बीजेपी नेतृत्व दावा कर रहा है कि इस बार लोकसभा के चुनाव (Loksabha Election) में वह 400 के पार सीटें जीतेगा। इसके लिए वह अपनी सरकार के जन हितैषी व देश के विकास और अन्य उपलब्धियों की जानकारी दे रहा है। इस दावे की असलियत तो लोकसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद ही क्लियर होगी। लेकिन हम आपको बताते हैं कि 17वीं लोकसभा ( 17th Lok Sabha ) में पिछले पांच साल के कार्यकाल के दौरान एनडीए सरकार ने कौन से महत्वपूर्ण निर्णय लिए। इनके आधार पर ही सरकार दावा कर रही है कि वह तीसरी बार भी संसद में चुनकर आएगी।
लोकसभा में 22 विधेयक पारित किए गए
पहले हम लोकसभा के पिछले पांच के कार्यकाल पर बात करते हैं। इस लोकसभा के आखिरी सेशन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि उनकी सरकार का ‘सुधार, प्रदर्शन और परिवर्तन पिछले 5 वर्षों से मंत्र रहा है।’ यह मंत्र आगे के दरवाजे खोलेगा। इस पर भी बात होगी, लेकिन एक विशेष जानकारी यह है कि 17वीं लोकसभा के कार्यकाल में कामकाज का प्रतिशत 97 रहा। इनमें से सात सेशन का कार्यकाल 100 प्रतिशत माना गया। इस पांच साल के दौरान सरकार ने कुल 221 विधेयक पारित किए, जो पिछली लोकसभा में 180 अधिक थे। पांच साल में सदन की 274 बैठकें आयोजित की गईं और 16 प्रतिशत विधेयकों को जांच के लिए स्थायी समितियों को भेजा गया। अब हम आपको बताते हैं लोकसभा में लिए गए महत्वपूर्ण निर्णय और पारित किए गए विधेयक, जिन्होंने पूरे देश को अपने प्रभाव में लिया।
कश्मीर में धारा 370 का समापन
17वीं लोकसभा में मोदी सरकार का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रभाव को खत्म करना रहा। इस विधेयक में सरकार ने राज्य को 2 हिस्सों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया और दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था। सीधी सी बात यह रही कि इस राज्य का विशेष दर्जा खत्म कर दिया। यह बीजेपी का सबसे बड़ा मुद्दा था, जिसे लाख विरोध के बावजूद उसने पूरा कर दिया।
चर्चित नागरिकता संशोधन अधिनियम ( CAA ) लागू किया गया
इस कानून को हाल ही में नोटिफाई यानि लागू किया गया है, लेकिन इसे 9 दिसंबर 2019 को पारित किया गया था। इस अधिनियम में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अवैध प्रवासियों को नागरिकता के लिए पात्र बनाने के लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में बदलाव किया गया था। तब भारी विरोध के चलते सरकार इसे लागू नहीं कर पाई थी। लेकिन माहौल अनुकूल होते ही उसने इसे लागू किया। इस बार विरोध तो हो रहा है, लेकिन वह फीका दिख रहा है।
तीन तलाक, महिला सशक्तिकरण और ट्रांसजेंडर का हित
अपने पांच साल के कार्यकाल में मोदी सरकार ने देश की महिलाओं व ट्रांसजेंडरों के हित में कई कानून पारित किए। मुस्लिम महिलाओं के लिए सबसे बड़ी बाधा तीन तलाक बिल को निरस्त कर दिया गया। इसके विरोध को सरकार ने मजबूती से दरकिनार किया। सदन में महिला आरक्षण विधेयक (नारी शक्ति वंदन अधिनियम ) पारित कर लोकसभा, राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित कर दी गईं। इसे साल 2029 के लोकसभा चुनाव से लागू किया जाएगा। सदन में ट्रांसजेंडरों की समानता और उनके अधिकार से जुड़े मसले पारित किए गए। खास बात यह है कि इस सरकार ने अपने कार्यकाल में एक ट्रांसजेंडर को पद्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया।
