मुरैना. शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर चंबल के जंगलों में बटेश्वरा मंदिर समूह (Batukeshwar Mahadev Temple Group) है। यहां 200 मंदिरों की श्रृंखला हैं, इनमें से 40 मंदिर सहेजे जा चुके हैं। बाकी के 160 मंदिर में से कुछ मंदिर पत्थरों का ढेर बनकर बिखरे पड़े हैं। इन मंदिरों के वैभव को लौटाने का काम दोबारा शुरू हुआ है। इसके लिए इन्फोसिस (Infosys) ने 4 करोड़ रुपए का फंड दिया है। इस फंड से पत्थरों के मलबे में पड़े मंदिरों का जीर्णोद्धार (restoration of temples) किया जा रहा है। 28 जनवरी को पुरातत्व विभाग (Archaeological Department) की केंद्रीय महानिदेशक वी विद्यावती ने भूमिपूजन कर काम शुरू कराया।
सबसे पहले विष्णुमंदिर का जीर्णोद्धार: ये मंदिर भगवान शिव, विष्णु और माता सती को समर्पित हैं। इनमें से ज्यादातर मंदिर जमींदोज हो चुके हैं। जबकि कुछ मंदिर का ढांचा गिरने वाला है। चार दशक पहले इन मंदिरों को सहेजने का काम शुरू किया गया था। लेकिन फंड की कमी के चलते काम को रोकना पड़ा। अब रतना टाटा की कंपनी इंफोसिस की मदद से दोबारा इन्हें सहेजने का काम शुरू हुआ है। वर्तमान में विष्णु मंदिर के गुंबद पर पत्थरों का ढेर सा लगा है। विष्णु मंदिर और मठ के जीर्णोद्धार में कम से कम दो साल का समय लगेगा। इसके बाद अन्य मंदिरों के एक-एक पत्थर को चुन-चुनकर उन्हें फिर से खड़ा किया जाएगा। संभावना है कि अब ओर भी शिवमंदिरों को निकालकर सहेजा जाएगा।
8वीं-10वीं सदी के हैं मंदिर: गुर्जर-प्रतिहार राजाओं (Gurjara-Pratihara dynasty) ने 8वीं-10वीं सदी में बटेश्वरा मंदिरों का निर्माण कराया था। समूह में 200 मंदिर हैं। इनमें से कुछ मंदिर को पुरातत्व सर्वेक्षण ने फिर से खड़ा किया है। कुछ मंदिर जर्जर अवस्था में है। जबकि कुछ मंदिरों का मलबा पड़ा हुआ है। हर मंदिर में शिवलिंग था। प्रमुख शिवलिंग सबसे बड़े मंदिर में है, जहां आज भी नियमित पूजा-पाठ होती है।
ये लगभग 50 बीघा यानी 10 हेक्टेयर के एरिया में फैले हुए हैं।
कई रहस्यों से घिरा है यह मंदिर: पर्यटकों के लिए स्थान काफी जिज्ञासा से भरा होता है, यह स्थान कई रहस्यों से भरा हुआ है। यहां आने वाले लोगों के मन में एक ही सवाल होता है आखिर एक ही स्थान पर इतने मंदिर क्यों बनवाए गए? इसके अलावा सभी मंदिरों में शिवलिंग एक जैसे क्यों है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह शिवलिंग साधना के लिए बनवाएं गए थे। हालांकि इस बात की पुख्ता जानकारी नहीं मिलती है।
वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना: इस मंदिर की कलाकृति आठवीं शताब्दी के मिलते हैं। मंदिर की वास्तुकला कारीगरी की उत्कृष्ट नमूना है। मुगल काल के दौरान कई मंदिरों को तोड़ दिया गया। इसके अलावा मंदिर के पास हुए उत्खनन की वजह से भी कई मंदिर गिर गए। सबसे पहले साल 1882 में इस स्थान को अलेक्जेंडर कनिंघम ने चिन्हित किया था। इसके बाद प्रोफेसर माइकल मीस्टर ने यहां सर्वे किया। साल 2005 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने पुरातत्व अधिकारी केके मोहम्मद के नेतृत्व में मंदिरों का संरक्षण शुरू किया गया।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने डायरेक्टर ने बताया कि इंफोसिस फाउंडेशन ने बटेश्वरा मंदिर समूह के संरक्षण व जीर्णोद्धार कार्य के लिए बजट दिया था। इसी से यह काम किया जा रहा है। सबसे पहले विष्णु मंदिर और मठ का जीर्णोद्धार होगा। उसके बाद अन्य मंदिरों का जीर्णोद्धार होगा। यह बहुत सुंदर स्थल है, इससे क्षेत्र में पर्यटन का विकास होगा।