर अब साफ होती जा रही है, जिसमें बीजेपी ( BJP ) के नेतृत्व वाले एनडीए सरकार ( NDA government ) बनती नजर आ रही है। हालांकि बीजेपी इस बार बहुमत के आंकड़े से काफी दूर नजर आ रही है, उसे सहयोगी दलों का हाथ पकड़कर ही सत्ता की सीढ़ियां चढ़ना पड़ेंगी। इन दिलचस्प चुनाव नतीजों के बीच हम आपको राजनीति के उस इतिहास की एक तस्वीर दिखाना चाहते हैं, जब लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी को ही सत्ता से दूर रहना पड़ा था।
फैसले नैतिकता के आधार पर
अब जो राजनीतिक किस्से और घटनाक्रम हम आपको बताने जा रहे हैं, वो सिर्फ किस्से नहीं हैं बल्कि ये भी बताते हैं कि राजनीति में हर बार धोखा या फिर जोड़-तोड़ नहीं होता है। कई बार राजनीतिक दल या फिर कोई बड़े नेता नैतिकता के आधार पर भी फैसला लेते हैं। ऐसा ही कुछ 1989 के चुनावों के नतीजों के बाद भी हुआ था।
सबसे ज्यादा सीटों के बाद भी कांग्रेस ने नहीं बनाई सरकार
1984 के बाद देश में 1989 में लोकसभा चुनाव हुए। लेकिन इन चुनावों में कांग्रेस ( Congress ) को काफी बड़ा झटका लगा था, कांग्रेस को 200 से ज्यादा सीटों का नुकसान हुआ और वो 197 सीटों पर सिमट गई, हालांकि इस बार भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी। कांग्रेस के बाद दूसरे नंबर पर 143 सीटों के साथ जनता दल था, क्योंकि कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी, ऐसे में तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने कांग्रेस को सरकार बनाने का न्योता दिया था।
जनता दल ने किया पेश दावा
राष्ट्रपति की तरफ से न्योता दिए जाने के बावजूद राजीव गांधी ( Rajiv Gandhi ) ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और कहा कि जनादेश उनके खिलाफ आया है। कांग्रेस ने सबसे बड़ी पार्टी होते हुए भी सरकार बनाने से इनकार कर दिया। इसके बाद जनता दल ने सरकार बनाने का दावा पेश किया जिसके बाद बीजेपी और वामपंथी दलों के समर्थन से सरकार बनाई गई और वीपी सिंह को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाया गया। हालांकि ये सरकार 11 महीने ही चल पाई और बीजेपी ने अपने हाथ पीछे खींच लिए थे।
1996 में बीजेपी सरकार नहीं बना पाई
अब 1989 में कई तरह के उलटफेर के बाद 1996 के चुनाव में भी कुछ ऐसा ही देखा गया, जब बीजेपी सबसे बड़ा दल होते हुए भी सरकार नहीं बना पाई थी। इस चुनाव में बीजेपी ने 161 सीटों पर जीत दर्ज की थी, वहीं कांग्रेस को 140 सीटें मिलीं, बीजेपी ने सबसे ज्यादा सीटें होने पर सरकार बनाने का दावा पेश किया और अटल बिहारी वाजपेयी ( Atal Bihari Vajpayee ) ने प्रधानमंत्री की शपथ भी ले ली, हालांकि बीजेपी बाकी दलों का समर्थन नहीं जुटा पाई और महज 13 दिन बाद सरकार गिर गई।
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इसके बाद एचडी देवेगौड़ा ने संयुक्त मोर्चा गठबंधन के साथ सरकार बनाई, लेकिन ये सरकार भी 18 महीने तक ही टिकी। इसके बाद इंद्र कुमार गुजराल का दौर आया और कुछ ही वक्त बाद 1998 में मध्यावधि चुनाव हो गए। कुल मिलाकर 1996 में दूसरी बार उस दल की सरकार नहीं बन पाई, जिसे चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं।
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