Bhopal. राजधानी भोपाल के जिन गड्ढों वाली सड़कों पर आप रोज आना—जाना करते हैं, इन गड्ढों की वजह से आप गिरते हैं, यहां से वाहन निकालने में आप परेशान होते हैं, पर क्या आप जानते हैं कि इन सड़कों के रखरखाव पर ही हर दिन 19 से 27 लाख रूपए खर्च होता है...इतनी अधिक राशि सुनकर चौंक गए न, पर ये हकीकत है। भोपाल नगर निगम 289 वर्ग किमी में फैला है। राजधानी की करीब 450 किमी लंबी सड़क की मरम्मत और निर्माण के नाम पर नगर निगम और पीडब्ल्यूडी (सीपीए बंद होने के बाद) द्वारा हर साल 70 से 100 करोड़ तक खर्च हो रहे हैं। यदि 365 दिन के हिसाब से देंखे तो हर दिन 19 लाख से 27 लाख रूपए तक सड़कों के मेंटेनेंस पर खर्च हो रहा है। इतनी बड़ी रकम खर्च होने के बाद भी हमारे और आपके हिस्से में तो गड्ढे ही आ रहे हैं...ऐसा क्यों? इसकी कई वजह है। आम लोग इसे कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार से जोड़ते हैं, पर इसका पहलू एक और भी है। दरअसल निर्माण एजेंसियों के बीच समन्वय का न होना और पेंचवर्क में घटिया क्वालिटी का इस्तेमाल होना भी बड़ा कारण है। पहले तो हम आपको बताते हैं कि भोपाल की सड़कों के आखिर हाल क्या हैं।
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राजधानी की सड़कों के ये है हाल...
सड़क—1 : रोहित नगर नहर स्टॉप से सलैया तक
रोहित नगर से सलैया तक का एरिया अरेरा एक्सटेंशन—8 कहलाता है। नए भोपाल का यह पॉश इलाका है, पर सड़क की हालत गांव से बदत्तर है। एक ओर की पूरी सड़क उखड़ गई है। नगर निगम ने यहां पेंचवर्क कराया था, पर वो हाल ही में हुई बारिश से पहले ही दम तोड़ने लगा। अब हालत यह है कि यहां से वाहन निकलना तक मुश्किल है। यहां के व्यापारी रोहित अग्रवाल का कहना है कि नगर निगम ने पूरा नर्क ही बना दिया है। इस सबकी वजह से बीते एक साल से व्यापार प्रभावित हो रहा है। रहवासी आशीष बिल्लौरे ने बताया कि हर दो महीने में पेंचवर्क होता है, पर फिर उखड़ जाता है।
सड़क—2 : कोलार गेस्ट हाउस से चूनाभट्टी तक
कोलार गेस्ट हाउस तिराहे से लेकर चूनाभट्टी तक पूरी रोड से गिट्टीयां निकल आई है। जगह—जगह बड़े—बड़े गड्ढे भी हैं। सड़क पर गिट्टीयां निकलने से दो पहिया वाहन चालक को सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। इन गिट्टीयों के कारण यहां धूल तक उड़ती रहती है, जिससे लोगों के स्वास्थ पर भी बुरा असर पड़ रहा है। यहां के लोग व्यंगात्मक अंदाज में कहते हैं कि सड़कें तो अच्छी है, कहीं खराब नहीं है। जब इन सड़कों का अमेरिका की सड़कों से तुलना हो रही है तो फिर सड़क कहां से खराब हुई।
सड़क—3 : कोलार थाने से डीमार्ट तक
