दीपेंद्र राजपूत । भोपाल. राजधानी भोपाल सहित प्रदेश के 14 जिलों की आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं (Aganbadi Workers) के मानदेय (Mandey Ghotala) की 26 करोड़ रुपये से ज्यादा राशि महिला एवं बाल विकास विभाग (WCD) के कंप्यूटर ऑपरेटर्स समेत 94 लोगों के निजी खाते में डालकर गबन की गई है। ये कोई नया खुलासा नहीं है बल्कि यह मामला 3 साल पहले उजागर हो चुका है। लेकिन इस मामले की जांच अब तक अधर में है। विभाग के जिन जिम्मेदारों को मामले की जांच सौंपी गई उन्होंने सतही जांचकर मामले को निराधार और फर्जी बताकर जांच ही बंद कर दी गई। लेकिन मामले में दोबारा शिकायत होने के बाद नए सिरे से जांच शुरू हुई और घोटाले की परतें खुलीं। विभाग और एजीएमपी (AGMP) की जांच के बाद पिछले माह भोपाल के जहांगीराबाद थाने में 94 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। लेकिन हैरानी की बात है कि पुलिस ने अभी तक संबंधित आरोपियों से पूछताछ भी शुरू नहीं की है।
मानदेय की राशि निकालकर निजी खातों में डाली
दरअसल, प्रदेश के महालेखाकार (Account General) की टीम ने यह बड़ी गड़बड़ी साल 2018 में पकड़ी थी। महालेखाकार की जांच में सामने आया कि मई 2014 से दिसंबर 2016 के बीच भोपाल में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाओं के मानदेय मद में 3.30 करोड़ रुपये निकालकर विभागीय कर्मचारियों के रिश्तेदारों के बैंक खातों में जमा कर सरकारी राशि का गबन किया गया। इसके बाद भोपाल में आगनबाड़ी भवनों के किराया मद, यात्रा भत्ता और फ्लेक्सी फंड की राशि के रूप में 17.54 लाख रुपये के साथ-साथ पोषण आहार मद की राशि के 6 करोड़ 82 लाख रुपये निकालकर निजी बैंक खातों में जमा किए गए। इसके अलावा आंगनवाड़ी केंद्रों के अन्य कई मदों की राशि से 3 करोड़ 69 लाख रुपये का गबन किया गया।
14 जिलों में 26 करोड़ रुपये की राशि का गबन
कोष एवं लेखा विभाग के आयुक्त ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में बताया कि परियोजना अधिकारियों और जिला कार्यक्रम अधिकारियों ने फर्जी दस्तावेज बनाकर 5 करोड़ रुपये फर्जी खातों में जमा कर गबन किया है। इसमें परियोजनाओं के डाटा एंट्री ऑपरेटर्स, विभागीय कर्मचारियों और उनके रिश्तेदारों के बैंक खातों में न सिर्फ भोपाल (Bhopal) बल्कि दूसरे जिलों की राशि जमा कर गबन किया गया। ऐसे गबन सिर्फ भोपाल (WCD Bhopal) में ही नहीं बल्कि प्रदेश के 14 जिलों जैसे रायसेन (Raisen), होशंगाबाद (Hoshangabad), डिंडोरी (Dindori), खरगोन, मुरैना (Morena), राजगढ़ (Rajgarh), सीहोर (Sehore), शहडोल (shahdol), उज्जैन (Ujjain) के अलावा और भी कई जिले शामिल हैं। इस पूरे घोटाले में गबन की राशि 26 करोड़ रुपये से ज्यादा है।
विभाग के अफसरों ने आरोपियों को क्लीनचिट दी
घोटाले एवं गड़बड़ियों के लिए चर्चित विभाग में बड़ी आर्थिक अनियमितता उजागर होने के बाद आरोपी कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी थी। बड़े घोटाले (Scam) के लिए जिम्मेदार दोषियों की पहचानकर उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचाना था। लेकिन असल में जांच और कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हुई। आर्थिक घोटाला सामने आने के बाद महिला एवं बाल विकास के सीनियर अफसरों की एक के बाद एक 6 अलग-अलग टीमों से जांच कराई गई। लेकिन सभी ने शिकायत को झूठा और निराधार बता दिया। इस टीम में मुख्य अधिकारियों के तौर पर जांच तत्कालीन कलेक्टर निशांत वरवड़े (Nishant Varvade), संभागीय संयुक्त संचालक स्वर्णिमा शुक्ला, उप संचालक ज्योति श्रीवास्तव और वित्त सलाहकार राजकुमार त्रिपाठी ने की। लेकिन इन सभी ने शिकायत को निराधार बताते हुए आरोपियों को क्लीनचिट दे दी।