कृषि कानून पारित किए लेकिन वापस लेना पड़ा
सरकार ने यह कहकर लोकसभा में किसानों से जुड़े तीन विधेयक पारित किए थे कि इनके लागू होने से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, वे स्वयं ही अपनी खेती का मूल्य तय कर सकेंगे, साथ ही आढ़तियों के चंगुल से भी निकल जाएंगे। लेकिन इन कानूनों का उत्तर भारत में सबसे अधिक विरोध हुआ, जिसके बाद सरकार ने अनिश्चितकाल के लिए इन विधेयकों को वापस ले लिया।
डिजिटल सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाया गया
डिजिटल सुरक्षा का मसला देश में पिछले सालों से लचर चल रहा था, जिस कारण साइबर अपराधों में लगातार और तेजी से बढ़ोतरी हो रही थी। इसे रोकने के लिए सरकार संसद में डिजिटल सुरक्षा कानून लेकर आई और उसे लागू भी कर दिया। इसे साइबर कानून, इंटरनेट कानून या डिजिटल कानून भी कहा गया। इसमें ऑनलाइन कम्युनिकेशन, ई-कॉमर्स, डिजिटल गोपनीयता और साइबर अपराधों की रोकथाम के लिए प्रभावी नियम बनाए गए हैं। सरकार का यह भी कहना था कि देश की सुरक्षा के लिए यह कानून बेहद आवश्यक है।
कई निर्रथक कानून हटाए गए और जोड़े गए
सरकार ने 17वीं लोकसभा में भारतीय संविधान में से ऐसी धाराओं को निरस्त किय जो अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही थीं और उनकी उपयोगिता खत्म हो गई थी। साथ इनमें से कई धाराएं देशवासियों के अधिकारों का भी हनन कर रही थी। सरकार ने जन विश्वास एक्ट’ के तहत 180 से अधिक आपराधिक प्रावधानों को खत्म किया। इस दौरान सरकार ने अपराधों से जुड़े तीन विधेयक भी पारित किए, जिनके लागू होने से मुकदमों का निपटारा जल्द होगा, आम नागरिक पर कानूनी दबाव कम होगा। ये विधेयक (कानून) तीन पुराने आपराधिक कानून की की जगह लागू किए गए हैं।
चुनाव आयोग से जुड़े कानून में बदलाव
इस लोकसभा में मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर पुराने कानून में बदलाव किया गया। नए कानून के तहत देश के मुख्य न्यायाधीश की जगह एक केंद्रीय मंत्री को नियुक्त करके नियुक्ति पैनल की संरचना में बड़ा बदलाव कर दिया गया। इसकी विपक्षी ने कड़ी आलोचना की लेकिन सरकार अपने निर्णय पर अड़ी रही और हाल ही में उसने दो आयुक्तों की नियुक्ति में इसका उपयोग भी किया है।
सांसदों ने बड़ी मिसाल कायम की
कोरोना महामारी से उपजे संताप और उससे निपटने का कुछ असर इस लोकसभा में देखने को मिला। जब महामारी का दौर चल रहा था तो उस काल में देश की जरूरतों को देखते हुए सांसदों से सांसद निधि छोड़ने का प्रस्ताव लाया गया, जिसे सर्वसम्मति से मंजूर कर लिया गया। इस दौरान सांसदों ने अपने वेतन में 30 प्रतिशत की कटौती का प्रस्ताव भी मान लिया। इसके अलावा संसद की कैंटीन में सांसदों को सस्ती दरों पर भोजन की पुरानी परंपरा को भी खत्म कर दिया, जिसका कोई विरोध नही हुआ।
अब देखना होगा कि 17वीं लोकसभा का यह कामकाज या सरकार के निर्णय या कहें कि उसकी उपलब्धियां उसे 18वीं लोकसभा का रास्ता खोलते हैं। क्योंकि अपने इस कार्यकाल के बारे में पीएम मोदी के कह चुके हैं कि ये 5 वर्ष देश में रिफॉर्म, परफॉर्म एवं ट्रांसफॉर्म के रहे हैं।
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