कोलार रोड वैसे तो पूरी ही खराब है। हर चौराहे पर गड्ढे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा हालत खराब कोलार थाने से डीमार्ट तक है। गड्ढे ऐसे ही कि वाहनों का निकलना तक मुश्किल है। नतीजा...यहां हर आधे घंटे में जाम की स्थिति बन जाती है। यहां भी किराना व्यापारी दीपक साहू का कहना है कि सड़कों पर गड्ढे पानी से ग्राहक यहां नहीं आते। वहीं नीलम वाजपेयी का कहना है कि जब नगर निगम भारी भरकम टैक्स लेता है तो उसे सड़क भी सुधारनी चाहिए।
सड़क—4 : शाहपुरा सरकारी स्कूल जाने वाली सड़क
शाहपुरा क्षेत्र की भी सड़कें खराब है। यहां सरकारी स्कूल जाने वाली सड़क बमुश्किल 2 महीने पहले बनी थी, जो उखड़ चुकी है। लोगों ने बताया कि यहां कि सड़क कभी ठीक ही नहीं होती। गड्ढे ऐसे हैं कि अच्छा व्यक्ति भी बीमार पड़ जाए। शैतान सिंह चौराहे से होते हुए यह सड़क रोहित नगर को कनेक्ट करती है, इसलिए यहां भी शाम के समय हैवी ट्रैफिक रहता है।
4—इमली, 74 बंगले की सड़क चकाचक
ऐसा नहीं कि पूरे शहर की सड़कों की हालत खराब है। 4—ईमली और 74 बंगले क्षेत्र की सड़क को देंखेगे तो आपको एक अलग ही तस्वीर सामने दिखाई देगी। साफ—सुथरी और चमचमाती यहां की सड़कों को देखकर यह अंदाजा लगा पाना मुश्किल होता है कि बाकी बचे शहर की हालत बद से बदतर है। दरअसल यह अंतर है आम और खास का। 4—ईमली में सरकार रहती है। बड़े अधिकारियों के बंगले है, इसलिए यहां की सड़क कभी खराब ही नहीं होती, चाहे जितनी बारिश हो जाए और शेष बचे शहर में आम लोग रहते हैं, इसलिए वहां की सड़कें पानी की चंद बौछार तक नहीं झेल पाती। यहां रहने वाले पीएन उपाध्याय का कहना है कि यही समझ नहीं आता कि आम लोगों की सड़कों की हालत बहुत खराब है और 4—ईमली और 74 बंगले की सड़क कभी खराब क्यों नहीं होती। इसका सीधा कारण भी साफ दिखाई देता है क्योंकि यहां की गुणवत्ता से समझौता नहीं होता जबकि आम आदमी की सड़कों में क्वालिटी कई हिस्सों में बंट जाती है।
4—ईमली, 74 बंगले की सड़कें इसलिए कभी नहीं होती खराब
सिविल इंजीनियरिंग के एक्सपर्ट सुभाष गुप्ता बताते हैं कि सड़क बनाते समय सबसे महत्वपूर्ण पार्ट होता है सड़क का कंसोल्टेशन (मिट्टी भरने की प्रक्रिया)। यह सिर्फ सड़क बनाते समय एक ही बार हो सकता है। जब सड़क बन रही होती है सिर्फ उस समय मिट्टी भराव के वक्त लेयरवाइज कंसोल्टेशन यदि है तो सड़क मजबूत होती है और लंबी चलती है। लेयरवाइज कंसोल्टेशन एक महंगी प्रक्रिया है, इसलिए यह आम की सड़कों को बनाते समय अपनाई नहीं जाती। 4—ईमली और 74 बंगले की सड़कों में लेयरवाइज कंसोल्टेशन के कारण वहां की सड़कें मजबूत है, इसलिए गड्ढे नहीं होते। यदि इक्का—दुक्का गड्ढे हो भी जाएं तो उनको प्योर डामर से फिल किया जाता है, जिससे वह जल्द नहीं उखड़ते। यहां बार—बार सड़कों को अलग—अलग एजेंसी भी नहीं खोदती, इससे रेस्टोरेशन की ज्यादा जरूरत नहीं होती।
आम की सड़कें खराब होने के ये हैं कारण...