मामले को लेकर जब द सूत्र की टीम ने स्वर्णिमा शुक्ला और राजकुमार त्रिपाठी से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने आधिकारिक तौर पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। लेकिन अनौपचारिक बातचीत करने के लिए तैयार हो गए। द सूत्र ने दोनों अधिकारियों का स्टिंग ऑपरेशन किया। जिसमें दोनों ने जांच में शिकायत और आरोपों को सही बताया।
एजीएमपी के दखल के बाद छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई
जब महालेखाकार ने मामले में दखल दिया तो एक बार फिर नए सिरे से जांच हुई। आनन-फानन में जांच पूरी करने के लिए विभाग के 3 सहायक संचालक, 5 सीडीपीओ और 6 लेखापालों को सस्पेंड कर दिया गया। साल 2016 से लेकर साल 2019 तक मामले में 16 लोगों को सस्पेंड किया गया। विभाग के सूत्रों के मुताबिक इस मामले में अभी तक सिर्फ क्लर्क स्तर के 4 छोटे कर्मचारियों को बर्खास्त किया गया है। लेकिन बाकी आरोपी कर्मचारी अभी भी सस्पेंड चल रहे हैं और इन्हें जीवन निर्वाह भत्ते के नाम पर सरकार इन सभी पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर चुकी है। सबसे बड़ा सवाल ये है कि ट्रेजरी के सहयोग के बिना इतने सालों तक इतनी बड़ी राशि का गबन होते रहना संभव नहीं है। इस घोटाले में शामिल लोगों को बचाने के लिए गैरजरूरी देर की जा रही है। हाल यह है कि इतने बड़े घोटाले के बारे में चाहे विभागीय अधिकारी हों या फिर पुलिस सभी डरे सहमे हैं। इस मामले में सभी मुंह खोलने से बच रहे हैं।
कोविड के कारण जांच में देरी- अफसर
महिला एवं बाल विकास (Women and Child Development) के संचालक रामराव भोंसले ने बताया कि यह फाइनेंसियल मामला है, हमारे यहां बिल के जरिये भुगतान होता है। इसमें 2-3 डिपार्टमेंट शामिल हैं, इनके यहां दस्तावेज मौजूद होते हैं। जो दस्तावेज मांगे जा रहे हैं हम पुलिस को देते जा रहे हैं। मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है। उम्मीद है कि जल्द सभी के खिलाफ एक्शन लिया जायेगा। वहीं, डीआईजी (DIG) इरशाद वली ने बताया कि कोरोना के कारण और विभागीय कारणों से थोड़ी देरी हुई है। कुछ दस्तावेज मिल चुके हैं, कुछ दस्तावेज मिलने बाकी हैं। 2 मामलों में चालान पेश हो चुका है। 1 मामले में हाई कोर्ट से स्टे है। और बाकी 1 मामले को प्रॉसिक्यूशन सेक्शन के लिये लैटर गया है।
ऐसे करते थे मानदेय में गड़बड़ी
बता दें कि साल 2014 में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को मानदेय देने के अधिकार बाल विकास परियोजना अधिकारी (CDPO) से छीनकर जिला परियोजना अधिकारी (DPO) को दे दिए गए। फिर भी आरोपी बाल विकास परियोजना अधिकारी ग्लोबल बजट से राशि निकालकर और कार्यकर्ताओं के मानदेय में समायोजित करते रहे। जबकि आगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को मानदेय का भुगतान जिला कार्यालय से पहले ही हो जाता था।