1. समन्वय की कमी : पीडब्ल्यूडी ने बनाई, निगम ने खोद दी सड़क
पीडब्ल्यूडी के सब इंजीनियरों ने हाल ही में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एयरपोर्ट रोड, भोपाल टॉकीज, भारत टॉकीज, 10 नंबर, ऑरा मॉल, शाहपुरा, चूना भट्टी, सलैया और कोलार एरिया सहित अन्य सड़कें नगर निगम की खुदाई के कारण खराब हुईं हैं। पानी और सीवर नेटवर्क की खुदाई के बाद रेस्टोरेशन में बरती गई लापरवाही के कारण यह सड़कें धंस गईं हैं। पीडब्ल्यूडी के रिटायर चीफ इंजीनियर वीके अमर भी समन्वय की कमी को स्वीकारते हैं। वीके अमर का कहना है कि नगर निगम के पास और भी बहुत काम रहते हैं, इसलिए वह पैसा उन कामों में खर्च कर देती है, इसलिए रेस्टोरेशन का काम नहीं हो पाता। पहले पीडब्ल्यूडी संबंधित एजेंसी से पूरा काम कराने के बाद ही सर्टिफिकेट देती थी।
2. घटिया क्वालिटी : गिट्टी पर इम्लसीफायर के लेप से उखड़ रही सड़कें
सिविल वर्क के जानकार सुभाष गुप्ता का कहना है कि सड़कों का बार—बार उखड़ने का मुख्य कारण घटिया क्वालिटी की सामग्री का उपयोग करना है। प्योर डामर की जगह पेंचवर्क या रेस्टोरेशन के समय इम्लसीफायर (पानी और कचरायुक्त पेट्रोलियम पदार्थ) का यूज किया जाता है, जो दिखने में डामर की तरह ही होता है, पर सड़क को पकड़कर नहीं रख पाता। जिसके कारण कुछ समय बाद ही डामर उखड़ जाता है। शैतान सिंह मार्केट के पास और सलैया रोड पर हुए पेंचवर्क कार्य इसका जीता जागता उदाहरण है। निर्माण के समय भी गुणवत्ता का ख्याल नहीं रखना एक कारण है।
यह भी खूब! नगर निगम ने गलती से शुरू कर दिया पेंचवर्क
रोहित नगर नहर स्टॉप से सलैया तक जाने वाली सड़क पीडब्ल्यूडी के अंतर्गत आती है। इसकी एक लेन सबसे ज्यादा खराब है, यहां से वाहन का निकल पाना बेहद मुश्किल होता है। जाहिर सी बात है सड़क खराब होने के पीछे नगर निगम ही जिम्मेदार है। यहां नगर निगम द्वारा सिर्फ गड्ढों में गिट्टी भरकर लेबल किया जा रहा था, डामर का तो कहीं कोई उपयोग ही नहीं। जब इस संबंध में नगर निगम कमीश्नर वीएस चौधरी कोलसानी से बात की तो उन्होंने कहा कि गलती से नगर निगम ने काम शुरू कर दिया, यह काम बारिश के बाद शुरू करना था। इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजधानी की सड़कों को लेकर नगर निगम प्रशासन कितना गंभीर है।
पीडब्ल्यूडी और नगर निगम के अधिकारियों के बीच रस्साकशी का खेल
सीपीए के बंद हो जाने के बाद भोपाल की सड़कों के लिए सिर्फ दो एजेंसी नगर निगम और पीडब्ल्यूडी ही जिम्मेदार बची है और ये एजेंसियां सड़कों को ठीक करने की जगह एक दूसरे पर आरोप लगा रही है। हाल ही में पीडब्ल्यूडी के सब इंजीनियर्स ने सड़कों के गड्ढों को लेकर विभाग को एक रिपोर्ट सौंपी। प्रमुख सचिव तक गई इस रिपोर्ट के अनुसार भोपाल की अधिकतर सड़कों की बदहाल स्थिति का जिम्मेदार नगर निगम है, क्योंकि नगर निगम ने काम करने के बाद या तो इन सड़कों पर रेस्टोरेशन नहीं किया या गुणवत्ता सही नहीं होने से सड़कें उखड़ गई। वहीं नगर निगम के एडीशनल कमीश्नर एमपी सिंह का कहना है कि सीवेज लाइन का काम 1 साल पहले किया था, हमने सड़कें सुधार कर दी अब मेंटेनेंस का काम पीडब्ल्यूडी का है। वह हमारे उपर गलत आरोप लगा रहे हैं।